Sunday, April 29, 2012

आधुनिक लेखक ...


पहले लिखो, जी तोड़ मेहनत करो 
फिर 
किसी प्रकाशक से संपर्क साध कर 
उसे छपवाओ ... किताब की शक्ल में 
वो भी अपनी कीमत पर 
संतोष ... !
फिर, कुछ दिन बाद उसे 
मुफ्त में, अपने -
मित्रों 
सगे-संबंधियों 
लेखकों 
आलोचकों 
समीक्षकों 
पत्रकारों 
संपादकों ... इत्यादि को 
स्वयं के डाक खर्च पर ... बाँट दो 
यह एक बेहद सहज व सरल तरीका है 
आधुनिक लेखक ... 
बनने व कहलवाने का !!
इसी दौरान 
यदि आप जुगाड़ बैठने-बिठाने में सफल रहे 
तो आपका 
पुरूस्कार, मान, सम्मान ... 
भी लगभग तय है ... जय हो !!!

Saturday, April 28, 2012

बात का बतंगड़ ...


'उदय' सुन लो ज़रा, वो जिनकी चीख सुनकर इंकलाबी हो गया था 
जब गूंगे हुए खुद वो, तो उसकी मौत का फरमान जारी हो गया !!!
... 
रखो संभाल के खुद को, कि शहर लुटेरा है 
नहीं है कोई यहाँ ऐंसा, जो बख्श दे तुमको 
... 
उसे लिफ्ट देकर, हम बुरे फंसे हैं 'उदय' 
उफ़ ! बात का बतंगड़ हो रहा है !!

Friday, April 27, 2012

सॉरी ...

एक लफंगे लडके ने लड़की की गर्दन पर 
रामपुरी चाकू अड़ा कर कहा -
आई लव यू ... 
लड़की डरी-सहमी चुप-चाप खड़ी रही 
उसने फिर से कहा -
आई लव यू ... 
लड़की ने इधर-उधर मुंडी हिला के देखा ... 
और फिर 
माथे से पसीना पौंछते हुए बोली - 
इतना ही बड़ा दादा बनाता है तो जा ... 
वो जो ... पहलवान टाईप का आदमी खडा है ... 
उसे टपका के आ ... तब दूंगी जवाब ... 
सुनकर ... लड़का जोश-खरोश में गया ... 
और पहलवान से भिड़ गया ... 
थोड़ी देर पटका-पटकी चली ... फिर ... 
पहलवान ने ... उसे पटकनी दी ... 
और चाकू छीनकर ... पेट में भौंक दिया ... 
कुछ देर बाद ... हाँथ झड़ाते हुए ... 
वह ... धीरे से चला गया !
लडके को लहु-लुहान ... सड़क पे ... 
तडफता-बिलखता देख ... 
पास जाकर ... लड़की धीरे से बोली ... सॉरी !!

महफ़िल ...


मुफ्त की चीजें भी, लेने से कतराने लगे हैं लोग 
सलाह ....... जैसे चिपक जायेगी उनसे ?
... 
न आया तेरा पैगाम, कोई रंज-ओ-गम नहीं 
सुना है, भरी महफ़िल में तुम गुमसुम-से थे ?
... 
जी चाहे, उतना कुरेदते रहो जख्म मेरे 
तुम्हारे सुकूं पे, क्यूँ अब रंज हो हमको ?

निजता ...

उनके रिवाज भी बड़े बेहिसाब हैं 'उदय' 
होते तो सामने हैं, पर बातें नहीं करते ! 
... 
तेज अंधड़ का मौसम तो कब का जा चुका है 'उदय' 
उफ़ ! फिर भी लोग हैं, जो मुंडी झुकाए बैठे हैं !!
... 
लोग खामों-खां निजता की दुहाई दे रहे हैं 'उदय' 
अगर ऐंसा ही है, तो पांव बाहर क्यूँ पड़े ?

Thursday, April 26, 2012

बड़े साहब की कविता ...

