Saturday, March 14, 2015

दिल-धड़कन ...

लिखते लिखते थक न जाऊँ …
औ अधर्मी न कहलाऊँ …
यही सोच कर चुप बैठा हूँ, 

वर्ना, … 
क्या मंदिर, औ क्या मस्जिद, …
जगह जगह हो कर आया हूँ, 

जब चाहूँ …
तब मैं लिख दूँ … 
हैं मंदिर-मस्जिद … दोनों सूने,

सच तो ये है …
'खुदा' बसा है दिल में मेरे …
और 'राम' बसे धड़कन में … ?

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