Tuesday, September 22, 2015

रफ्ता रफ्ता ...

क्या दिल - क्या आशिकी, क्या शहर - क्या आवारगी
रफ्ता रफ्ता दास्ताँ है, ...... औ रफ्ता रफ्ता जिंदगी ?
हम इतने भी आदी नहीं हुये हैं साकी तेरे मैकदे के
कि - …… बगैर तेरे, …… हमारी शाम न गुजरे ?

Tuesday, September 15, 2015

जीत-हार

कुछ कड़वे कुछ तीखे अनुभव
हिन्दी के जब संग चले हम
चलते चलते थके नहीं हम
पर जीत न पाये हार गए हम ?

Wednesday, September 9, 2015

ह्त्या …

लिखो, खूब लिखो
तुम, खून खौला देने वाले शब्द
आग बबुला …
कर देने वाले विचार,

कर दो
कुछ लोगों को, तुम … 
इतना आग बबुला
कि -

एक दिन
उनका खून खौल जाए
और वे
उठा लें बंदूकें,

हो जाएँ … हिंसक
और ... 
और कर दें …
तुम्हारी ह्त्या … ???

Saturday, September 5, 2015

समस्त गुरु-घंटालों को ..... जय हिन्द !

वैसे तो …
अपना
अब तक का सफर
गुरु-घंटालों संग ही गुजरा है

किसी ने
शुरू से ही खुद को गुरु माना,  
तो किसी ने बीच में, 
तो किसी ने जाते जाते खुद को गुरु ही बताया,

अब आप, समझ सकते हैं
हमारा सफर
कितना रोचक व दिलचस्प रहा होगा
यादगार होगा,
समस्त गुरु-घंटालों को ..... जय हिन्द !!!

~ श्याम कोरी 'उदय'