एक दिन बड़े साहब का मन हुआ 
कविता लिखने का 
फिर क्या था 
बड़े साहब ने एक धांसू कविता लिख डाली 
धांसू इतनी कि -
कविता की किताब तक छप गई 
कविता पढी किसी ने नहीं 
पर 
छपते-छपते ही एक हजार किताबें बिक गईं 
एक हजार ?
वो ... इसलिये कि -
उनके अधिनस्त एक हजार चेले-चपाटे थे 
इसलिए -
किताबें फटा-फट खरीद ली गईं 
अब 
बड़े साहब कवि बन गए हैं 
और तो और 
उनके सम्मान और पुरूस्कार की तैयारी 
जोर-शोर से चल रही है, सुनते हैं -
बड़े साहब 
प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ कवि घोषित होने वाले हैं !!

Wednesday, April 25, 2012

सफ़र ...

हे 'खुदा', जो आलम, तूने 
कदम कदम पे 
दिखाया है मुझको !
किसी और को, मत दिखाना 
यहाँ 
हर कोई, मेरी तरह 
सफ़र में 
धूप को सह न पायेगा !!

शर्त ...

जी चाहे उतने पर कतरते रहो 
हम, इरादों से उड़ान भर लेंगे !
... 
हाल-ए-दिल अपना बयां कैसे करें 
चुप रहो, उनकी ये पहली शर्त है ! 
... 
सच ! मौसम के मिजाज तो फिर भी समझ लेते हैं हम 
पर एक तुम हो ? ... उफ़ ! कब आना, औ कब जाना !!

Tuesday, April 24, 2012

महफूज ...

जो चुनाव लड़ने से 'उदय', ताउम्र कतराते रहे हैं
लो, वही सत्ता के लालच में सबसे आगे खड़े हैं ! 
... 
चलो कोई तो है 'उदय', जो खुलकर सामने है 
वर्ना ऐंसा कौन है, जो हमाम में नंगा नहीं है ! 
... 
गर संगीनों के साये में भी, वे महफूज नहीं हैं 'उदय' 
तो उन्हें समझ लेना चाहिए, कि अवाम नाराज है !!

खलल ...

कल उसने 'उदय', बेहद नुकीले शब्दरुपी दांतों से काटा है 
उफ़ ! निशां को छोडिये, दर्द उम्र भर नहीं मिट पायेगा !!!
... 
अब रंज क्या करना 'उदय', जब चोर मालिक हो गए 
बुनियाद को क्यों दोष दें, जब इमारत कच्ची हो गई ! 
... 
उन्ने हमारी जिंदगी में, कुछ इस कदर खलल डाला है 'उदय' 
कि - कब सुबह होती है, औ कब शाम, मालुम नहीं पड़ता !!

दरकती दीवारें ...

ढेरों तब्दीलियों के बाद, बामुश्किल बदल पाए हैं खुद को 
फिर भी तेरी यादें ... ...  उफ़ ! जेहन को छेड़ जाती हैं !!
... 
वह शब्दरुपी अंगारे उड़ेल कर चला गया है 'उदय' 
उफ़ ! लगता नहीं, जलन मिट पायेगी !!
... 
सच ! दरकती दीवारें बयां कर रही हैं हाल-ए-लोकतंत्र 
सख्त है बुनियाद, क्यूँ न इमारत नई खड़ी की जाए ?

Monday, April 23, 2012

पलाश ...

जी चाहे उतना घोलने दो, उन्हें जहर पानी में 
हम पीकर, उसे भी अमृत बना लेंगे ! 
... 
बिना माली, और बगैर बहारों के भी, हम खिल रहे हैं 'उदय' 
पलाश सही, पर दिल को - मन को - आँखों को, भाते तो हैं !
... 
उसने एक बार छूकर मुझे, अपना बना तो लिया है 'उदय' 
पर डर है, दोबारा न छुआ तो, कहीं मैं पत्थर न हो जाऊं ! 

Sunday, April 22, 2012

चेलागिरी ...

'शेर' लिखते रहो, किसने रोका है 'उदय' 
पर, हमारी पगड़ी तो मत उछाला करो ! 
... 
खामोशियों का मतलब, कोई बेवफाई न समझे 
सुनते हैं, उन्हें बातें नहीं आतीं !!
... 
कुछ लोगों की चेलागिरी सचमुच अनूठी है 'उदय' 
गर कोई चांटा भी मारे, तो वो मुस्कुरा देंगे !!

