Friday, December 21, 2012

फांसी ...


अंधेरे ...

हुकूमत की तमाम बस्तियों में, 
हैं आलम 
घोर अंधेरों के 
मगर ... फिर भी 
हुक्मरानों के 
सूने ...
आँगनों में 
दूधिया रौशनी... बिखरी पड़ी है ? 
... 
...
फांसी ... 

चढ़ा दो उन्हें... फांसी पे...
किसे ? 
बलात्कारियों को ... 
क्यों ? ... 
क्योंकि - बतौर सजा ...
बगैर फाँसी सुने 
किसी का ... 
मन हल्का नहीं होगा ???
... 
वक्त ...

एक-एक दिन, जिन्दगी के
बंदरों की तरह 
उछल-कूद में कट गए 
कमबख्त ...
वक्त भी 'उदय' 
बहुत बड़ा मदारी निकला ?
... 
कुछेक उठा पटक ...
...
कुछ और न सही, मुलाजिम ही समझ ले 
इस नाते,... बख्शीश पे तो हक़ है अपना ? 
... 
खिलने को तो, काँटों संग फूल खिल रहे हैं 
पर, तेरी बस्ती में हमें कहीं चैन न मिला ? 
... 
युवराज ... 
काम न धाम, बेवजह का नाम ?
... 
उसूलों की बातें, करो,........ तुम खूब करो 
पर, जब ईमान बेचा था तब कहाँ थे मियाँ ? 
... 

Monday, December 17, 2012

शर्त ...


धुंध छाया है शहर में, बस इक तेरी ही याद का 
गर भूलना चाहूँ तुझे, तो तू बता मैं क्या करूँ ?
... 
बगैर तमाशे के............ शोर 
क्या वजह हो सकती है 'उदय' ? 
... 
उनकी खामोशियों ने 'उदय', हमें शायर तो बना दिया 
मगर अफसोस, दिल........ औ जज्बात नहीं बदले ?
... 
आईना देख-देख के, मत मुस्कुराया करो 
किसी दिन, खुद की नजर न लग जाए ? 
... 
गर कोई शर्त है, तो खुलकर बयां कर दो मेरे यारा 
वैसे भी,... नुक्ताचीनी की हमारी आदत नहीं है ? 

Wednesday, December 12, 2012

हरकतें ...


तुम्हारे ... हरेक सवाल का  
वो ...
जवाब तो ... दे ही देंगे 
पर, गर ...
जवाब कड़वे मिले ...
या कडुवे हुये !
तब ...
क्या तुम ..... उनका ...
कुछ उखाड़ लोगे ...
बिगाड़ दोगे ?
क्योंकि - 
वो ... ये ऊट-पुटांग हरकतें 
जान-बूझकर... कर रहे हैं ??

रिवाज ...


मुश्किल घड़ी में,... ये कैसा इम्तिहान है 'उदय' 
जवाब ख़त्म होने को हैं पर उनके सवाल नहीं ? 
... 
सच ! किसी न किसी से, तुम हर पल घिरे होते हैं 
अब कैसे सुनायें तुम्हें, हम अपने दिल की यारा ? 
... 
न वफ़ा, न बेवफाई 
मेरे महबूब......... ये कैसे रिवाज हैं ? 

Tuesday, December 11, 2012

हकीकत ...


उनकी आशिकी में, हमने नाम कमाया है या हुये हैं बदनाम 
ये जिससे पूंछो,........................ तो वो चुप हो जाता है ?
... 
उन्हें, फर्जीवाड़े की आदत कुछ इस कदर हुई है 'उदय'
कि - मौके-बेमौके.... बाप का नाम भी बदल लेते हैं ? 
... 
अब तुम, झूठे दिलासों से मत बहलाओ हमको 
किसको नहीं मालूम जन्नत की हकीकत यारा ?

Sunday, December 9, 2012

आशिक ...


लो, उन्ने.. फिर से उन्हें धो डाला 
उफ़ ! क्या गजब की सफेदी है ??
... 
चवन्नी छापों को, सिक्कों के तमगे 
क्या.... यही हिन्दी का साहित्य है ? 
... 
रहम कर, बेरहम न बन 
सच्चे आशिक... बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ? 

Saturday, December 8, 2012

हित ...


तुम्हारे फैसले ...
किसके हित में है, किसके हित में नहीं है 
इसे छोडो मियाँ ... !
तुम्हारा हित ...
कब ?... कैसे ??... कितना सदा, 
इसपे भी ... तनिक बोलो ज़रा ???

Friday, December 7, 2012

मुखौटे ...


लो, आज उन्ने.... उनके समर्थन में सीना ठोक दिया है 
अब,... जनता,... पार्टियाँ ... जिसकी जो मर्जी वो करे ? 
...
अब तो बच्चों-बच्चों की जुबां पे सरेआम चर्चे हैं 
कि - वे बिन पेंदी के हैं, कहीं भी लुड़क सकते हैं ? 
...
न तो उन्हें शर्म है 'उदय', और न ही वे शर्मिन्दा हैं 
क्यों ?.. क्योंकि वे ईमान तो कभी का बेच चुके हैं !
... 
उनके चेहरों पे,..... नौ-नौ मुखौटे हैं 'उदय' 
फिर भी, न मान है, और न ही ईमान है ? 

