Wednesday, August 31, 2016

आसमान से गिरे और खजूर में अटके ... ?

आसमान से गिरे और खजूर में अटके ..
यह एक कड़वी सच्चाई है

सिर्फ कोई मुहावरा ...
कहानी ...
या किस्सा नहीं है

कभी-कभी ... अक्सर ...
ऐसा होता है
जब इंसान बुरे दौर से गुजर रहा होता है
न चाहते हुए भी ...
वह ..
खजूर में अटक जाता है

ये अटकना
एक ऐसी पीड़ा की भाँती होता है
जिसका एहसास

उफ़ ..... क्या कहें ...
बस ..... अहसास होता है

खजूर ... एक पेड़ ..
कंटीली .... झाड़ियों-नुमा ...
जहाँ फंसा आदमी ... अपनी मर्जी से ..
न हिल सकता है .. न डुल सकता है
क्यों ? ..... क्योंकि ..
वह .. वहाँ ...
अटका होता है ... लटका होता है
फंसा होता है

अब .. इस सच्चाई से कौन अनभिज्ञ है
या होगा
कि -

उसकी .. उस आदमी की .. क्या बिसात
कि .....
वह अपनी मर्जी कर ले
वो भी .. कंटीली झाडी-नुमा .. पेड़ पे
खजूर पे ... ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

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