Saturday, April 21, 2012

शोहरत ...

न जाने क्यूँ 'उदय', आज के दौर में भी उसने ईमानदारी की ठानी है 
उफ़ ! देखते ही देखते, उसकी लुटिया तक बिक जानी है !!
... 
उफ़ ! कुछ लोग हैं 'उदय', जो फेसबुक पे भी अकड़ के बैठते हैं 
कोई समझाए उन्हें, यहाँ पांव छूने-छुआने का चलन नहीं है !!
... 
एक हम हैं 'उदय', जो जगहंसाई से बचते-बचाते फिरते हैं 
और एक वो हैं, जो जगहंसाई को भी, शोहरत समझते हैं ! 

Friday, April 20, 2012

आम और ख़ास ...

बंजर जमीं को भी 'उदय', हम अक्सर कुरेदते रहे हैं 
शायद कहीं कोई, अंकुर निकल आए !!
... 
बुलंदियां शोहरत की, यूँ ही नहीं मिलतीं 'उदय' 
रूह भी चीखी है, औ जिस्म भी टूटा है !
... 
हमें तो नहीं, पर उसे जरुर हमारी वाह-वाही की दरकार है 
बस, इत्ता-सा फर्क है 'उदय', आम और ख़ास में !!

Thursday, April 19, 2012

मंजर ...

हमारे चेले-चपाटों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है 'उदय'
खुन्नस हमसे है, हमें गरिया के चुप हो जाया करो !
...
अब क्या बताएं हम 'उदय', अपने मिज़ाज के किस्से
बस, नफ़ा-नुक्सान से, कभी मतलब नहीं रखते !
...
सामने होकर भी 'उदय', भले वो कुछ कहते नहीं हैं
पर, खामोशियों के मंजर, उन्हें खलते बहुत होंगे !

Wednesday, April 18, 2012

हुनर ...

यकीनन तुम पे नहीं, तुम्हारे दिल पे अब भी एतबार है हमको
आह सुन के हमारी, वो कराह उट्ठेगा !!
...
लू की आंधियाँ चलें, या हो अब ताप की बारिश 'उदय'
जब तक, है प्याज की चटनी का असर, किसे पर्वा है !
...
हमने तो अब तक, सिर्फ बेचने का हुनर सीखा है 'उदय'
कभी ऐंसा सौदा नहीं करते, जो नुक्सान दे जाए !!

Tuesday, April 17, 2012

हिट होने का चक्कर ...

हिट होने के चक्कर में, उसने -
एक सिपाही को बेवजह धक्का दे दिया
मगर, हिट नहीं हुआ !
फिर मौक़ा मिला भृष्टाचार के मुद्दे पर -
तहसील के बाबू को खूब खरी-खोटी सुनाई
फिर भी, हिट नहीं हुआ !
गुस्से-ही-गुस्से में
एक दिन
एक सादा समारोह में विधायक के ऊपर -
जूता उछाल दिया !
मगर, फिर भी हिट नहीं हुआ !!
अब बेचारा बहुत चिंतित है ?
कि -
ऐंसा क्या करे
जिससे रातों-रात हिट हो जाए ??

Monday, April 16, 2012

मगरूर ...

उनके जेहन में भी 'उदय', खूब ख्याली पुलाव पक रहे हैं
जिन्हें आज, कदम-कदम पर चेलों की दरकार है !!
...
वो मगरूर तो है, पर उनके लिए नहीं है 'उदय'
जो, सुबह-औ-शाम उसका नाम गुनगुनाते हैं !
...
लो, आज उन्हें भी, जिंदादिल की उपाधि से नवाजा गया है
जिनका दिल धड़कता है, तो सिर्फ खुद के फायदे के लिए !!

Sunday, April 15, 2012

कालजयी लेखक ...

क्या खूब फितरती सत्ता है हमारे मुल्क में 'उदय'
चेहरों और दिमागों में, ताल-मेल नहीं दिखता !!
...
क्या कल वे भी कालजयी लेखक कहला जायेंगे 'उदय'
जो आज, झूठी वाह-वाही के आदि हुए हैं ??
...
जिन्हें आज चेले-चपाटों की इबादत ने 'खुदा' बना रक्खा है 'उदय'
कहीं कल उन्हें, बा-अदब 'आदाब' के लाले न पड़ जाएं !!

