Thursday, June 30, 2011

कफ़न का टुकड़ा ...

गर नहीं लड़ा मैं आज भयंकर तूफानों से
कल छोटी फूंको से भी मैं गिर सकता हूँ !

है कद-काठी मेरी, आज भले छोटी ही सही
पर जज्बातों के तपते तूफां लेकर चलता हूँ !

जब नहीं डरा, खुद के दहकते जज्वातों से
फिर कैसे झूठे अल्फाजों से डर सकता हूँ !

बंधने को बंध जाते, लोग प्रेम के बंधन में
मैं तो माँ धरती का कर्ज चुकाते चलता हूँ !

जब नहीं डरा लड़ने से, फिरंगी शैतानों से
फिर कैसे घर के हैवानों से डर सकता हूँ !

होंगे लोग मौत के डर से, घर से निकलें
मैं सिर पे बाँध कफ़न का टुकड़ा चलता हूँ !!

... "चवन्नी" गई तेल लेने !!

मंत्री जी ने अपने फ़ार्म हाऊस पर आनन-फानन में पार्टी का आयोजन किया ... सन्देश पाकर पहुँच गए अपुन भी ... आखिर बचपन के मित्र जो थे किन्तु इस अचानक आयोजित पार्टी का मकसद समझ से परे था इसलिए अपुन ने भी आव देखा न ताव, और खटाक से पूंछ लिया मंत्री जी से, क्या बात है भाई साहब आज अचानक पार्टी-सार्टी ! ... हाँ यार, आज खुशी का दिन है इसलिए सोचा की क्यों न आज ही इन्जाय किया जाए ... अपुन बोला, ठीक है भाई साहब इन्जाय करना तो बनता है पर खुशी का कारण तो पता हो ! ... अरे यार अब तुझ से क्या छिपा है आखिर तू बचपन का यार है सांथ सांथ बचपना गुजरा है ... हाँ वो तो ठीक है, पर अपुन के समझ नहीं आया, खुशी वो भी अचानक, ये कहाँ से आ टपकी ... अरे यार याद है तुझे, आज से लगभग चालीस साल पहले, जब मुझे विधानसभा का टिकट मिलने वाला था सारे इलाके में हो-हल्ला हो गया था उस समय मुझे रुपयों की जरुरत थी और मैं रुपये उधार लेने गाँव के सेठ धनीराम के पास गया था उस समय तू भी तो था सांथ में, याद है तुझे उस स्साले सेठ ने मुझे उधार देने से मना कर दिया था, और याद है क्या बोला था साला - "चवन्नी की औकात नहीं है और आ गए रुपैय्या उधार लेने" ... हाँ भाई साहब याद आया अपुन को ... हाँ यार उसी दिन से "चवन्नी" मेरे दिमाग में खटक रही थी, रही बात उस सेठ की, उसे तो उसकी औकात दिखा ही दी थी चुनाव जीतने के बाद, पर वो "चवन्नी" वाला तीर अन्दर तक चुभा हुआ था, जब भी देखता था "चवन्नी" को, तो देखते ही खून खौल जाता था, अब समझा, आज उसी खुशी की पार्टी है ... हाँ ... हाँ ... हाँ, समझ गया, तो इसका मतलब ये है कि आज से जो "चवन्नी" बंद हुई है वो तेरी मेहरवानी से ... हाँ, अब समझा तू, आज यही है अपनी खुशी का कारण, साली अब न ये "चवन्नी" रहेगी और न ही वो "औकात" वाली बात, चल छोड़, बात आई-गई हो गई, आ इन्जाय करते हैं, चीयर्स ... चीयर्स ... यार तू तो बहुत "चालू आईटम" निकला, मेरा मतलब भाई साहब ... चल छोड़ न यार, जाने दे, अब तो "चवन्नी" गई तेल लेने, चल आजा ... चीयर्स - चीयर्स ... !!

Wednesday, June 29, 2011

काले बंदर !

चतुर चालाक, हुए हैं सब
हों जैसे बंदर की जात
कूद रहे हैं, उछल रहे हैं
एक डाल से दूजी डाल
जिस डाल पे फल लटके हैं
वही डाल हुई, सबकी आज !

बंदर हैं तो कूदेंगे ही
फल खाने को झपटेंगे ही
बंदर तो बंदर होते हैं
आदत से होते लाचार
कूद कूद और उछल उछल कर
सत्ता के हिस्से हैं आज !

कभी आगे, कभी पीछे
खड़े हैं सब, जोड़ के हांथ
उछल-कूद और खी-खी करते
पहुंचे हैं सब बड़े बाजार
दिल्ली में सजता है यारो
अपने देश का बड़ा बाजार !

बड़े बाजार में मिलते सबको
बंगले-गाडी मुफ्त में यार
होते सब के ठाठ बड़े हैं
पर होते सरकारी ठाठ
ठाठ - बाठ के खातिर ही
करते सब, हाँ में हाँ आज !

एक नहीं ... दो नहीं ...
चारों बंदर, एक-दूजे के
भाई हुए हैं, दोस्त हुए हैं
भ्रष्ट हुए हैं, मस्त हुए हैं
कूद रहे हैं, झूम रहे हैं
मौज हुई है सबकी आज
नहीं, नहीं, ये लाल नहीं हैं
हैं सबके, मुंह काले आज !!

असहाय लोकतंत्र !

बहुत हुआ, बहुत हो गया
अपमान, पर अब तो
तुम
, मुझे बख्श दो
मार दो, जला दो, दफना दो
जो मन में आये, कर दो
इन हालात में, किससे कहूं
क्या कहूं, कैसे कहूं
कि मैं कितना असहाय हूँ !
कल की ही बात है
मेरे ही अंग
तीनों-चारों गुन्ताड में
विचार-मंथन में लगे थे
क्या करें, कैसे करें
बहुत हो-हल्ला हो रहा है
कुछेक चीखने-चिल्लाने पर
उतारू हो गए हैं
कहीं ऐसा हो कि
फटने-फाड़ने पर उतर आएं
उन्हें, कोई उपाय, नहीं ...
पर, मुझे, है पता
कि वे उपाय खोज लेंगे
या फिर, खुद-ब-खुद
चिल्ल-पौं, थम जायेगी
पर मेरा क्या , मैं तो
शर्मसार होता ही रहूँगा
उफ़ ! ये भ्रष्टाचार ... कालाधन ...
सच ! मैं एक असहाय लोकतंत्र हूँ !!

... सरकते हुए, गिर गई ... !!

कविता : सिगरेट !

धुंआ, उड़ता रहा
और हम पीते रहे
मारते रहे, कश पे कश
एक के बाद एक, कश !
ट्रैन ... आई नहीं थी
रात के ढाई बजे
हम खड़े थे
इंतज़ार ... करते भी क्या
पीते रहे, कश पे कश, मारते रहे !
तभी, अचानक ही
एक बुजुर्ग ...
सन्नाटा सा छा गया
हम, दोनों के बीच ...
हाँथ की उँगलियों से
सरकते हुए, गिर गई
जमीं पर, खुद खुद ... सिगरेट !!

Tuesday, June 28, 2011

... हुई जब रात, ढेरों सितारे मिल गए !

प्रेस कान्फ्रेंस ! देश की अवाम को, फ़ायदा हो, या हो
आमने-सामने बैठे, हरेक शख्स को फ़ायदा तो तय है !
...
सच ! मैं नादां हूँ मगर उतना नहीं हूँ
कि खुद को ही, किसी से बड़ा समझूं !
...
मुर्दे ज़िंदा हैं किताबो में, प्रकाशक के फायदे के लिए
उफ़ ! न बहस, करार, नुक्ता-चीनी का आलम !
...
तुम समेट के रखना, यादों के, टूटे-बिखरे हुए टुकडे
तुम से दूर होकर, कहीं ज्यादा तुम्हें अब चाहता हूँ !
...
कहीं कुछ तो छिपा है, कंदराओं में
वरना यूं ही, सर-सराहट नहीं होती !
...
तो मैं तेरा ही था, और ही था किसी और का
सफ़र था, रास्ता था, मंजिलों से मेरा वास्ता था !
...
ढली जब शाम, तो लगा कुछ खो दिया हमने
हुई जब रात, ढेरों सितारे मिल गए !
...
नहीं था रंज, तेरे रूठ जाने का
लगा ऐसे, ज़रा जल्दी हुई तुमसे !
...
अजब हैं लोग बस्ती के, मुझे बदनाम करते हैं
दिखाता हूँ वही करतब, जो सारे लोग करते हैं !

... उफ़ ! सारा सिस्टम कंटीला है !!

फर्क इतना ही है यारा, अमीरी और गरीबी में
कोई बिंदास सोता है, किसी को नींद नहीं आती !
...
रंगों से सजाई है, क्या खूब सजाई है दुनिया किसी ने
कहीं ख्याल, तो कहीं जज्बात, हैं रंगों में बिखरे हुए !
...
अब मुंह छिपाने, और सिर झुकाने का दौर नहीं रहा
सरे आम घूमते हैं, दागी : नेता, अफसर, दुराचारी !
...
जरुरत किसे है, और कौन चाहता है मजबूत लोकपाल
अन्ना, तुम, हम, या चहूँ ओर बिखरे भ्रष्ट नेता हमारे !!
...
हम कर तो रहे थे प्यार, बिना शर्तों के ही
पर हो गए मजबूर, तेरी शर्तों पे हम !

...
रिमझिम रिमझिम फुहारों संग, मन मेरा मचला जाए
तुम जाओ बारिश बन कर, तन मेरा है सूखा जाए !
...
चलो कुछ दिया ही है, भले झूठा सही
वरना लोग तो लूटने पे उतारू हैं !
...
हैं कुछ लोग जो आलोचना में मस्त हुए हैं
उफ़ ! समालोचना से उन्हें परहेज क्यूं है !
...
जाने कौन-सा चेहरा, है छिपा तस्वीर में तेरी
जो दिखता है, वो मुझे असली नहीं दिखता !
...
किसे उखाड़ें, और किसे उखाड़ें
उफ़ ! सारा सिस्टम कंटीला है !!

Monday, June 27, 2011

... तेरा होता मगर, सिर्फ तेरा नहीं होता !!

होने को तो जिन्दगी खुद ही पाठशाला है
गर नहीं है तो, खुद कोई शिक्षक नहीं है !
...
काश ! हमारा भी कोई तो पता होता, भले छोटा-बड़ा होता
कोई एकाद तो होता, जो हम तक पहुँच गया होता !
...
शराब के प्यालों में डुबकियां लगा रहे हैं, नेता और अफसर
उफ़ ! यही मक्का, यही काबा, यही अब कुम्भ हुआ है !
...
हंसी वादियों में, हंसी चेहरे, और हंसी जज्बात हैं
मोहब्बत है, दो दिलों में, और झूमते ख्यालात हैं !
...
क्या हुआ जो योजनाएं कागजों पे हैं
सच ! हैं तो सही, क्या यही कम है !!
...
रंगों की दुनिया, क्या खूब सझाते हो तुम 'उदय'
कमी होती है तो, खुले जज्बात नहीं होते !!
...
अगर हम चाह लें तो, क्या कुछ कर नहीं सकते
नहीं चाहें, तो फिर कुछ कर भी नहीं सकते !
...
कोई छोटा, तो कोई बड़ा, खुद को मान बैठे
फलसफे हैं भावों के, छोटे-बड़े उभर आते हैं !
...
बा-अदब बैठे रहे, तेरे आगोश में हम
सांसें तपते रहीं, तुम समझे हम !
...
अगर होता 'खुदा' तो, फिर मैं क्या नहीं होता
तेरा होता मगर, सिर्फ तेरा नहीं होता !!

युवाशक्ति !

नहीं मशालें, इन हांथों में
ये खुद ही चिंगारी हैं
सोने की लंका हो चाहे
या फिर महल हों लोहे के
जल जाएंगे, मिट जाएंगे
हो जाएंगे ख़ाक सभी !

देखो, संभलो, मान भी जाओ
भ्रष्टाचार को भूल भी जाओ
कालाधन वापस ले आओ
गर नहीं हुआ, ऐसा तुमसे तो
फिर संग्राम तो होना है !

आज खड़े हैं, संग अन्ना के
सत्य-अहिंसा के पथ पर
गर, कल बन बैठे युवा देश के
आजाद, भगत, सुखदेव, बोस
फिर महासंग्राम भी होना !

आज समय है जाग भी जाओ
भ्रष्टाचारी कुम्भकर्णों
भूल जाओ, तुम भस्मासुर -
और रावण जैसे ख्यालों को
आज समय है, आज घड़ी है
सामने सच्ची राह पडी है !

गर पकड़ी, आज भी तुमने
वही सब, फिर होना है
जो हुआ था रावणराज का
और सोने की लंका का !

जाग भी जाओ, मान भी जाओ
आज, तुम्हें, नहीं कुछ खोना है
बस, भ्रष्टाचार मिटाना है
बस, भ्रष्टाचार मिटाना है !!

Sunday, June 26, 2011

... इंग्लिश भी मैं पढ़ लेता, हिन्दी भी मैं पढ़ लेता !

