Saturday, October 20, 2012

आशियाना ...


नींद का खुलना हुआ, और... यादों में तुम आ गए 
अब क्या करें, कैसे उठें, हम बिन तेरे आगोश के ?
... 
जी मचल रहा है, देख देख कर तुम्हें 
जैसे तुम, आज ओस की बूँदें हुई हो !
... 
नींद खुलते ही, तुम्हारी याद, सताने लगती है हमको 
कहो तो, ...... हम .......... एक कर लें आशियाना ?
... 
उनकी फूहड़ता की, अब हम क्या मिसाल दें 
वो, ............. खुद को, 'खुदा' कह रहे हैं ??
... 
दारु-मुर्गा, ही-ही-हू-हू, नाच-नचईय्या, तू-तू-मैं-मैं 
उफ़ ! ये शादी का मंजर है,... या तमाशा है 'उदय' ?

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