Saturday, April 14, 2012

जी-हुजूरी ...

जिनकी आन के लिए हमने तलवार उठाई थी 'उदय'
गर, वही खामोश हों, तो क़त्ल हम किसका करें ??
...
लू की लपटों में भी, हम गाँव में सो जाते थे अक्सर
पर आज, शहर की चांदनी रातें, भी सोने नहीं देतीं !
...
साहित्य में 'उदय', क्या जातिगत भेद-भाव की गुंजाईश है ?
शायद नहीं ! पर हाँ, किसे इंकार है बुनियादी जी-हुजूरी से ??

Friday, April 13, 2012

हाय-तौबा ...

विशेष टीप :- विगत दिनों एक "बोल्ड कविता" पर खूब हाय-तौबा पढ़ने को मिली ... पता नहीं वह "बोल्ड कविता" है भी या डिलीट कर दी गई ... किन्तु कुछेक बुद्धिजीवियों की सोच व विचारधारा / हाय-तौबा ... से भी कुछ सीखने को मिलता है ... मैं तो इतना ही कहूंगा कि जो विरोध हुआ वह जायज नहीं था क्योंकि उससे भी जियादा बोल्डनेस पढ़ने को मिलती रही है, और शायद आगे भी पढ़ने मिले ... मैंने उस "बोल्ड कविता" से भी अधिक "बोल्ड कविता" पढी है जिसकी खूब सराहना भी हुई है ... चूंकि कभी कभी मुझे भी कुछ "भूत जैसा" कुछ सवार हो जाता है तो मैं भी "बोल्ड टाईप" का कुछ लिखता रहा हूँ ... और कभी कभी कुछेक मित्रों के आग्रह / सुझाव पर उसे हटाना भी पडा है किन्तु किसी के विरोध पर कभी कुछ नहीं हटाया ... वजह यह है कि हरेक लेखक में विरोध सहने की शाक्ति भी होना चाहिए ... खैर, प्रवचन बंद करते हुए असल मुद्दे पे आते हैं ... वैसे उस "बोल्ड कविता" में ऐंसा कुछ ख़ास बोल्ड नहीं था जिसका विरोध किया ही जाए क्योंकि आज के वर्त्तमान दौर में कुछ बातें तो इतनी कॉमन हो गई हैं कि उन्हें बच्चे-बच्चे भी समझने लगे हैं ( यहाँ पर बच्चे-बच्चे से तात्पर्य उन बच्चों से नहीं है जो वास्तव में अभी बच्चे हैं ) ... वैसे -
०१ - विस्पर, कंडोम, व अन्य शक्तिवर्धक दबाइयों के विज्ञापनों को देखकर बच्चे जब उनके बारे में सवाल करते हैं तब हम उन सवालों के गोल-मोल जवाब देकर बचने का प्रयास तो कर सकते हैं किन्तु उनके सही जवाबों से हम उन्हें ज्यादा देर दूर नहीं कर सकते !
०२ - टेलीविजन व फिल्मों के चुम्बन, आलिंगन व रात्री मिलन के अर्धनग्न दृश्यों को देख-देख कर वो क्या मतलब समझ रहे हैं, क्या हम इससे इंकार कर सकते हैं ?
०३ - और फिर, फेसबुक व ब्लोग्स पर कोई बच्चे तो हैं नहीं, चलो माना कि भाई, बहन, माँ, बाप, बेटे, बेटियाँ जरुर हैं जो सभी इन शब्दों व भावों से भलीभांति परिचित हैं ... और अगर परिचित नहीं हैं तो उन्हें परिचित होना चाहिए !
०४ - और यदि कोई कविता या लेख में सम्भोग का हू-ब-हू साहित्यिक चित्रण कर भी देता है तो इसमें हाय-तौबा मचाने जैसी क्या बात है ... फिल्मों व टेलीविजन सीरियलों के घोर अश्लील चित्रांकन पर हाय-तौबा क्यों नहीं ? मंदिरों व एतिहासिक स्थलों पर लगी सम्भोग मुद्रा की मूर्तियों पर हाय-तौबा क्यों नहीं ? शिवलिंग पूजन पर हाय-तौबा क्यों नहीं ?
( तो प्रस्तुत है एक और बोल्ड कविता जो विगत दिनों शिकार हुई "बोल्ड कविता" तथा बहुत पहले हिट हुई "महा बोल्ड कविता" के शब्दों के आधार पर रची गई एक और सवालिया कविता ... )

