Tuesday, December 16, 2014

कुचल दें ...

कोमल पंखुड़ियाँ मसल दी हैं
कल …
कुछ जालिमों ने,


तब से अब तक
रोम तक कंप-कंपा रहे हैं मेरे,

करूँ तो क्या करूँ …
मैं अकेला हूँ,

चलो मिलकर …
कुचल दें
हुकूमत जालिमों-जल्लादों की ?

No comments: