बहरापन ...
जब तक जी चाहे ...
तब तक ...
चीखते रहो ... चिल्लाते रहो ...
सरकारें ... सुनें, या न सुनें ?
पर
कोई न कोई तो होगा, जो -
सुनेगा ... जरुर सुनेगा
क्योंकि -
हर एक शख्स ... शहर का
बहरा नहीं होगा ??
-----
-----
डगर ...
चलते रहो - बढ़ते रहो
न देखो
तुम मुड़कर पीछे
कभी भी ... राह में !
जिन्होंने -
सांथ छोड़ा है
उनकी
मंजिल नहीं है ये डगर !!
-----
-----
जाति, धर्म, मजहब ...
चले आओ, मुझे तुम क़त्ल कर दो
और तुम्हें मैं क़त्ल कर दूँ !
खून से लाल कर दें इस जमीं को
अब यहाँ -
कौन, फूलों को उगाना चाहता है ?
जिसे देखो वही -
जाति, धर्म, मजहब की बात करता है
अमन की ...
शान्ति की ...
अब यहाँ किसको जरुरत है ??
1 comment:
बाँट बाँट कर काट रहे सब..
Post a Comment