Thursday, June 28, 2012

वाह-वाही ...


'उदय' चल उठा ले, दियासलाई की डिब्बी 
दिल्ली में, कूड़ा-करकट का ढेर हुआ है ? 
... 
मयकदा है, ...... या है हवामहल 
जिसे देखो, हवा में बात करता है ? 
... 
आज स्तरीय संपादकों की कमी है 'उदय' 
वर्ना, मजाल है वाह-वाही न मिले ? 
... 
अब नींद की चाहत किस कमबख्त को है 'उदय' 
इन सुलगती-तपती रातों में ? 
... 
बिना पिये, अब किस जालिम को आनी है नींद 
तू आँखों में डूब जाने दे, या देखूँ मैं मयकदा ? 

4 comments:

mridula pradhan said...

bahot achche.....

Arvind Jangid said...

बिना पिये, अब किस जालिम को आनी है नींद
तू आँखों में डूब जाने दे, या देखूँ मैं मयकदा ?

...चल मैं तुझे हिलती हुयी दुनिया दिखाता हूँ !

Arvind Jangid said...

बिना पिये, अब किस जालिम को आनी है नींद
तू आँखों में डूब जाने दे, या देखूँ मैं मयकदा ?

...चल मैं तुझे हिलती हुयी दुनिया दिखाता हूँ !

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब..