Friday, December 9, 2016

पश्चाताप .... आत्मग्लानी ..... !

आओ, चलें, लिखें, कुछ ...
नंगी दीवारों पर

कुछ ... सत्य लिखें
कुछ ... धर्म लिखें
कुछ ... कर्म लिखें
कुछ ... कथनी-औ-करनी लिखें

राहगीरों के काम आयेंगीं
लिखी बातें ...

शायद किसी दिन काफिला गुजरे
'साहब' का ...

'साहब' की .. नजर पड़े .. किसी दीवार पे
पढ़कर ... मन व्याकुल हो जाए

2-3 घड़ी को सही ...
पश्चाताप हो .... आत्मग्लानि हो ..... !

~ श्याम कोरी 'उदय'

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