हाय-तौबा ...
----------

एक दिन, एक कवियित्री ने -
लिंग
हस्तमैथुन
वीर्य
जैसे जटिल शब्दों को पिरोकर
एक रचना रची, और रचते ही -
अमर कर ली !
खूब वाह-वाही भी बटोरी !!
न सिर्फ पुरुषों की वरन महिलाओं की भी !!!
चहूँ ओर
तारीफ़-पे-तारीफ़ होती रही !
क्यों, क्योंकि -
वह रचना कवियित्री ने रची थी !!
ठीक कुछ इसी तरह, एक दिन
हमने भी एक रचना -
चुम्बन
आलिंगन
समागम
जैसे सरल व सहज शब्दों के सांथ रच दी
जो
अश्लील मान ली गई !
और
पूरी की पूरी रचना ... नकार दी गई !!
एक बोल्ड पर जय जयकार
और दूसरी बोल्ड पर हाय-तौबा ...
जय हो ... बुद्धिजीवियों की ... जय हो !!!

Thursday, April 12, 2012

कसौटी ...

सच ! फर्क इतना ही है, उनमें और हम में 'उदय'
कि वो दिल का काम भी, मन से पूंछ के करते हैं !
...
अच्छे दिल की 'उदय', कोई कसौटी तो बताओ
खुद कैसे कहें, 'खुदा' ही जानता है नेक नियति हमारी !!
...
न जाने क्यूँ ? दोष आईने में ढूंढ रहे हैं लोग
वो तो अब, सीरत भी सूरत के संग नजर आने लगी है !

आग के शोले ...

जला दो, दफ़्न कर दो, आज सारी बेटियाँ तुम
फिर देखें, कल कैसे बसर करते हो तुम जिंदगी अपनी ?
...
टोपीबाजी भी एक गजब का हुनर है 'उदय'
पर ये, हरेक शख्स के बस की बात नहीं है !
...
अक्सर ये सुनते थे हम, कि वो आग के शोले हैं 'उदय'
मगर आज, सांथ होकर भी अंधेरों में नजर नहीं आए !

Wednesday, April 11, 2012

हाल-ए-मुफलिसी ...

कभी इस पार, तो कभी उस पार
बता आखिर तेरी रज़ा क्या है ?
...
'उदय' कहता है, जख्मों को छिपा के रखना यारो
जो भी देखेगा, कुरेद कर चला जाएगा !
...
हाल-ए-मुफलिसी किस किस से हम छिपाते 'उदय'
इसलिए, गुमनामियों में भी बसर की है जिंदगी !!

Tuesday, April 10, 2012

तकरार ...

न सरहद, न जमीं है वजह, 'उदय' आज तकरार की
ज़िंदा रहने के लिए, हमें कुछ रंग तो बदलने होंगे !!
...
होने को तो, मुर्दे भी ज़िंदा हो जाते हैं 'उदय'
पर, कोई ये न भूले, कि हम अभी ज़िंदा हैं !
...
'उदय' कहता है, जख्मों को छिपा के रखना यारो
जो भी देखेगा, कुरेद कर चला जाएगा !

तसल्ली ...

लोग कहते हैं, बड़े हौले से
कि -
वक्त ठहर गया है आज !
पर
वक्त कब ठहरा है ?
जो आज ठहर जाएगा 'उदय'
ये तो
वक्त की मार से
खुद को
खुद से छिपाने की
छोटी-सी तसल्ली भर है !!

Monday, April 9, 2012

जंग ...

