Wednesday, December 28, 2011

आदिवासी लडके ...

अब अपनी उमर -
अठारह साल हो गई है !
हम जैसे -
गाँव
जंगल
पहाड़
के आदिवासी लड़कों के लिए
शायद -
शहर में कोई काम, नहीं होगा !
होगा भी तो मिलेगा नहीं !!
और न ही कोई
यहाँ आकर हमें काम देने वाला है !!
क्या करें ?
क्या हम भी, बंदूकें उठा लें ??

Tuesday, December 27, 2011

... करोड़ों की नसीहत दे गया !

आँखें कह रही हैं कुछ, जुबां खामोश कहती है
उफ़ ! किसकी सुनें, किसकी कहें !!
...
चलो माना कि हम कुछ कहते नहीं है
मगर खामोशियाँ की भाषा, तो पढ़ा कीजिये !
...
चलो माना, मुसाफिर हूँ नहीं तेरी डगर का मैं
'सांई' जाने, पग मेरे अब किस डगर को हैं !
...
सुनो, तुम्हें सुनना पडेगा, बैठ के बातें हमारी
वर्ना चीखना भी हमें आता है यारो !
...
इत्तफाक ! राह चलते एक 'औघड़' मिल गया
बिना मांगे, करोड़ों की नसीहत दे गया !

Monday, December 26, 2011

साहित्य सेवा ...

मियाँ, आप भी, अपनी एनर्जी -
फालतू
बेफिजूल
इधर-उधर जाया कर रहे हो !

और तो और, ख़ामो-खां
क्यूँ -
किसी से भी लड़-भिड़ रहे हो !

आओ, चले आओ, हमारी 'गैंग' में -
बेझिझक शामिल हो जाओ
कुछ न कुछ
'तमगे' तुम्हें भी मिल जायेंगे !

आखिर ये 'गैंग' -
हम
इसीलिये ही तो चला रहे हैं !!

और नहीं तो क्या !
क्या तुम ये सोच रहे हो
कि -
यहाँ बैठ के -
हम साहित्य सेवा कर रहे हैं !!

Sunday, December 25, 2011

लगन ...

सच ! मुझे लगा था
कि -
तुम्हारी -
ठुकाई-पिटाई से
उठक-बैठक से
छैनी-हथोडी की मार से
गेंती-फावड़े से
कुल्हाड़ी से, हल से
शायद
मैं संवारा न जा पाऊँ ...
लेकिन
शायद
किन्तु
परन्तु
तुम ने कर दिखाया !
मैं उपजाऊ हो गया हूँ !!

बन के 'सांता क्लाज', आओ घूमें फिरें ...

आओ, चलो बन जाएं आज, हम सब 'सांता क्लाज'
संग बांटे खुशी, न सोचें कौन अपना, कौन पराया है !
...
हर पहर प्रार्थना को, हाथ उठते नहीं हमारे
'यीशु' जानता है, सुबह-शाम के मजदूर हैं हम !
...
बन के 'सांता क्लाज', आओ घूमें फिरें
जो भी मिल जाए हमें, खुशियाँ बांटे उसे !
...
'क्रिसमस' की बधाई को, बड़े बेताब थे हम
मगर जालिम, बड़ा खामोश निकला !
...
दीवार पे रौशनी की जगमगाहट भांप के तुम
मेरे दिल के अंधेरे, क्यूँ भूल बैठे ?

Saturday, December 24, 2011

आग ...

ये कैसी आग है ?
जो जब से जली है
तब से -
अब तक, अभी तक जल रही है !!
क्यों ये बुझने नहीं पाई ?
यहाँ पर कौन है ?
जो उससे झुलसा नहीं है ??

ये आग है -
दुशमनी
नफ़रत
भूख
गरीबी
शोषण
ह्त्या
बलात्कार
चोरी, लूट, डकैती, छल, कपट, बेईमानी !!

जिससे, कोई न कोई -
कभी न कभी, किसी न किसी रूप में
झुलसता रहा है !
ऐंसा कौन है ?
जो इससे झुलसा नहीं है !!
ये कैसी आग है ?
जो जब से जली है
तब से -
अब तक, अभी तक जल रही है !!!

सिस्टम ...

सच ! क्या हमें
अपनी -
आजादी के लिए
अधिकारों के लिए
हर पल, हर घड़ी
संघर्ष करना होगा !
क्यों, किसलिए ?
क्या -
कोई एक ऐसा सिस्टम
नहीं हो सकता ?
हम नहीं बना सकते ?
जिसमें, हमें
हर घड़ी, हर पल
न लड़ना पड़े
अपने -
अधिकारों के लिए !
आजादी के लिए !!

... रात - दिन खिन्न हैं !

