Thursday, February 19, 2015

होड़-बेजोड़ ...

बिलकुल नशा नहीं है आँखों में उसके जालिम
वर्ना कलम उठाने की जुर्रत न हमसे होती ??
 … 
कुल्फियों, फुल्कियों व किताबों में होड़ है
देखते हैं दिल्ली, कौन कितना बेजोड़ है ?
...
देख के, वो सियासत मेरी जल-भुन रहा है 'उदय'
जिसने खुद की हुकूमत में बस्तियाँ जलाईं थीं ?
… 
सच ! न टोपी, न टीका, न माला, न टोटके
हम कैसे मान लें 'उदय', कि तुम ज्ञानी हो ?
....

Monday, February 16, 2015

दुःख और पीड़ा ...

दुःख और पीड़ा दोनों उनकी जायज है
टूट रहा है पहाड़ घमंड का
जो न ऊँचा था, न विशाल था,
पर, लगता था उनको
कि -

वे ऊँचे हैं, बहुत बड़े हैं,
और-तो-और …
वो कहते-फिरते भी थे
कि -
उन-सा ऊँचा कोई नहीं संसार में, 

पर, अब, …
टूट रहा है, बिखर रहा है पहाड़ घमंड का 
जो न ऊँचा था, न विशाल था,
दुःख और पीड़ा दोनों उनकी जायज है ?

Monday, February 2, 2015

कबीर धर्म नगर

"बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर "

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( कबीर धर्म नगर - दामाखेड़ा, छत्तीसगढ़ )