कभी मिट्टी, कभी सोना, कभी कुछ और होता है
अगर होता भी है पत्थर, तब तू 'रब' होता है !
...
उफ़ ! तो बेचे गए, और ही खरीदे गए
मोल जिस्म का लगा, जज्बात अनमोल रह गए !
...
सच ! तुम्हारा रंग, कहां मिलता है, रंग से मेरे
तुम आसमानी हो, और मैं ठहरा, रंग काला !
...
उठा नजर, मत देख मेरे हांथों को
देख सकती है तो देख, दिल ही 'गुलाब' है मेरा !
...
किसी ने छिपा ली है नजर, देख कर मुझको
बा-अदब देखती है, छिप-छिप कर मुझको !
...
जन्म, कर्म, फल, लकीरें, और रंग दुनिया के
कहीं बेरंग दिखती है, कहीं सतरंगी है दुनिया !
...
गर होतीं जेब कफनों में, फिर मुर्दे दफ़्न होते
पड़े होते, सड़े होते, दर और दीवार में सब !
...
जिन्दगी के सफ़र में, हर घड़ी, रुतें बदलती हैं
कभी देखो तो उलझन है, कभी आशाएं ढेरों हैं !
...
सच ! गोली है, बम है, और ही है तोप का गोला
अगर कुछ है, लेखन में, तो कविता, है आग का शोला !
...
काश ! मैं इतना पढ़ा होता, तेरे शब्दों को समझ लेता
फिर इंग्लिश भी मैं पढ़ लेता, हिन्दी भी मैं पढ़ लेता !

Saturday, June 25, 2011

चौखट ...

मैं क्या हूँ, कुछ भी नहीं हूँ
मगर तू है, बहुत कुछ है !
फर्क गर है, दोनों में
जमीं और आसमां सा है !

तू डरता है, बुलाने से
मैं आने में, सहमता हूँ !
आने को, तो मैं चला आता
बिना बुलाये, महफ़िल में !

सच ! नहीं डरता मैं आने से
तेरी, ऊंची हवेली में !

चिंता है, तो बस इतनी
कहीं सिर फूट जाए
तेरी चौखट से टकरा कर !!
...
सच ! नहीं डरता मैं आने से, तेरी ऊंची हवेली में
कहीं सिर फूट जाए, तेरी चौखट से टकरा कर !
...

... तुम चाहे, जो चाहे कर लो !!

बदले हैं, बदलेंगे
तुम चाहे, जो चाहे कर लो
भ्रष्ट हुए, तो क्या हुए
देश हमारा, राज हमारा
जनता, नेता, खेल हमारा
हम से भिड़ना, दोबारा
एक, दो, तीन, ... नहीं
सैकड़ों-हजारों को निपटायेंगे
जो भी आया, राह में अपने
उसे दांतों चने चब-बायेंगे
पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस
सबके दाम बढ़ाएंगे
सीडब्लू हो, या हो टूजी
जो होता है, होने दो
चलता है, सब चलने दो
देश हमारा, राज हमारा
बदले हैं, बदलेंगे
तुम चाहे, जो चाहे कर लो !!

Friday, June 24, 2011

उफ़ ! ये जन लोकपाल बिल !!

अरे भाई ... भ्रष्टाचार और ...
ये जन
लोकपाल बिल
अपने आप में एक
खतरे की घंटी है
घंटी क्या, घंटाघर है
समर्थन करने से
राजनीति खतरे में
और विरोध करने से
सरकार खतरे में
क्या करें !
एक तरफ कुआ
तो दूजी तरफ खाई है
गिरना तो लगभग तय ही है
हपट के गिर जाएं
या धक्के से गिर जाएं
क्या करें, बताओ
हाँ भाई हाँ, सरकार खतरे में है
सिर्फ सरकार नहीं, जमी-जमाई राजनीति भी
जाओ, कोई तो समझाओ जाकर
अरे ... हाँ भई ... अन्ना को
हमारी सुन नहीं रहा है
पर, शायद, मुमकिन है
किसी किसी की, तो जरुर सुन ले
कोई तो ... मना लो ... जाकर
कहीं हमारी, चेले-चपाटियों
और हम से जुड़े पिछलग्गुओं की
दुकानें बंद हो जाए
कहीं लेने के देने ...
तो कहीं रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएं
उफ़ ! ये जन लोकपाल बिल !!

... कुर्बानी का बकरा बनने में हर्ज ही क्या था !

सरकार को मौक़ा मिला था खुल कर रंग जमाने का
मगर अफसोस, अब खुदी को आजमाने पे उतारू है !
...
जिन्होंने जान कर ही, कान में तेल डाल, खुशी से रुई हैं ठूंसी
उफ़ ! कहाँ बीमार हैं वो, और कहाँ उनका इलाज है मुमकिन !
...
सच ! जब होना ही है हलाल, आज नहीं तो कल
फिर कुर्बानी का बकरा बनने में हर्ज ही क्या था !
...
योगी, बाबा, संत, ऋषी, मुनी, एक छोटा सा सवाल है
योग सिखाओ पैसे लेकर, क्या ये भी भ्रष्टाचार है !
...
लो फिर जग भिड़ पडा, तेरे-मेरे फ़साने में 'उदय'
क्या रक्खा है, क्या मिला है, कब्र में जाने के बाद !
...
सरकार तैयार है तो अन्ना भी तैयार है
भ्रष्टाचार है बीच में, और दोनों आर-पार हैं !
...
उफ़ ! सवाल अच्छे हैं पर जवाब कच्चे हैं
पहले भ्रष्टाचारियों के, उड़ाने पर-खच्चे हैं !
...
गालों को फुस-फुसा कर, क्या खूब धुन बनाई है
उफ़ ! कर्णप्रिय तो नहीं है, फिर भी बज रही है !
...
सच ! चलो हम मान लेते हैं, ये मिट्टी का खिलौना है
मगर मुमकिन नहीं लगता, बिना चाबी के चलता हो !

Thursday, June 23, 2011

... बिना सुर्ख़ियों के, कहाँ अब नींद आती है !!

बा-अदब सरकार ने हमें, सर-आँखों पे बैठाया था
दिन गुजरा, रात हुई, फिर पीट के भगाया भी था !
...
किसी किसी दिन तो तुम्हें मरना पडेगा
फिर घुट घुट के क्यूं जीते हो, मरने के डर से !
...
इंसानी फितरतें, घड़ी की सुईयां हुई हैं
कब ठहरी दिखीं, हर घड़ी बदली हुई हैं !
...
संसार रूपी बाजार में क्या कुछ नहीं मिलता
दौलतें जेब में हों तो, क्या क्या नहीं मिलता !
...
क्या खूब बयां किये हैं तुमने मन के भाव रचनाओं में
जज्बातों की नदियाँ, बहती दिखती हैं अल्फाजों में !!
...
सुन्दरता, कला, अंगप्रदर्शन, तीनों के अंदाज निराले हैं
गर संगम हो जाए आपस में, तो फिर सोने पे सुहागे हैं !
...
अन्ना हो, या हो बाबा, दिग्गी है लड़ने आमादा
मानो या ना तुम मानो, ये ही है असली मुखौटा !
...
बाबाजी गर कोमा में होते, तो अब तक बाहर गए होते
उफ़ ! ये सदमे का असर है, जो उन्हें बाहर आने नहीं देता !
...
किसी को पीट दो, या खुद पिट जाओ यारो
बिना सुर्ख़ियों के, कहाँ अब नींद आती है !!