सर्द मौसम है तो रहता रहे
हमें तो पांव से गर्मी, जमीं से मिल रही है !
...
किसी के नर्म आदाब ने, हमें अपना बना लिया
उफ़ ! अब करें तो क्या करें !!
...
पहले सुना सुना कर प्रसन्न थे, अब सुन सुन कर सन्न हैं
नेता - अफसर लोकपाल के नाम से, रात - दिन खिन्न हैं !
...
ये कैसी आग है जो सीने में सुलगी हुई है
न जला के राख करती है, न बुझती ही है यारा !
...
धक्का-मुक्की, खींचा-तानी, पटका-पटकी
खाते रहो, देते रहो, लड़ते रहो, बढ़ते रहो !!

पुरूस्कार ...

भाई साब ... पुरूस्कार -
बेच दो !
खरीद लो !
चरणों में रख दो !
किसी की जेब में डाल दो !

किसने मना किया है ?
कौन मना कर सकता है ?
पर
किसी योग्य के सिर पर -
सम्मान के रूप में मत सजाओ !!
और, अगर
सजाओ भी तो तब, जब ... !!

ये क्या है ?
ये कौन-सी नीति है ?
ये कैसी परिपाटी है ?
ये कैसे संस्कार है ?
महानुभावों की -
जय हो ! जय जयकार हो !!

Friday, December 23, 2011

ए वतन मेरे वतन ...

वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

जमीं से आसमां तक
तुझको है मेरा नमन
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

भूख से, मंहगाई से
जीना हुआ दुश्वार है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

भ्रष्ट हैं, भ्रष्टाचार है
धोखे-घुटालों की भरमार है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

मद है, मदमस्त हैं
खौफ है, दहशत भी है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

भूख है, गरीबी है
सेठ हैं, साहूकार हैं
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

अफसरों की शान है
मंत्रियों का मान है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

आज गम के साए में
चल रहा मेरा वतन
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !!

अड़चनें ...

मुझे जब जब कोई लड़की भाई
जब जब उसने मेरी ओर
या मैंने उसकी ओर बढ़ना चाहा
अड़चनें आ गईं
क्यों आईं, किसलिए आईं, अड़चनें !
ये तो मैं नहीं जानता !!

पर, हाँ, इतना जरुर -
मानता हूँ, महसूस करता हूँ
कि -
अड़चनें सही थीं !
अड़चनें, क्यों सही थीं ?

अड़चनें सही थीं, क्यों ? किसलिए ??
क्यों, क्योंकि -
हर बार मैंने उस लड़की की ओर
बढ़ना चाहा, जिसे -
मैंने कम -
हालात ने ज्यादा सही माना, पसंद किया !!

हालात -
किसी दोस्त ने कहा !
किसी पर दया आई !
किसी ने कुछ बोल कर उकसाया !
या किसी को दिखाने के लिए !
पर, हर बार, कुछ न कुछ
ऐंसे ही हालात रहे थे !!

सबसे बड़ी बात तो ये है कि -
अड़चनें
बिलकुल तब आईं, जब
मिलने और बिछड़ने में, बिलकुल ...
चाय के भरे प्याले -
और हौंठों के बीच की दूरी -
जितनी दूरी थी !

कमोवेश,
बिलकुल इतनी ही दूरी पर
अड़चनें आईं, और आकर -
लड़कियों को -
अपने सांथ लेकर चली गईं !
हम मिले -
और मिलकर बिछड़ गए !!

अजब अड़चनें थीं
गजब अड़चनें थीं
उधर वो सोचते होंगे, इधर हम !
पर, थी सभी लड़कियाँ -
बिलकुल अड़चनों की तरह
सच ! अजब-गजब !!

( विशेष नोट - कल एक मित्र से लम्बी बात हो रही थी ... उसकी बातें सुन ... सुनकर यह एक कविता जैसी बन गई ... सोचा पोस्ट करूँ या न करूँ ... लिखने के बाद सोचा डिलीट कर दूं ... लिखने के बाद डिलीट करने की इच्छा नहीं हो पाती इसलिए ठोक रहा हूँ ... काश ! कोई दिल पे न ले !! )

... क़यामत सी लगे है !

क्या करें, सत्ता हाँथ से जाते दिख रही है
आगे कुआ, तो पीछे खाई है !
...
तुमने भी क्या खूब तमाशा खडा किया है यारो
ज़माना देख रहा है, कैसे कुछ बोलें, कैसे खामोश रहें !
...
ये कैसी सल्तनत है, और कैसा अहंकार है 'उदय'
जिसे देखो वही, सत्ता के नशे में चूर दिखता है !!
...
बड़े इत्मिनान से 'रब' ने तराशा है तुझे
सिर से पाँव तक, क़यामत सी लगे है !
...
शान झूठी पर अहंकार सच्चा है
किले पे बैठ के, हुंकार भरता बच्चा है !