न जाने क्यूँ ? तेरे वादों पे बार बार एतबार हो जाता है हमको
जबकि जानते हैं हम, तुम कितने फरेबी हो !!
...
गर, ये जंग सरहदों की होती, तो कब की सुलझ गई होती
जंग है तो 'उदय', पर सिर्फ ख्यालातों की है !!
...
सच ! अब किसे क्या मिल जाएगा आईना दिखा कर
कौन है जो नहीं जानता सूरत में छिपी सीरत अपनी ?
...
कोई भी तो बेखबर नहीं है 'उदय' जहन्नुमी यातनाओं से
मगर फिर भी, कदम-दर-कदम गुनाह कर रहे हैं लोग !!

Sunday, April 8, 2012

शैतानी हसरतें ...

हे 'ख्वाजा' ...
तेरी चौखट पे, बंदिश नहीं मुमकिन
पर, दुआ इत्ती-सी है मेरी
कि -
दुआ की आड़ में
कभी, किसी शैतान की
शैतानी हसरतें
क़ुबूल न हों ! ... आमीन !!

एतराज ...

अब, इसमें, कहीं कोई शंका नहीं है, कि -
भेड़िये, ओढ़ के खाल शेर हुए हैं !
...
सच ! बा-अदब,हम उन्हें भी सलाम करते हैं 'उदय'
जिन्हें सिर्फ, अपने आकाओं की कलम से प्यार है !
...
गर, तुझे एतराज है मेरी खामोशियों पे
तो आके मुझसे लिपट क्यूँ नहीं जाते ?

Saturday, April 7, 2012

फरमान ...

काश ! हम भी झूठ बोलने के हुनर में माहिर होते 'उदय'
तो आज, इस भीड़ में तन्हा नहीं होते !!
...
लो, आज उसके क़त्ल का फरमान जारी हो गया
जो सुबह-औ-शाम, मजहबी दीवारें गिरा रहा था !
...
कहीं, ये वही हाँथ तो नहीं हैं 'उदय'
जो ख़्वाबों में रोज हमें छूते हैं !
...
जा के कोई कह दे, 'उदय' उनके लिए नहीं लिखता
जिन्हें, बाप के सिबाय कोई और नहीं भाता !!

Friday, April 6, 2012

मंजर ...

टुच्चों
लुच्चों
चोर-उचक्कों के घर
रोज
खूब खिचड़ी पक रही है 'उदय' !
और
अच्छे-सच्चों के घर
अक्सर
कभी रोजे, तो कभी उपवास के
हैं बहानों के मंजर !!

Thursday, April 5, 2012

रु-ब-रु ...

जब जब तुझे देखता था
जेहन में
एक धुंधली-सी
अजीब-सी
तस्वीर उमड़ पड़ती थी !
आज जब देखा
रु-ब-रु
एक भेड़िये को
तो
सच ! तेरी याद आ गई !!

बुराई ...

तेरे अल्फाजों में साफगोई नजर नहीं आ रही है दोस्त
तू तारीफ़ में है, या नाराजगी है !!
...
शायद, कहीं कुछ थी बुराई, अन्दर ही मेरे
मैं अच्छा करता रहा, और बुरा होता रहा !
...
आज फिर सारे दिन 'उदय', हम इंतज़ार करते रहे उनका
सच ! कुसूर अपना ही था, जो झूठों पे एतबार था हमको !!

Wednesday, April 4, 2012

दम ...

चुनावी नतीजों ने, उनके गुरुर को बेदर्दी से तोड़ा है
वर्ना ! आज भी, गाँव में नहीं दिल्ली में होते हुजूर !!
...
बहुत भारी तजुर्बा है, ऐंसा दम भरते थे जनाब
ज्यों ही नाम पूंछा हसीना ने, पसीना आ गया !
...
सच ! एक अर्से से, जिसे रोज दुआओं में मांग रहे थे हम
लो, आज उसने ही, किसी और को मांग लिया है हमसे !

गुरुर ...

चिटठी भेज कर उन्ने, हमें दिल्ली बुलाया है 'उदय'
काश ! ट्रेन में चिटठी, टिकिट का काम भी करती !!
...
सच ! तू अपनी खुबसूरती पे गुरुर न कर
सुबह से शाम होने में समय नहीं लगता !!
...
देर-सबेर 'उदय', अपनी भी हरेक मंशा पूरी होगी
बस, चलते रहने के लिए, हौसले की दरकार है !

