Saturday, January 4, 2014

गुरेज ...

तुम तो जानते हो, मुहब्बत फलती नहीं है हमें 
फिर क्यूँ, ............. उम्मीद रखते हो हमसे ? 
… 
मुद्दत हुई उनसे मिले-बिछड़े हुए हमें 
फिर भी है कि ये दिल मानता नहीं ?
… 
तू यकीं कर हमें अपने दुश्मनों की भी मौत से गुरेज है 
फिर तुझसे तो अपना, ………… दोस्ती का वादा है ? 
… 
मुद्दतों बाद वो कल हमसे मिले थे 
मगर अफसोस, खामोशियों की आदत छूटी नहीं उनकी ? 
…