Monday, February 27, 2012

... नहीं तो गुलामी क़ुबूल हो !

होगा वही, जो वो चाहेंगे
स्वयंभू हैं, किसी की न कभी वो बात मानेंगे !
...
चलो, कोई तो है जिसे, तुमने सरताज माना
भले चाहे वो छूकर पांव तेरे, सिर तक आया !
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सुना है ! उसकी नजरें ढूँढती हैं राह चलते ही मुझे
देखना एक दिन, मैं उसे मिल जाऊंगा !
...
सच ! लग रहा है जीते-जी मैं कवि नहीं कहलाऊंगा
न तो कोई छापेगा मुझे, और न मैं खुद छपवाऊंगा !
...
क्या गजब फरमान जारी हुआ है 'उदय'
मान जाओ, नहीं तो गुलामी क़ुबूल हो !

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