आजाद हिन्दोस्तान ...

देश का आमजन
भ्रष्टाचार से हलाकान है
क्या यही गांधी का
आजाद हिन्दोस्तान है !

सड़ रहे अनाज के बोरे
भूख से जाग रहा इंसान है
क्या यही गांधी का
आजाद हिन्दोस्तान है !

कालाधन भरा पडा है
कर्ज में डूबा आम इंसान है
क्या यही गांधी का
आजाद हिन्दोस्तान है !

बूढ़े लड़ते खड़े हुए हैं
युवा सत्ता में आसीन हैं
क्या यही गांधी का
आजाद हिन्दोस्तान है !

लुटेरे संसद में बैठें
अपराधियों की शान है
क्या यही गांधी का
आजाद हिन्दोस्तान है !

तीनों-चारों बंदरों में
एक-दूजे का सम्मान है
क्या यही गांधी का
आजाद हिन्दोस्तान है !!

Wednesday, June 22, 2011

... सड़क पर बिखरे पड़े हैं, आजादी के भारत आज !

उफ़ ! बेवजह ही सल्लू मियाँ बधाई देने पे उतारू हैं
खुदी की करानी हो जगहंसाई, तो और भी ढेरों ठिकाने हैं !
...
मुबारकां तुमको, बड़े-बुजुर्गों को, और नन्हे मेहमां को
खुशी के पल हैं, खुश रहो, और रखो खुश सारे जहां को !
...
एयरकंडीशन कमरों में, बसी है देश की आजादी आज
और सड़क पर बिखरे पड़े हैं, आजादी के भारत आज !
...
नींद भी आती नहीं, और चैन भी पड़ता नहीं
सच ! खूबसूरती भी, किसी बला से कम नहीं होती !
...
कोई कैसे मान ले, ये जनता द्वारा चुनी गई सरकार है
पूर्ण बहुमत है नहीं, बस मिला-जुला गठबंधन है !
...
अन्ना हो जाओ चौकन्ना, अब भ्रष्टतम भ्रष्ट लोगों से है भिड़ना
एक अरविंद काफी नहीं, सेकड़ों अरविंदों के सांथ, है आगे बढ़ना !
...
लोकपाल के मसले पर, भ्रष्टाचारियों की मंसा जाहिर है
जनमानस को सोचना होगा, क्या ये सरकार हमारी है !

... सारा कालाधन, नेताओं, और सिर्फ नेताओं का है !!

किसी ने चाहकर ही, चाहने की कसम खाई है
खता तो हुई है किसी से, अब करें तो क्या करें !
...
क्या खूब डगमगाया है ये दिल, तेरे इंतज़ार में
सोचता हूँ, कहीं इन्तेहा हो जाए इंतज़ार की !
...
सच ! बैठकें, बैठकों के दौर, क्या खूब बैठकें हैं 'उदय'
लोकपाल के नाम पे भ्रष्टाचारियों की दम फूलती है !
...
लोग चीख-चीख के चिल्ला रहे हैं, फिर भी कोई मानता नहीं
सारा का सारा कालाधन, नेताओं, और सिर्फ नेताओं का है !
...
चाँद ! खुशी से जा छिपा था, या नाराज था हमसे
बादलों की खता थी, या कहीं बैठा था छिप कर !!
...
कुसूर इतना ही था, कि मोहब्बत में भिड़ गए थे
उफ़ ! आशिकी खामोश थी, और वो पिट रहे थे !
...
कुछ जख्मों को हम खुद ही, ठीक होने नहीं देते
हर घड़ी याद रहते हैं, अब कहीं ठोकर नहीं लगती !
...
नहीं है रंज कि तुम, चाहकर भी हमें भूल बैठे हो
सांथ नहीं, सफ़र में नहीं, पर यादों में बसर है मेरा !
...
सच ! ये मंजिलों की ओर, हैं बढ़ते कदम मेरे
अभी रुकना कहां, थमना कहां, बढ़ते जाना है !
...
हिन्दोस्तां में ही, लोगों को परहेज हुआ है हिन्दी से
पर हम क्या करें 'उदय', हमें इंगलिश नहीं आती !!

Tuesday, June 21, 2011

... दो-दो हांथ सभी आजमाओ !!

लोकपाल के मसले पर,
क्यों तलवारें खिंच जाती हैं

है, जब भ्रष्टाचार मिटाना मकसद
फिर क्यूं, तकरारें बढ़ जाती हैं

सरकारें तो, बनती-मिटती हैं
मिटाना, भ्रष्टाचार जरुरी है

आज मिटा लो, तो अच्छा है
वरना, कल खुद मिट जाओगे

फिर चीखोगे, या चिल्लाओगे
होगा, कोई सुनने राजी

आज मिला है मौक़ा सब को
भ्रष्टाचार से लड़-भिड़ जाओ

भ्रष्ट तंत्र से, भ्रष्टाचार से
दो-दो हांथ सभी आजमाओ !!

... हम इसके सख्त खिलाफ हैं !!

एक नेता, और ढेर सारे आम आदमी
सड़क पर खड़े होकर
जोर-जोर से चिल्ला रहे थे
सरकार
कमजोर लोकपाल बनाना चाहती है
हम इसके खिलाफ हैं !
मैं नारे सुनकर सन्न रह गया
खड़े-खड़े सोचने लगा
कि बहुत कठिन घड़ी जान पड़ रही है
जन लोकपाल का मुद्दा
ड्राफ्टिंग कमेटी की मीटिंगों से
बाहर निकल कर
सड़क पर गया है
सरकार हिल रही है, कहीं गिर जाए
मैं, चुप-चाप नारे सुनता रहा
माहौल शांत-सा हुआ
तब मैंने पूछा
क्या हो गया ... नेता जी
क्यों ख़ामो-खां सरकार गिरा रहे हो
उन्होंने कहा - कौन सरकार गिरा रहा है
हम तो ... भ्रष्टाचार ...
और कमजोर लोकपाल ...
मतलब सरकार का नहीं !
नहीं साहब ... आपको गलतफहमी हो रही है
हम सरकार का नहीं
लोकपाल ... कमजोर लोकपाल का विरोध कर रहे हैं
हम इसके सख्त खिलाफ हैं !!

Monday, June 20, 2011

... क्या भ्रष्टाचार मिटाने को बाबाजी तैयार हैं !!

