Tuesday, November 25, 2014

वादा ...

किस शहर की
किस गली के नुक्कड़ पे
पूछूँ मैं नाम तेरा,
क्योंकि -
थक गया हूँ मैं ढूंढते-ढूंढते तुझको
कहीं ऐसा न हो
सांस रूठ जाए - वादा टूट जाए ?

Wednesday, November 19, 2014

दो उचक्के …

दो उचक्के …
और चार चक्के, 

चल रही है गाड़ी, बढ़ रही है गाड़ी
दौड़ रही है गाड़ी,
सरपट भाग रही है गाड़ी,  


थोड़े कच्चे, पर धुन के पक्के, 

दो उचक्के …
और चार चक्के ???

Thursday, November 13, 2014

किरदार ...

वो आज मुझसे ही मेरा पता पूंछ रहे थे
कैसे, औ किस किस को बताऊँ
कि -
मैं खुद ही गुमनाम फिरा करता हूँ ???
… 
जोकरों के सिवाय कोई और किरदार फबता नहीं है हम पे
मगर… फिर भी… वो जिद किये बैठे हैं 'खुदा' बनने की ?
जुनून-ए-इश्क में, चिंदी-चिंदी हो गए
कल तक जो शेरवानी हुआ करते थे ?

Wednesday, November 5, 2014

कश्मकश ...

उफ़ ! वो मिले भी तो कुछ इस तरह
कि मिलते ही, फिर से बिछड़ गए ?
गर हम इसी तरह बहते रहे, तो तय है 'उदय'
इक दिन, ……… हम भी सागर हो जाएंगे ?
आज हम जल्दी उठ गए हैं 'उदय'
अब देखते हैं, तलाशते हैं फायदे ?
सच ! कभी कभी तो हम भी उनके जैसे हो जाते हैं
पर, इक वो हैं, जो सदियों से जैसे के तैसे ही हैं ??
तुम भी अजनबी - हम भी अजनबी
फिर, कैसी औ क्यूँ है ये कश्मकश ?
… 

Sunday, November 2, 2014

पतवार ...

चलो पकड़ लें,
राह पकड़ लें, डोर पकड़ लें,
जीवन की …
पतवार पकड़ लें,
फिर …
चले चलें, बढे चलें …
मंजिल की ओर …
सपनों की ओर … … … !