Monday, June 4, 2012

इंकलाबी ...


हाँ ... 
हूँ ... 
मैं इंकलाबी हूँ !
करूँ तो क्या करूँ ?
जिधर देखो उधर 
लूट, शोषण, ह्त्या, बलात्कार 
की ... चीखें हैं !!
हाँ ... 
हूँ ... 
मैं इंकलाबी हूँ !!!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरा, क्रोध और क्षोभ भला कहाँ छिप पाता है।