बहुत ठहरे, ठहरे रहे, हम शहर में तेरे
जाना था, चले आए, अब इंतज़ार कर !
...
नमा, नवाज़, मिजाज़, नाज़, और छिपे राज़
हर कहीं, ज़िन्दगी का अपना अपना जुनून है !
...
कभी हमें भी उतार के देखो तस्वीरों में खुदी के सामने
फिर देखें, कौन, किसको देखता है, चुरा चुरा के नजरें !
...
भ्रष्टतम भ्रष्ट लोगों की, क्या खूब नौटंकी है 'उदय'
उफ़ ! मंच पर, जाने कितने सुपर स्टार खड़े हैं !
...
लूट लो, तुम लूट लो, आज सारे मुल्क को
आज बारी है तेरी, कल तुझको लूटा जाएगा !
...
डर डर कर, चुपके चुपके ही, मिल लिया करो
कौन कहता है तुम्हें, मिलो सीना तान कर !!
...
क्या खूब जज्बात बयां किये हैं किसी ने तस्वीरों में
कहीं रंग, तो कहीं लकीरें, बयां कर रही हैं खुद को !!
...
उफ़ ! छत्तीसगढ़ प्रदेश, सचमुच देश में अव्वल है
बूढ़े,जवानों के बाद, अब आया बच्चों का नंबर है !
...
जनता भी तैयार है, और जनमत तैयार है
क्या भ्रष्टाचार मिटाने को बाबाजी तैयार हैं !!

Sunday, June 19, 2011

... मजबूत लोकपाल ... लोकतंत्र की जरुरत !!

प्रधानमंत्री जी ...
आप बहुत अच्छे हैं, और सच्चे भी हैं
आप ... आपकी इमानदारी पर ... किसी को
कोई ... संदेह नहीं है ... ऐसा ... मैं अक्सर सुनता हूँ
पर जानता नहीं, आप ईमानदार हैं भी, या नहीं
शायद इसलिए, कभी जानने का मौक़ा नहीं मिला
जब, लोग कहते हैं, तो होंगे ही ... पर मैं ...
आँख मूँद कर ... आपको ईमानदार ... नहीं मान सकता
ये सच्चाई भी है, आप भी जानते हैं कि -
आँख मूँद कर, किसी को ईमानदार ... मान लेना !
खैर छोडो ... जाने देते हैं
असल मुद्दे पर ... हम ही जाते हैं
बात दर-असल यह है कि -
जन लोकपाल ... जिस पर राजनैतिक हलकों में
काफी गर्मा-गर्मी है, आमजन में भी एक आशा की लहर है
जन लोकपाल, सिर्फ, आज के आमजन के लिए
वरन ... कल के आमजनों के लिए ... भी हितकर होगा
ज़रा सोचिये ... गौर करिए ...
आप भी लोकतंत्र में ... एक आमजन ही हैं ... भले आज
आप ... सत्ता में बैठे हैं ... प्रधानमंत्री हैं !
मैं सोच रहा हूँ, शायद ! आज आपको
जन लोकपाल की जरुरत हो
क्यों, क्योंकि आज आप प्रधानमंत्री हैं !
पर ज़रा सोचिये ... गंभीरता पूर्वक, कि -
कल जब आप प्रधानमंत्री नहीं होंगे, और ही
आपके परिवार में, कोई बड़ा अफसर होगा
तब ... कहीं ... इसी लोकतंत्र में
आपके ... बेटा-बेटी ... नाती-पोतों ... या अन्य रिश्तेदारों को
भ्रष्टाचार, दुराचार, कुशासन, और ...
का सामना करना पडा, या चपेट में गए
तब, उनकी आत्मा कितनी कल्लाएगी-झल्लाएगी
कहीं ... तब ... वे ... आपको कोसने लगें
इस बात को लेकर कि -
काश, आपने लोकपाल का गठन कर दिया होता !
सोचिये ... गंभीरता पूर्वक सोचिये
मजबूत लोकपाल का गठन ... लोकतंत्र की जरुरत है !!

यादों के साये में ... बाबू जी !!

बाबू जी ...
क्या थे, क्या नहीं थे
आज भी, समझना बांकी है
आज "फादर्स डे" पर
वे, यादों में, कुछ इस तरह
उमड़ आये
आँखें, चाह कर भी
खुद--खुद नम हो गईं
वैसे तो अक्सर
हो ही जाती हैं, नम
आँखें, उनकी याद में
पर, आज, कुछ ज्यादा ही
लबालब हो चलीं
खैर ...
कोई चाहे, या भी चाहे
फिर भी होते हैं सांथ
हर घड़ी, हर पल, हर क्षण
जिन्दगी के सफ़र में
बन ... हमसफ़र
संग संग ...
यादों के साये में ... बाबू जी !!

... क्या खूब सरपरस्ती है, यहाँ मौक़ापरस्ती की !

सच ! टूटा हुआ, बिखरा हुआ, था पडा मैं कल कहीं
'रब' जाने क्या हुआ, जो आज मैं साबुत खडा हूँ !!
...
बाबाजी तो अभी खुद ही सन्नाटे में हैं
जाने कब, सन्नाटे से तूफां बनेंगे !
...
एक में गुरु, तो दूजे में चेले के गुण लबालब हैं
क्या खूब सरपरस्ती है, यहाँ मौक़ापरस्ती की !
...
पहले खुद समझ लें, जनता तो समझ ही लेगी
गर नीयत अच्छी नहीं, तो फिर समझाना कैसा !
...
मैं करता भी, तो भला करता क्या उसका
किसी की जान ले लेना, कहाँ था मेरे बूते !
...
पढ़ाई खर्च के नाम पर जिस्मफरोशी, क्या खूब बहाना है
दर-असल, फितूर और मौज में, ढूंढा एक नया तराना है !
...
कल तक खामोशियों में सिसकियाँ छिपा रहा था आदमी
उफ़ ! आज कोलाहल में फफक-फफक के रो रहा है आदमी !
...
मीडिया की कहानी, खुद उनकी ज़ुबानी बयां है
उफ़ ! जहां हड्डी दिखे, वहीं पे दुम नजर आये !

Saturday, June 18, 2011

... एक चिट्ठी / प्रिंट मीडिया पर कडुवा सच !!

... न दौलत का झमेला है, और न भीड़ का बखेड़ा है !!