Thursday, December 6, 2012

हमारा तंत्र ...


कल जिसे ... 
नंगा ठहराया गया था 'उदय'
आज उसे... 
साधू मान लिया गया है !
ये तमाशा है 
जादू है 
या कोई खेल है 
क्या यही ... 
ऐंसा ही ..... हमारा तंत्र है ?

शून्य-बटे-सन्नाटा ...


काश ! होता .......... हम में भी, छपने-छपाने का हुनर 
तो शायद, हमारे करतबों पे भी तालियाँ बज रही होतीं ?
... 
अब 'खुदा' ही जाने, क्यूँ खफा हैं वो 
बस, वजह पूंछो तो चुप हो जाते हैं ? 
... 
लो, मचा.......... बेवजह का शोर-शराबा है 
जबकि सब जानते हैं शून्य-बटे-सन्नाटा है ? 
... 
तुझे एतबार करना है कर, न करना है न कर 
पर, मुझ पर फरेबी होने का इल्जाम न लगा ?
... 
चलो ठीक है 'उदय', वे किसी की उम्मीदों पे तो खरे उतरे 
वैसे, ................ बुझता चिराग, और करता भी क्या ?

Wednesday, December 5, 2012

तमाशेबाज ...


हाँ ... मैं जानता हूँ 'उदय' 
मेरी चिता ...
की आग ठंडी भी नहीं होगी ...
उसके पहले ही ...
कोई चतुर व चालाक 'तमाशेबाज' 
मेरी आत्मा को ... 
शोकसभा व श्रद्धांजलि रूपी ... 
'मंत्रों' से ... सिद्ध कर लेगा !
और फिर ... 
वह ... 
मेरे सिद्ध लेखन के बल-बूते ...
अपने ... 
आलोचना व सम्पादन रूपी ...
'तमाशे' दिखा-दिखा कर 
खूब ... तमगे .... दुशाले .... ??

Tuesday, December 4, 2012

शोर-शराबा ...


चहूँ ओर, ... खामों-खाँ का ...
शोर-शराबा है ... 
कि - 
उन्ने ... 
अब तक पत्ते नहीं खोले !
वैसे हम ... 
सब जानते हैं ... 
कि - 
उनके पास ...
दुक्की, तिक्की, चऊआ ... 
से जियादा ... कुछ भी नहीं है 
फिर भी ... 
उनकी ...
हुआ-हुआ ... का शोर है ??

Monday, December 3, 2012

मकसद ...


उफ़ ! बड़ी अजीबो-गरीब है, .............. मुहब्बत उसकी 
कभी हंस के लिपटती है, तो कभी सहम के छिटकती है ? 
... 
मरते मरते भी... मौत न आई मुझको 
बस, तेरी एक उम्मीद ने ज़िंदा रक्खा ? 
... 
गुनह उनका, ..... काबिल-ए-माफी नहीं है दोस्त 
कलम की आड़ में, लूट मकसद हुआ था उनका ? 

Sunday, December 2, 2012

बेरुखी ...


समय समय की बात है 'उदय', दुम हिलाने की कला में 
इंसा, ............... कुत्तों से भी दो कदम आगे है आज ?
...
पटका-न-पटकी .............................. बस 
चहूँ ओर ... सरकारी धन की... गटका-गटकी ?
... 
उनसे बेरुखी की वजह, खता या कुसूर नहीं है 'उदय' 
बस, उन्हें जब देखते हैं, जी मचल उठता है अपना ? 
... 
लो, वो मरते-मरते भी ... अपने मुल्क का नाम रौशन कर गया 
और एक अपने मुल्क में, जीते-जागतों ने बदनामी की ठानी है ? 
...
गर, अब भी उन्ने, विवादास्पद चेहरों से मुंह नहीं मोड़ा 
तो तय है 'उदय', उनकी ............... भयाभय दुर्गती ?

Saturday, December 1, 2012

लालबत्ती ...


वे बिना औकात के भी औकाती हुए हैं 
यही तो खेल है, ....... हमारे तंत्र का ? 
... 
सन्नाटा-सा,............... क्यूँ पसरा है आज तुम्हारी बस्ती में 
खुशियों ने दम तोड़ दिया है, या कुछ और वजह है मातम की ? 
... 
जब, जुबां से बयां, तुमको कुछ करना नहीं है 
फिर, अपनी आँखों पे बंदिशें क्यूँ नहीं रखते ? 
... 
अब हम क्या कहें 'उदय', उनकी औकात चवन्नी से जियादा नहीं है 
मगर ... 'खुदा' की मेहरबां देखो, वे ..... 'लालबत्ती' में घूम रहे हैं ? 
... 
उन्ने, आँखों-ही-आँखों में, हमें अपना बना लिया 
गर, वो बातों पे उतर आते, तो ... 'खुदा' ही जाने ?