Wednesday, January 25, 2012

... तुम ही तुम नजर आईं !!

नीलामी में, न जाने कौन-सा जूता, करोड़ों में बिक जाए
पांव से हाँथ में, हाँथ से मंच पे जाते ही कीमती हो जाए !
...
तुम न होकर भी, स्मृतियों में अंकुरित रहीं थीं
सच ! आज तन्हाई में तुम ही तुम नजर आईं !!
...
अब किसे देशी, किसे विदेशी समझें
जिसको देखो, वही मौक़ा परस्त है !
...
काश ! जिंदगी की डोर, इतनी नाजुक न होती
तो हम जैसा चाहते, वैसा खींच लेते !
...
दिलों की धड़कनों पर, जोर अपना कब रहा है
'खुदा' जाने तुमको देख के, वो क्यूँ मचलती हैं !

7 comments:

***Punam*** said...

काश ! जिंदगी की डोर, इतनी नाजुक न होती
तो हम जैसा चाहते, वैसा खींच लेते !

kash...........

kshama said...

काश ! जिंदगी की डोर, इतनी नाजुक न होती
तो हम जैसा चाहते, वैसा खींच लेते !
wah!

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami said...

"अब किसे देशी, किसे विदेशी समझें
जिसको देखो, वही मौक़ा परस्त है!"
बहुत खूब!

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन रचना।
गहरे भाव।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

जय हिंद... वंदे मातरम्।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मौकापरस्त ही तो कामयाब हैं.

मेरा मन पंछी सा said...

गहरे भाव लिये बेहतरीन रचना है
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.

प्रवीण पाण्डेय said...

प्यार का सावन जब छाता है,
तुम ही तुम दिखने लगती हो..