Thursday, June 14, 2012

ग़ालिब ...


हसरतें दिल की, तो कब की टूट के बिखर गईं हैं 'उदय' 
अब ... ये कौन है, जो खामों-खां दस्तक दे रहा है वहां ? 
... 
देखना, किसी भी पल, वे सब-के-सब चुप हो जाएंगे 
बस, कुछ के ईमान खरीदे, तो कुछ के बेचे जाएंगे ?
... 
सराफत है, या बहरुपियापन है 
सुबह देखो - शाम देखो, बड़े अदब से पेश आता है ? 
... 
सच ! जमीनें छीन ली हैं, शहर के कुछ दरिंदों ने 
नहीं चलता है बस, जोर उनका आसमानों पर !!
... 
सच ! सुनते हैं 'उदय', उन्हें 'ग़ालिब' की तलाश है 
आज, गर वो होते तो वो भी किसी कोने में होते ? 

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

ठौर न मिलता..

सदा said...

सच ! जमीनें छीन ली हैं, शहर के कुछ दरिंदों ने
नहीं चलता है बस, जोर उनका आसमानों पर !!
बहुत खूब।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत खूब, उम्दा गजल उदय भाई

मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से
रामगढ में,
जहाँ रचा गया मेघदूत।