जाने कब तलक खुद को, तुम यूं ही सताओगे
जो हैं सामने उनसे, कब तलक नजरें चुराओगे !
...
दिल, दिमाग, ख्याल, खामोशियां, जज्बात, तुम
हमको है खबर, ख्यालों में भी तुम गुनगुनाते हो !
...
क्यों सुनते-सुनाते हो, खुदी को हाल--दिल
पल्ला खोल के देखो, कोई चौखट पे खडा है !!
...
कौन उलझे, कौन उलझा रहे, फिजूल के अफ़सानों - तरानों में
है सत्ता वही अच्छी, जिसमें समानता सुरक्षा की मिशालें हों !
...
हर घड़ी, हर पल, हर सुबह, हर शाम
जिन्दगी है चली, यादों के सफ़र संग !
...
गुनाहों की सजा, गर पूंछ लें गुनहगार से
तो समझ लो, सभी बे-गुनहगार निकलें !
...
बाबा को छोडो, पर अन्ना अपने आप में अन्ना है
दौलत का झमेला है, और भीड़ का बखेड़ा है !
...
कहीं लोकतंत्र है तो है, तो कहीं नहीं है
पर हर कहीं, हुकूमतें हैं, लोक भी हैं !!
...
जब टूट के बिखरना ही है, तो फिर कल क्या, परसों क्या
चलो आज टूट के, टुकड़ों-टुकड़ों में, हम खुद बिखर जाएं !

Friday, June 17, 2011

... एक चिट्ठी ... अन्ना हजारे के नाम !!

अन्ना जी, अरविंद जी
नमस्कार, जन लोकपाल के मसौदे पर मैं आपके विचारों व तर्कों से सहमत हूँ, पर जैसा अक्सर चर्चा-परिचर्चा पर देखने-सुनने मिल रहा है कि सरकार के कुछेक बुद्धिजीवी लोग ... प्रधानमंत्री न्यायपालिका को लोकपाल से पृथक रखना चाहते हैं, इस मुद्दे पर आपने अपने जो विचार व तर्क प्रस्तुत किये हैं (मीडिया के माध्यम से) उन तर्कों से सहमत हूँ, पर सहमत होते हुए भी मेरी व्यक्तिगत राय है कि एक बार पुन: विचार करिएप्रधानमंत्री चीफ जस्टिस आफ सुप्रीम कोर्ट ... इन दो पदों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने में कोई बुराई नहीं है, इन दो पदों को लोकपाल के दायरे से पृथक रखा जा सकता है वो इसलिए कि जन लोकपाल के गठन के उपरांत सुचारू रूप से संचालन व क्रियान्वयन में ये दोनों पद महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैंक्यों, क्योंकि कोई भी ढांचा या इकाई तब ही सुचारुरूप से कार्य संपादित कर सकती है जब उसको मजबूत सपोर्ट हो, और इन दोनों पदों को जन लोकपाल के गठन संचालन के लिए महत्वपूर्ण सपोर्ट के रूप में रखा जा सकता हैहम आशा करते हैं / आशा कर सकते हैं कि जब जन लोकपाल सुचारुरूप से कार्य संपादित करने लगेगा तब इन दोनों महत्वपूर्ण पदों पर निसंदेह ईमानदार निष्पक्ष विचारधारा के व्यक्ति ही पदस्थ हो पाएंगे ( तात्पर्य यह है कि आज के समय में इन पदों पर आसीन लोगों पर जो उंगली उठ रही है या उठ जाती है, उसकी संभावना नहीं के बराबर रहेगी ) ... संभव है आप आपसे जुड़े सभी सदस्यगण मेरे विचारों से सहमत हों, पर मेरा आग्रह है कि एक बार गंभीरतापूर्वक विचार अवश्य करें !
शेष कुशल ... धन्यवाद !!
( विशेष नोट :- वैसे तो मुझे उम्मीद है कि ये दोनों पद भी लोकपाल के दायरे में स्वस्फूर्त आ जायेंगे तात्पर्य यह है कि ज्यादा मसक्कत नहीं करनी पड़ेगी )

... फेंको, उखाड़ !!

मत सोचो
उठो, उठ जाओ
फेंको, उखाड़
जाओ, उखाड़ फेंको
भ्रष्टाचारियों को
तुम, खुद, अपने
खेतों-खलियानों से !

कहीं ऐसा हो
ये भ्रष्टाचारी
तुम्हें ही, कहीं
फेंके, उखाड़
और, लूट लें
खेत, खलियान, फसल
सब कुछ तुम्हारा !

ज़रा सोचो
गर, लुट गये, तुम
फिर, भला तुम
क्या करोगे
करोगे, काम खेतों में
तुम्हारे ही
तुम, खुद, मजदूर बनकर !!

Thursday, June 16, 2011

... भ्रष्टाचारियों की, जबरदस्त पीठ थप-थपाई है !!

चारों पहर तलाश में तेरी, भटकता फिरा मैं दर-बदर
अब किस घड़ी मैं बैठकर, सजदा करूं - सजदा करूं !
...
बनना था, जो बिगड़ कर भी बन गई है बात
वरना बनते बनते, बिगड़ जाती है अक्सर !!
...
सावन बरसे, तरसे हैं मन, 'रब' जाने क्यूं बिछड़े हैं हम
तुम भूले - हम भूले, सावन के संग हंसी-ठिठोले !
...
रोज सोचते हैं, तुमसे बातें करें
देखते हैं तुम्हें, फिर रहा नहीं जाता !
...
तराश के पत्थर, जमीं में गाड़ दो यारो
देखना एक दिन, वही मंजिल सुझाएंगे !
...
गोश्त जबड़ों में हो जिनके, और लव हों रक्त से रंजित
भला कैसे, हम मान लें उनको, कि वो शैतां नहीं होंगे !
...
सवालों की आड़ में, क्या खूब खिचड़ी पकाई है
भ्रष्टाचारियों की, जबरदस्त पीठ थप-थपाई है !

... कैसे मुमकिन हो, वहां लोकपाल बैठे !!

वो घूंघट डाल कर करते रहे, बातें मोहब्बत की
अब कैसे मान लें हम, चाँद से बातें हुई होंगी !!
...
चलो खुशनसीबी है, किसी पर किसी की नजर तो है
वरना कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नजर ही नहीं रखते !
...
कोई जुदा होकर खुदा है, तो कोई खुदा होकर जुदा है
सच ! बता तू ही मुझे अब, कि तू जुदा है या खुदा है !
...
तो मैं कमजोर था, और ही तुम बलवान थे
जीत थी हार थी, बस थोड़ी-बहुत तकरार थी !
...
ठीक ही है कोई जनसंघी तो कोई बजरंगी है
नहीं तो सब के सब, भ्रष्ट - घपलेबाज होते !
...
लुट रही लुटिया है देखो, फिर भी दमदार हैं
पकड़ लंगोटी हाँथ में, दौड़े-पड़े सरकार हैं !
...
तो वो मुझसे डरा, और ही मैं उससे डरा
पर वो भी खामोश था, और मैं भी खामोश था !
...
भ्रष्टतम भ्रष्ट लोगों की हुकूमत हो जहां
कैसे मुमकिन हो, वहां लोकपाल बैठे !
...
हमने इतना ही है जाना, तुम महकते हो सदा
इश्क हो, या इबादत, सब में बसते तुम सदा !

