Friday, June 10, 2016

जालिम... रुंआसे मुंह से भी मुस्कुरा रहा है आज ?

गिरगिट बदल रहे थे कल तक शहर में रंग
इंसानी रंग देख के, ... हैं हैरत में आज वो ?
... 

न मिले, न जुले,... न बहस हुई
फिर भी छत्तीस का आँकड़ा है ? 

...
दिल को... अब हम कैसे समझाएं 'उदय'
कि - .... वो भी अच्छे हैं .... और वो भी ? 

...
अभी तो चुभा है सिर्फ इक काँटा पाँव में
दो-चार कदम और आगे बढ़ो तो ज़नाब ?
...

उफ़ ! तड़फ भी है खूब, ... औ हैं शिकायतें भी खूब
जालिम... रुंआसे मुंह से भी मुस्कुरा रहा है आज ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

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