Friday, March 29, 2013

दगाबाज ...


न तो तुम चैन से मिलते हो, औ न मिलने देते हो 
इस कदर बेचैनी का, ..........हम सबब तो जानें ?
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लो, एक तो वो खुद ही, पंदौली दे रहे सरकार को 
और हमसे कहते हैं, कि -........दगाबाज हैं वो ?
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कभी टेड़ी, तो कभी सीधी, खुद-ब-खुद हो जाती है 
उफ़ ! बहुत 'मुलायम' है................दुम उनकी ?
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हमने तो 'उदय', उनके दिल को सहलाया भी था, औ बहलाया भी था 
मगर, फिर भी ...................................... वो दगाबाज निकला ?
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अब इसमें दोष उनका तनिक भी नहीं है 'उदय' 
दरअसल, खरीददार ही बड़ा हुनरमंद निकला ?
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Wednesday, March 27, 2013

शर्म का पर्दा ...


वैसे तो, आज का हर आदमी, कवि है, कलाकार है 
बस, नहीं है तो,......एक अच्छा दुकानदार नहीं है ? 
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उनकी सिसकियाँ थमने का नाम नहीं ले रही हैं 'उदय' 
अब 'रब' ही जाने, कैसा जलजला आया है उन पर ??
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उनका भी अंदाज, कुछ अजब, कुछ गजब, कुछ निराला है 
खुद को ही,............................ खुद बधाई दे रहे हैं वो ? 
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कश्मकश, सपने, महकती रातें, और वो बेबाक लिपटना तेरा 
गर हम चाहें भी तो, कैसे...................भूल जायें वो मंजर ?
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मैंने तो 'उदय', सिर्फ आँख से शर्म का पर्दा हटाया है 
यहाँ तो लोग हैं, जो जिस्म भी खुल्ला ही रखते हैं ? 
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Sunday, March 24, 2013

दागदार ...


सच ! उम्र संबंधों की 'उदय', सोलह रहे या अठारह 
होना वही है, जो अक्सर नादानियों में हो जाता है ? 
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गर, तुमसे पहले भी,....................हमें किसी से प्यार हुआ होता 
तो शायद आज हम, मुहब्बती रश्मों-रिवाजों से अनजान नहीं होते ? 
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आतंकियों की मौत पे, सहानुभूति अच्छी नहीं यारा 
वर्ना, पाक दामन भी.................दागदार समझो ?
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सच ! वे खुद को, पीर, मौला, हकीम, कहते हैं 'उदय' 
पर, बगैर तमंच्ची घेरों के, घर से बाहर नहीं आते ? 
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उफ़ ! कहाँ तुम, उस एक अदने से 'कोहिनूर' के पीछे पड़े हो 
यहाँ तो, विजय, सुब्रत, जैसे सैकड़ों कोहिनूर बिखरे पड़े हैं ? 
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Wednesday, March 20, 2013

सूट-बूट ...


उनकी मुहब्बत की, अब हम क्या मिसाल दें 
शौहरत की चाह में, .... उन्ने बांहें बदल लीं ? 
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'खुदा' जाने किस दौर से गुजर रहे हैं वो 
वजह न भी हो, तो भी मुस्कुरा उठते हैं ?
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गर हम 'उदय', कल उनकी गलियों से, गुजरे नहीं होते 
तो शायद आज हम, हर एक आँख को खटके नहीं होते ?
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सूट-बूट है, तो कविता लिखो, पढ़ो, करो 
वर्ना, बे-फिजूल में वक्त जाया न करो ?
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तरीके चाहे जो हों, पर नतीजे अपने हों 
अब आज के दौर में 'उदय' हारना कैसा ?
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Monday, March 18, 2013

ब्रेक-अप ...


सच ! जिस्म से रूह निकल रही है मेरे 
तनिक और ठहर जाओ तो सुकूं मिले ?
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न कद है न काठी है, न दिमाग है न खुबसूरती 
फिर भी, .......................... वो सरकार हैं ? 
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अब जब ब्रेक-अप हो ही रहा है तो हिसाब-किताब पूरा कर लो 
कहीं ऐंसा न हो, दो-चार चुम्बन तुम्हारे हमारे पास रह जाएँ ?
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जनता को मिर्गी की बीमारी है, या सत्ताधारियों को 
कोई तो बताये 'उदय', हम जूता सुंघायें किसे ????
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आओ किसी पुरानी बात को याद कर के ठहाके लगा लें 
वर्ना अब, ............. ठहाकों की वजहें मिलती कहाँ हैं ?
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Friday, March 15, 2013

टेड़ी की टेड़ी ...


उनकी खुशी के, कोई मिजाज तो देखे 'उदय' 
मंद-मंद मुस्कुराते हैं परेशां देख कर हमको ? 
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तुम उंगली पकड़ लो, या पगडंडी पकड़ा दो 
फिर देखें, कैसे भूलते हैं हम घर तुम्हारा ? 
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हदों में होते, तो वो हदें पार करते 
दुम कुत्ते की, रहेगी टेड़ी की टेड़ी ?
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कुछ तो बोलो मियाँ, मौला, मेरे परवरदिगार 
खब्बीसों को,.........क्यूँ मिला ऊँचा दरवार ?
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तुम्हारा दिल है,....................तुम्हारी मर्जी 
पर, किसी और को चाहा, तो उसकी खैर नहीं ? 
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Wednesday, March 13, 2013

मुहब्बत ...


