Tuesday, February 28, 2012

... कोई खुद को मालिक नहीं कहता !

सच ! घने तूफ़ान से गुजरे, बड़े ईमान से गुजरे
तेरे साँसों के तूफाँ ने, हमें बेईमान कर डाला !!
...
कभी औरत, तो कभी पुरुष, खुद को गुलाम कहते फिरे है
उफ़ ! क्या माजरा है, कोई खुद को मालिक नहीं कहता !!
...
लो, इसे कहते हैं कुछ न कर के भी कुछ कर लेना
खामोशियों में भी, हमने तुमसे ढेरों बातें की हैं !!!
...
उफ़ ! ये तूने शर्त रखी है, या सजा दी है
क्या खामोश रहकर भी बातें होती हैं ??

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सजा उन खामोशियों की,
छोड़ कर जिनको यहाँ हम..