तुम क्या हो ... मैं समझना चाहता हूँ !कभी तुम में, दिखती है,
मुझेसूर्य सी गर्मीकभी तुमचाँद सी शीतल लगे हो !
तुम क्या हो ... कभी तुम एक-
सी, दिखती नहीं मुझकोकभी देखा,
तुमझरने सी खिल-
खिल, बहती लगे होतो,
कभी,
फिरझील-
सी गहरी लगे हो !
तुम क्या हो, क्यों हो यही, मैं समझना चाहता हूँ
कभी छू-कर
मुझे, तुम छाँव सी शीतल करे हो
तो, कभी, फिर
छूकर, मुझे
तुम आग का शोला करे हो !
तुम क्या हो, क्या-क्या, नहीं हो
कभी तुम, रात में, मुझको
काम की देवी लगे हो
सुबह देखूं, तो तुम मुझको, फिर
लक्ष्मी की मूरत लगे हो !
तुम क्या हो ...
बताओ, तुम, खुद मुझे ही
या, फिर, मुझे
तुम, कुछ घड़ी का वक्त, जज्बा, हौसला, दे दो
मैं तुम में डूबकर, तुम्हें समझना चाहता हूँ !
कि -
तुम, क्यों, मुझे
चाँद, सूरज, धरा, अम्बर, नीर, पवन, पुष्प, सुगंध
नारी, अप्सरा, देवी, सी लगे हो !!