Wednesday, June 15, 2011

... भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है !!

भाई साहब ...
आप ... मानो या मानो
पर ... भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है
लंगड़े-लूले ... कांने-भेंगे ... लदे-लदाए ... भाई-भतीजे
आड़े-तिरछे ... अपटे-चपटे ... छोटे-मोटे
निकम्मे ... नालायकों ... और कामचोरों ... के लिए
सचमुच ... भ्रष्टाचार
अपने आप में ... एक उम्मीद है
भ्रष्टाचार ... के भरोसे ... के दम पर
इनके लिए भी सुनहरे अवसर खुले हैं
आगे बढ़ने के लिए ... सांथ चलने के लिए
पास होने के लिए ... सिलेक्ट होने के लिए !
सोचो ... ज़रा गंभीर होकर ... सोचो
अगर ... सिर्फ ... अच्छे ... ईमानदार
लायक ... योग्य ... और समझदार ... लोग ही रहेंगे
सिलेक्ट होंगे ... काम करेंगे ... सिस्टम में ... फिर
इन महानुभावों का ... क्या करोगे !
जो अपने आप में ... मिशालें हैं
सरकते-खिसकते समाज की ... पिट्ठू संस्कृति की !
आखिर इन्हें भी तो ... आगे बढ़ना है
ये और बात है कि -
ये भ्रष्टाचाररूपी ... खेल के ... चतुर चालाक
खिलाड़ी बन जाते हैं ... क्यों ... क्योंकि ... इन्हें
सिर्फ ... समझदारों इमानदारों को ही
तो देनी होती है पटकनी ... और ये कौन-सी बड़ी बात है
इन्हें ... ज्यादा-से-ज्यादा ... करना क्या है
किसी की ... जी-हुजूरी ... चमचागिरी ... या फिर
चुगली-चांटी ... कांना-फूसी ... सिर्फ इतना ही
जिसमें ये ... अपने आप में माहिर हो ही जाते हैं
चलो जाने दो ... होता है ... होते रहता है
सिस्टम है ... और इस भ्रष्ट सिस्टम में
भ्रष्टाचार ... अपने आप में एक उम्मीद है !!

... न मिली उन्हें मंजिलें, और न मिले परवरदिगार !

ये दुम हैं ऐंसी, जो कभी, खुद--खुद सीधी नहीं होंगी
लोग मरें, मरते रहें, ये जहां चाहेंगे वहीं दुम हिलाएंगे !
...
उम्मीदों के चिराग जला कर रक्खे थे हमने भी 'उदय'
चिराग जलते रहे, रात ढलती रही, और सब हो गई !!
...
उफ़ ! कोई सांथ था भी, और कोई नहीं भी था
सफ़र यादों के थे, लुभाते रहे, सांथ चलते रहे !
...
ताउम्र समेटते-सहेजते रहे, हम दौलती पत्थर
पर हम भूले थे, दफ्न होना है मिट्टी में यारा !
...
जर्द पत्ते की तरह, उड़ता फिरा, फिरता फिरा
आज फिर तेरे शहर से, तर-बतर हो मैं चला !
...
तू जमीं से आसमां तक, बिखरी हुई है
फिर भी, मेरी आँखों में सिमटी हुई है !
...
मुर्दों को अब तुम, इतनी बेरहमी से मत कुचलो यारो
सच ! गर जान आ गई, तो जीना दुश्वार समझो यारो !
...
उफ़ ! जो हश्र देख औरों के, निकले नहीं घर से डर कर
फिर न मिली उन्हें मंजिलें, और मिले परवरदिगार !
...
सच ! बहुत घूमे-फिरे, जिन्दगी के सफ़र में
चले आये हैं अब हम, अपने आशियाने में !!

Tuesday, June 14, 2011

असहाय लोकतंत्र ...

अब कोई, मुझे, कुछ
समझता ही नहीं है
कोई यहां से, तो कोई वहां से
मेरी भावनाओं ... आदर्शों को
तोड़ रहा है ... मरोड़ रहा है !
और तो और
कुछेक ने तो मुझे जेब में रख
घूमना - फिरना ... शुरू कर दिया है !

क्या करूं ... क्या कहूं ... किससे कहूं
ये तो कुछ भी नहीं
कुछेक धुरंधरों ने तो मुझे
खिलौना समझ, बच्चों को
खेलने ... कूदने के लिए ...
और वे, खूब मजे से
चुनाव - चुनाव ... खेल रहे हैं !

सच ! बहुत शर्मसार हुआ
पर ... अब ... सहा नहीं जाता
भ्रष्टाचार ने तो मेरा
जीना ही दुभर कर दिया है

घोंट दो ... मेरा गला घोंट दो !
सच ! मैं अमर हूँ
पर असहाय लोकतंत्र हूँ !!

... कहीं कडुवा, तो कहीं मीठा है मोहब्बत का फ़साना !

भटके फिरे हम रात-दिन, सौदा बड़ा अनमोल था
हम बिक रहे थे, बिक गए, क्रेता बड़ा दिलदार था !
...
फरेब, दुश्मनी, सियासत, बाजीगरी, हंसना, रोना
कहीं कडुवा, तो कहीं मीठा है मोहब्बत का फ़साना !
...
मौत थी, जिन्दगी थी मेरी
मैं किसी का था, किसी का था !
...
तेरे बिना, कहाँ सुकूं होता है, वीरान रातों में
उफ़ ! रात गुजरे, तब कहीं सुबह की सोचें !!
...
यदा-कदा, यादों के सफ़र के, हम हमसफ़र हैं
कभी तुम सांथ होते हो, कभी कोई नहीं होता !
...
वन्दे मातरम
, भ्रष्टतम भ्रष्ट भ्रष्टाचारियों का निपटना, तय है
अनशन ! आज झौंके हवा के हैं कल तूफां बनेंगे, जय हिंद !!

Monday, June 13, 2011

लोकपाल के दायरे में ... प्रधानमंत्री !!