जी चाहता है 'उदय', डूब जायें उनमें 
गर खो भी गए तो गिला नहीं होगा ? 
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लो, आज सारा शहर, हमसे.........बेइन्तहा नाराज है 'उदय'
वजह, कुछ ख़ास नहीं, कल हमने उनकी हाँ में हाँ नहीं भरी ? 
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अब मर्जी तुम्हारी, जो चाहे नाम ले लो 
बेरहम कह लो,.....या बेवफा कह लो ? 
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लो, दफ़्न हो गई, कल.....एक और मुहब्बत 
उनकी............................खामोशियों में ? 
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झूठे दिलासों को....हथियार बनाया था उन्ने 
और एक हम थे, जो उनपे एतबार करते रहे ? 
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Saturday, March 9, 2013

हाय-तौबा ...


लो, मुहब्बत हुई भी तो उनसे हुई 
जिन्ने, पहले से ही अपनी सुपाड़ी ले रखी थी ? 
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जो बेसहारों के सहारे होने का दम भर रहे हैं 'उदय' 
वो तो खुद ही, किसी न किसी के......सहारे पे हैं ? 
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आओ, चलें.........कुछ जज्बात बेच दें हम भी 
वैसे भी, हमें कौन-सा मुरब्बा बनाना है उनका 
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न्याय की कहाँ दरकार थी उन्हें 
वे तो, मुआवजे के लिए हाय-तौबा मचा रहे थे 'उदय' ? 
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Thursday, March 7, 2013

तरकीब ...


कुछ गरीबों का पेट,....भर देता,..... बचा रात का भोजन 
मगर अफसोस, उनकी नाफरमानियों ने बुसा दिया उसे ?
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जलाये रक्खो खुद को, राहों में बहुत अंधेरा है 
न जाने किस के, ये उजाले काम आ जाएँ ??
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लो, मिला है मौक़ा उन्हें, उंगली उठाने का, मेरे किरदार पे
जिन्ने,.....दलाली, बेईमानी से, खुद को तराशा है 'उदय' 
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वैसे तो, चित्त भी उनकी है...औ पट्ट भी उनकी 
बस, सनसनी के लिए, वो सिक्का उछालते हैं ? 
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सच ! वो नसीब से नहीं, तरकीब से जीते हैं 
वर्ना, तीन बादशे अपने, पिटते नहीं 'उदय' ?


Wednesday, March 6, 2013

लालसा ...


सच ! गर तेरी खामोशियों को पढ़ना, हमने सीखा नहीं होता 
तो शायद, तेरी चाहतों से अब तलक,..हम अंजान ही रहते ?
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आज, जिसे देखो वही जल्दी में है 
तनिक जल्दी....हमें दे दो 'उदय' ?
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रात के किसी भी पहर, ठिकाना बदल लेते हैं हम 
अब, कमजोर चारदीवारियों पे...भरोसा नहीं रहा ?
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सच ! लिखने के शौक से लिख लेते हैं हम 'उदय' 
वर्ना, छपने की लालसा कभी जेहन में नहीं रही ?
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लौंडे किये हैं पैदा, कमाल के उन्ने 
न घर के दिखे हैं, और न घाट के ? 

Monday, March 4, 2013

जज्बातों के सौदे ...


अब तुम, ये किस जिद में हो, हमें जाने दो 
कहीं ऐंसा न हो, तुम...........तुम न रहो ? 
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सच ही है 'उदय', हर एक आदमी में हैं दस-बीस आदमी 
बस, टटोलोगे, तो सब.......एक-एक कर मिल जायेंगे ?
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हमारे अल्फाज 'उदय', हमारे किसी काम के नहीं लगते 
पर, कोई चाहे तो, सहारे उनके......पार कर ले दरिया ?
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खरीद-फरोख्त के दौर में भी, पिछड़ गए हैं हम 
जज्बातों के सौदे, हम से मुमकिन नहीं ठहरे ? 

Saturday, March 2, 2013

फुर्सत से ...


हमें राख समझ के वो घड़ी-घड़ी छेड़ रहे थे 'उदय' 
जला जो हाँथ तो गलतफहमियाँ दूर हुईं उनकी ? 
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बहुत तडफेंगे वो, अब इस मुलाक़ात के बाद 
क्यों ? ...
क्योंकि -
अब हमारा लौटना मुमकिन नहीं लगता ??
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हमने तो उन्हें, जब भी देखा है, रंग-बिरंगे दुपट्टों में ढका देखा है 
पर ऐंसा सुनते हैं 'उदय', फुर्सत से...........तराशा गया है उन्हें ?
... 
क्यूँ न, खुशी और गम के बीच 
हम,......... इक पुल बना लें ? 
... 
'टोपीबाजी' के हुनर में तो वे जन्मजात माहिर हैं 'उदय' 
पर आज उन्नें, ............ 'हैट' ही पहना दिया सबको ?