Thursday, December 22, 2011

... चवन्नी छाप कहता है !

आज सुबह ही उसे ट्रेन में बिठा के आया हूँ
और लग रहा है जैसे सदियाँ हुई हैं !
...
कुछ तो रहम कीजिये हुजूर
बेचारा गूंगा है कुछ कह नहीं सकता !
...
कौन छोटा या कौन बड़ा है, समझ पाना मुश्किल लगे है
ये एक दूजे की शान में, बाअदब सिर झुका रहे हैं !
...
'खुदा' जाने, वो खूबसूरत है भी या महज अफवाहें हैं
हमें तो बस इन आँखों का धोखा लगे है !
...
वो 'औघड़' है मगर सौ टके की बात कहता है
दिल्ली के तमाशे को, चवन्नी छाप कहता है !

ग्रेजुएट ...

क्या करूँ, क्या न करूँ ?
सोच सोच के -
बहुत टेंशन बढ़ रहा है !

ग्रेजुएट हूँ, इसलिए -
मजदूरी भी नहीं कर सकता !

एक अच्छे घर का हूँ,
इसलिए -
भीख भी नहीं मांग सकता !

आत्मा स्वाभिमानी है,
इसलिए -
चोरी, लूट, डकैती, ठगी, जैसे
असामाजिक -
काम भी नहीं कर सकता !

सोच रहा हूँ -
बार बार यही सोच रहा हूँ !
ग्रेजुएट हूँ -
करूँ तो आखिर क्या करूँ !!

... ये खुदगर्जों का शहर है !

एक दूजे की दुम को, खुद ही ये सहला रहे हैं
कोई काट के न फेंक दे इसलिए घवरा रहे हैं !
...
'खुदा' जाने, ये कौन-सी बिरादरी के लोग हैं
जो एक दूसरे को गुरु-गुरु कह रहे हैं !
...
ये बहुत शातिर लोग जान पड़ रहे हैं 'उदय'
बस, हाँ, ना, ना, हाँ, कर रहे हैं !
...
रूठ जाओ या मान जाओ, किसे फर्क पड़ता है
ये मत भूलो, ये खुदगर्जों का शहर है !
...
मैं और तुम ... कब तक ?
कब होंगे ? ... हम !!

Wednesday, December 21, 2011

रोड़ा ...

नफ़रत के शोले -
दिलों में, दहकने लगे हैं !
कोई है -
जो अमन चाहता ही नहीं है !
न जाने कौन है -
जो राह में रोड़ा बना है !
क्यों है ?
आखिर वो चाहता क्या है ?
सुकूं, चैन, सत्य, अहिंसा से
उसे परहेज क्यों है ??

फांसी ...

बहुत हो गया, एक काम करो -
चढ़ा दो
उसे फांसी पर !

क्यों, क्योंकि -
वह गांधीवादी तो है
पर तालीबानी गांधीवादी है !

वह अहिंसा का पुजारी तो है
पर हिटलर है !

वह बहुत खतरनाक है !
क्यों, क्योंकि -
वह खुद के लिए नहीं
आम लोगों के लिए लड़ रहा है !

ऐंसे लोग बेहद खतरनाक होते हैं
जो खुद के लिए न लड़कर
आम लोगों के लिए लड़ते हैं !

वह किसी न किसी दिन
हमारे लिए
खतरा साबित होकर रहेगा !

जितना बड़ा खतरा आज है
उससे भी कहीं ज्यादा बड़ा खतरा !

इसलिए -
जाओ, पकड़ के ले आओ उसे
ड़ाल दो, किसी अंधेरी काल कोठारी में !

और तो और, मौक़ा मिलते ही -
चढ़ा दो
उसे फांसी पर !!

अकड़ ...

सच ! ये अकड़ रहे हैं
कुछ ज्यादा ही अकड़ रहे हैं !
इनकी आदत तो है -
अकड़ने की !
पर, इस बार कुछ ज्यादा ही -
अकड़ रहे हैं !!

भ्रष्ट, घुटालेबाजों को -
अकड़ना चाहिए
पर, इतना ज्यादा नहीं !
जितना ये -
इस बार अकड़ रहे हैं !!

आज नहीं तो कल, इनकी -
अकड़
हेकड़ी
घमंड
टूट के, चूर चूर हो जाना है !
क्यों, क्योंकि -
जनसंसद सब समझ रही है !!

... चारों तरफ कांव-कांव है !

