Friday, June 1, 2012

दाल-रोटी ...


मायावी संसार ... 
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ये तेरा, कैसा मायावी संसार है 'उदय' 
एक ओर 
लोगों को एयरकंडीशन में भी नींद नहीं आती 
तो दूसरी ओर  
गर्मी हमें सोने नहीं देती ? 
... 
अनाथ ...
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आओ ... 
हम ... एक दुकान खोलें 
तुम 
गुब्बारे, फुलो-फुलो कर बेचो !
और मैं 
बरफ के रंगीन -
गोले बना-बना कर बेचता हूँ !!
इस तरह 
हमारे इर्द-गिर्द 
रोज ... बच्चे-ही-बच्चे रहेंगे 
शायद 
ऐंसा करने से, अपनी ... 
अनाथ -
होने की पीड़ा भी दूर हो जाए ? 
... 
संन्यास ... 
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उन्होंने शर्त रख दी है 'उदय' 
कि - 
गर उन पर 
आरोप भृष्टाचार के, सिद्ध हो गए 
तो वो 
राजनीति से संन्यास ले लेंगे ! 
पर 
हम सहमती से डर रहे हैं !!
कि - 
कहीं वे 
कल इसी शर्त की आड़ लेकर 
जेल जाने से न बच जाएं ? 
... 
दाल-रोटी ...
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साहब ... माई-बाप ... दया करो 
हम - 
गरीब हैं ...
मजदूर हैं ... 
किसान हैं ... 
गर इसी तरह 
रोज, हर रोज, मंहगाई बढ़ती रही 
तो 
हमें और हमारे बच्चों को 
दाल-रोटी के भी लाले न पड़ जाएं ?