Sunday, June 17, 2012

बाबू जी ...


शहर में ... 
धूप में ...
अब मेरा बसेरा है !
न छाँव है ... 
न गाँव है ... 
जब से -
चले गए हैं बाबू जी !!

3 comments:

mridula pradhan said...

न छाँव है .......
न गाँव है....... ekdam dil se.....

प्रवीण पाण्डेय said...

छाँव और गाँव दोनों ही बसते हैं पिता के व्यक्तित्व में...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत खूब...