Monday, January 20, 2014

बेरहम ...

उन्ने, दुआ तो माँगी थी, मगर खामोशियों में 
उफ़ ! 'खुदा' भी मौन रह कर, हमें देखता रहा ? 
… 
हम जानते हैं, उन्हें, इतनी बेरहमी रास नहीं आनी है 
मगर ये बात,…………… उन्हें समझाये कौन ???
… 
बेफिजूल के मुद्दे हैं, बेफिजूल के किस्से हैं 
नाम का लोकतंत्र है, नाम का जनतंत्र है ? 
… 
उफ़ ! बहुत बेरहम है यार मेरा 
मिलकर भी…मिलता नहीं है ?
…