Tuesday, April 3, 2012

रिश्ते ...

सच ! तेरी तारीफ़ करूँ, या तेरे मंसूबों की
जुबां पे कुछ, तो आँखों में कुछ और है !!
...
इस शहर में किसे आईना दिखाएँ हम 'उदय'
सच की आज किसे दरकार है ?
...
बा-अदब तेरे जज्बे को सलाम
कम से कम रिश्ते को तूने दोस्ती का नाम तो दिया !

खामों-खां ...

सच ! जी तो मेरा, कभी का तुझसे मिलने को बेताव था
बस, तेरे इसी, एक ईशारे की दरकार थी मुझको !!
...
देखना ! बात ही बात पे, हर किसी से झगड़ मत पड़ना
वो तो हम थे, जो तेरे आदि हुए थे !!
...
हम भी खामों-खां खुद को 'खुदा' समझ रहे थे 'उदय'
और ! एक रोते हुए बच्चे को भी चुप करा नहीं पाए !!

Monday, April 2, 2012

लाल सलाम ...

घने जंगलों में ... बीचों-बीच ...
शहर से दूर ... शोर-गुल से दूर
सिर्फ ... पंद्रह बन्दूक धारियों की एक टोली
जिसे "नक्सली दलम" कहा जाता है
ने एक जन अदालत लगाई
गाँव ... आस-पास के आठ-दस गाँव के
प्रमुख, प्रधान, मुखिया, पंच, सरपंच, पटेल, कोटवार
महिलाएं, पुरुष, बच्चे ...
छोटे, बड़े, बुजुर्ग ... बुलाये गए ...
सब ... हाजिर हैं ...
देख रहे हैं ... सुन रहे हैं ... सब के सब खामोश हैं
बंदूकों के साये में ... खौफ ... दहशत ...
एक बन्दूकधारी कमांडर ... दहाड़ते हुए ...
ये भूखनपल्ली गाँव का सरपंच ... दुकालू ... मुखविर है ...
पुलिस का मुखविर ...
ठीक अगले ही पल ... उसे ...
इमली के पेड़ पर
फांसी पर लटका दिया ... फिर ... एक जोर की दहाड़ ...
पुलिस के मुखविरों का यही अंजाम होगा ...
चारों ओर ... सन्नाटा ... पसर गया
ठीक तभी ... एक बन्दूकधारी ने
दहाड़ते हुए ... लाल सलाम का नारा लगाया
अगले पल ... लाल सलाम ... लाल सलाम ... लाल सलाम ...
के नारे गूंजने लगे ...
सारे लोग ... सन्न ... चारों तरफ ... खौफ ... दहशत ...
मन ही मन सोचते हुए ...
कि -
क्या सचमुच ... दुकालू पुलिस का मुखविर था ?

प्रिंट मीडिया पर कडुवा सच ...

रायपुर, १ अप्रेल, २०१२ ... "बिहिनिया संझा" ( समाचार पत्र ) में प्रकाशित मेरी रचना ... आभार ...
...
एक दिन मैंने
बिलकुल वैसी ही कविता लिखी
जैसी किसी एक विदेशी लेखक ने लिखी थी
उसकी लिखी कविता -
हिट हो गई !
और मेरी कविता -
अश्लील घोषित कर दी गई !!

Sunday, April 1, 2012

ढंग ...

गर, जी भर गया था, तो मुझसे कह दिया होता
खामों-खां, झूठे इल्जामों की जरुरत क्या थी ?
...
हाँ, हम लिखते हैं, छपवाते हैं, और खुद बाँट देते हैं
ये तो एक ढंग है अपना, अंधेरों में जगमगाने का !!

गुमां ...

तुझपे भी उतना, जितना खुद पे एतबार है हमको
पर, 'सांई' की मर्जी, तो 'सांई' ही जाने है !!
...
सच ! न कर गुमां, तू अपनी खुबसूरती पर
दिल हमारा तो, तेरी अदाओं का कायल है !
...
देखना ! मेरा नाम लेते लेते, तेरी जुबां न लड़खड़ाए
भले चाहे तू दूजे पल, मुझे अपना रकीब कह देना !!