Sunday, November 10, 2013

शातिर ...

भरने को तो, कब के भर चुके हैं उनके पाप के घड़े 
बस, फूटने के लिए एक अदद पत्थर की जरुरत है ? 
...
काश ! होता अगर हमारा भी तनिक उनके शहर से वास्ता 
मुहब्बत न भी सही, पर उनकी दोस्ती जरुर होती हमसे ? 
… 
चोर उचक्कों जैसा था कुछ प्यार हमारा उनसे यारा 
कभी कूदते खिड़की वो थे, कभी फांदते हम दीवारें ? 
… 
सच ! बिना बन्दगी के, वो सीधे बाँहों में आ टपके थे 
हम जानते थे, किसी न किसी दिन खैर नहीं हमारी ? 
…  
सच ! उनकी बातों में, तुम यूँ ही मत आ जाया कीजे 
वो बड़े शातिर हैं, कोयले को भी डायमंड कह देते हैं ?
… 

1 comment:

Unknown said...

सार्थक प्रस्तुति |