हमने माना ...
और हम मानते भी हैं कि -
हमारे देश के प्रधानमंत्री ...
और उच्च उच्चतम न्यायालयों के
न्यायाधिपति, न्यायमूर्ती, जज, प्रधान
निसंदेह ... ईमानदार थे ...
ईमानदार हैं ... और ईमानदार रहेंगे !
कौन कहता है कि -
ये कभी भ्रष्ट भी, हो सकते हैं !
नहीं, कतई नहीं, यह असंभव-सा है
जब असंभव-सा है, फिर संभवता पर
बहस ... क्यों ... किसलिए
नहीं, बिलकुल नहीं होना चाहिए
जब ईमानदार हैं, थे, और रहेंगे
फिर बहस ... बेफिजूल की बातें हैं !
जब, इमानदारी पर, कोई प्रश्न ही उठता हो
तब, ये, लोकपाल के दायरे में हों -
या हों, क्या फर्क पड़ता है !
अरे भाई, फर्क पड़ना भी नहीं चाहिए !
मेरा तो यह मानना है कि -
कोई बोले ... या बोले ... पर इन्हें
स्वत: ही, स्वस्फूर्त, खुद को
जन लोकपाल के दायरे में, शामिल कर देना चाहिए
ताकि, कोई इन पर, बेवजह ही, झूठे-सच्चे
भ्रष्टाचार के आरोप लगा पाए, गर कोई लगाए, तब
आरोप लगाने वालों की, खटिया खड़ी, की जा सके
क्यों ... क्योंकि ... आरोप ... जब झूठे लगेंगे
तब झूठे आरोप, लगाने वालों की
निसंदेह, खटिया खड़ी, होनी ही चाहिए !
आरोप सच्चे ... सच्चे हो ही ...
क्यों ... क्योंकि ... ये ईमानदार हैं ... थे ... और रहेंगे !!

... देगा पटकनी ... और दिलाएगा याद ... छट्टी का दूध !!

बाबा जी ... उछले ... और उछल कर
गए ... मैदान में ... बेवजह
बेवजह ... इसलिए ... उन्हें किसी से
लेना
-देना था ... शायद ... कुछ भी नहीं !
फिर भी ... मारी ... दे मारी
छलांग ... राजनैतिक अखाड़े में
भिड़ गए ... कालेधन और भ्रष्टाचार की आड़ में
राजनैतिक ... पहलवानों से
जोश ... और खरोश से ... कूदे
डटे रहे ... अड़े रहे ... डटना ... और अड़ना
पडा भारी ... पहले ... राजनैतिक पहलवानों को
पर ... जब ... जैसे ही ... उन्हें मिला मौक़ा
और ... जब दी पटकनी ... जोर की
तो ... बाबा जी हुए ... चारों खाने चित्त !
भले ही दांव ... धोखे से ... छल से
पर ... दांव तो दांव था ... वो भी जोर का
और ... बाबा जी हुए ... चित्त ... चारों खाने
अब ... सिर पकड़ें ... या कमर पकड़ें
और कब तक पकड़ें ... पटकनी ... तो थी जोर की !
और था भी नहीं ... अखाड़ा ... बाबागिरी का
जो ... सहजता से निपट लेते
राजनैतिक था ... और पटकनी भी राजनैतिक !
माना ... पटकनी से ... बाबा जी ... हुए चित्त
और राजनैतिज्ञों की हुई ... पौ-बारह
पर ... राजनैतिक पहलवान ... ये न भूलें कि -
बाबा जी ... दूध से जले हैं
और जलन भी ... खूब हुई है
ऐसा जला हुआ आदमी ... और वो भी ... बाबा
जिसके पीछे ... जन और जनाधार दोनों है
मौके की तलाश रहेगी ... जैसे मिलेगा ... मौक़ा
देगा पटकनी ... और दिलाएगा याद ... छट्टी का दूध !!

Sunday, June 12, 2011

... झौंके हवा के हैं कल तूफां बनेंगे, जय हिंद !!

फितरती सोच ने, लोकतंत्र का कबाड़ा कर दिया है 'उदय'
वरना था तो तंत्र, लोक का ही, पर जन जन त्राहीमाम हैं !
...
ढेरों लोगों ने इसे पागल घोषित, अघोषित रूप से कर रक्खा है
अब तो हक़ बनता है, जी में जो आये बोलने, बड़-बड़ाने का !!
...
दल-दल सा बना दिया है, दलालों ने मुल्क को
और बेशर्म से हो चले हैं, हुक्मरान मुल्क के !!
...
काश ! हंसी चेहरा तुमसा, एक और होता
हम तुम पे, और वो हम पे, मरता होता !!
...
तमगों के ख़्वाब सजाए थे, अब पूरे हुए
उफ़ ! कितने सच्चे थे, कितने झूंठे थे !!
...
आज भी, तेरे शहर में, खुशबू बिखरी, है मेरी
मैं क्यूं पडा हूँ आज भी, सूखा तेरी किताब में !

...
गर झांका हुआ होता, हमने, खुद को, अपने गिरेबां में
वतन की जमीं ही क्या, दिलों में भी, हम जी रहे होते !
...
तय है, भ्रष्टतम भ्रष्ट भ्रष्टाचारियों का निपटना, तय है
अनशन ! आज झौंके हवा के हैं कल तूफां बनेंगे, जय हिंद !!

... जायज है ... भले नाजायज है !!

भ्रष्ट ... भ्रष्टतम ... भ्रष्टाचार
कुछेक
... नापाक ... इरादों ने
सिर्फ बाबा को
वरन मीडिया को भी
डराया, धमकाया, धौंसा
और शायद सिट्टी-पिट्टी भी
गुम ... कर के रख दी !
धौंस ... और सिट्टी-पिट्टी
बाबा तक ... तो ठीक थी
पर ... चतुर-चालाक ... मीडिया की भी
वाह ... वाह-वाह ... क्या बात है
ये लोकतंत्र है भईय्या
यहाँ ... कुछ भी ... संभव है
जायज है ... भले नाजायज है !!

Saturday, June 11, 2011

... था तो मैं पत्थर ही पर, तूने मुझे 'रब' कर किया !!

गर यूं ही चलते रहे हम, तो फिर इतना समझ लो
सच ! गर मर भी गए, तब भी हम, ज़िंदा रहेंगे !!
...
एक दिल ही है, जो हमसे सम्भाला नहीं जाता
गर 'खुदा' दो-चार दे देता, जाने क्या हुआ होता !
...
गर तुम चाहते ही हो, तो लो सुनलो मेरी कहानी
शहर में, है नहीं कोई, जो सुन ले मेरी ज़ुबानी !!
...
नजर तुम्हारी, मुझे, छू छू कर चली गई
कहो, क्या इरादे हैं, जो बयां नहीं करते !
...
उफ़ ! अब शिकवा करें, तो किससे करें हम
नहीं दिखता कोई, जिसे अपना कहें हम !!
...
उफ़ ! क्या सुकूं, क्या ताजगी पाई है हमने
कंठ हुआ है तर-बतर, हौंठों से छू-कर तुझे !
...
मरेंगे मरेंगे, सब भ्रष्टाचारी, सड़ सड़ के मरेंगे
सच ! कुछ आज, तो कुछ कल, जरुर मरेंगे !
...
तंग हालात में, वक्त ने, तुझको, मुझसे, जुदा तो कर दिया था 'उदय'
पर 'रब' जाने, वक्त की मंसा है क्या, जो आज फिर हम मिल गए !!
...
वक्त ने करवट बदल कर, मुझको पारस कर दिया
था तो मैं पत्थर ही पर, तूने मुझे 'रब' कर किया !!