Monday, September 5, 2016

तुम ... और तुम्हारी डींगें ... उफ्फ .... !

गर ... अगर ... बात ... सिर्फ हार-जीत की होती तो
हम .. छोड़ देते ...

दे देते .. तुझे .. ये बाजी

मगर तूने
ये जो माहौल बनाया है

कि -

तुझसे बड़ा .. कोई खिलाड़ी नहीं है ..
कोई तुर्रम नहीं है

ये बात ... हमें कुछ जंच नहीं रही है
इसलिए ..

अब ... दो-दो हाथ ...
तुम ... तय समझ लो दोस्त ...

दर-असल .. जमाने को भी
तुम्हारी हकीकत से ... रु-ब-रु कराना .. जरूरी है ..

वर्ना .. तुम ... और तुम्हारी डींगें ... उफ्फ .... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

1 comment:

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/7.html