तेरी हाँ हो, या ना हो, या रहे खामोश तू
तेरी मुस्कान के आगे, सब बेअसर हैं !!
...
मैं जब तक रहा ज़िंदा, बंद थी बोलती सब की
अब मर गया हूँ तो चारों तरफ कांव-कांव है !
...
तेरे सांथ होने से, जिंदगी में उथल-पुथल सी है
मगर तेरा सांथ, 'खुदा' से कम भी नहीं लगता !
...
'सितारों' का टूटना कैसा, औ न टूटना कैसा
उन्हें तो हर हाल में, जगमगाना है !
...
कब तलक अंधेरों में, यूँ ही मायूस बैठोगे
क्यूँ खुद ही 'दीप' बन जल नहीं जाते !

Tuesday, December 20, 2011

एक नई इंकलाबी चाहिए !!

रोज हो रही हैं पार, हदें और सरहदें
ऐंसे बेलगाम दरिंदों के सिर कलम होने चाहिए !

सरेआम जो खुद का सौदा हैं कर रहे
ऐंसे बेईमानों को दोजख नसीब होना चाहिए !

भूल जाओ उनको, जो भूल गए हैं तुम्हें
ऐंसे मौकापरस्तों को, गद्दार कहना चाहिए !

सिर पे कफ़न बाँध, जो घर से निकलते रोज हों
आज मेरे मुल्क को, ऐंसे ही मसीहा चाहिए !

कब तलक जीते रहें, हम झूठें दिलासों पर 'उदय'
अब मेरे मुल्क में एक नई इंकलाबी चाहिए !!

Monday, December 19, 2011

भारतीय संविधान ...

"भारतीय संविधान प्रत्येक इंसान को स्वर्गरूपी जीवन प्रदान करने के लिए उपयुक्त व पर्याप्त है किन्तु क्रियान्वयन में लचरता व असफलता के परिणाम स्वरूप ज्यादातर लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है ... अफसोसजनक !"

आपके विचार भिन्न हो सकते हैं, आपके विचारों का स्वागत है ...
.

कालाधन ...

बिट्टू - चच्चू, काला धन क्या होता है ?
चच्चू - बेटा ... कालाधन ... बोले तो, जो आम इंसान को दिखाई न दे !

बिट्टू - और सफ़ेद धन ?
चच्चू - बेटा, वह जो आम इंसान के हांथों में आते ही गायब हो जाए !!
.

... नफ़रत भी हुई है !

कैसे कह दें, आशिकी से परहेज है हमको
कोई चाहता तो है, पर खामोश रहता है !
...
हे 'खुदा' ये मुहब्बत है, या कोई सजा है
धड़कनें तेज हैं, और बड़ी बेचैनियाँ हैं !!
...
'खुदा' ही जाने, ये कैसी क़यामत है
उधर वो कुछ नहीं कहती, इधर हिम्मत नहीं होती !
...
न जाने किन गुनाहों की सजा हमको मिली है
मुहब्बत भी हुई है, नफ़रत भी हुई है !
...
मिलो तो बेचैनी, न मिलो तो बेचैनी
कोई समझाए हमें, मुहब्बत का ये कैसा सबक है !

Sunday, December 18, 2011

तैयारी ...

सुनते हैं चन्द्रमा और मंगल पर
एक एक -
नई बस्ती बसने वाली है !
हमारे सारे नेताओं -
तथा बड़े-बड़े अफसरों की
वहां पर बसने की तैयारी है !
देखो भईय्या,
खुद भी संभलो -
और संभालो घरौंदों को !
इनकी तो -
देश को बेच-बाच के
वहां जाने की पूरी तैयारी है !!

... अजनबी नहीं हैं हम !

'खुदा' जाने, क्यों ? किसी की रंजिशों में नाम है मेरा
ठीक ही है, इसी बहाने शहर में अजनबी नहीं हैं हम !
...
तेरी हाँ, और न ही अब रंज होगा तेरी ना पे
उफ़ ! होनी थी मुहब्बत, हो गई है !!
...
नींद भी सोने कहाँ देती है हमको रात में
अब तुम ही कहो -
किस घड़ी, तुम होते नहीं हो ख़्वाब में ?
...
बाबू, पीए, चपरासी, खेल रहे हैं, लाखों और करोड़ों में
तो क्या हुआ ?
बड़े साहबों का नाम लिखा है, स्वीस बैंक के खातों में !!
...
न जाने क्यूँ, वो आज दस्तक दे रहा है 'उदय'
कल तक हमें जिसका, इंतज़ार था !

चाह ...

"चुम्बन, आलिंगन, मिलन, सम्भोग, जैसे छोटे-मोटे व्यवहारिक शब्दों को पढ़कर महिलाएं उद्धेलित जैसी हो जाती है ... पता नहीं, आज के बदलते परिवेश में वे किस आजादी, स्वतंत्रता, समानता की चाह रखती हैं !"

हाईकू टाईप ...

०१
घुप्प अंधेरा
साँसों में सरसराहट
सुलगते जिस्म !
०२
दहक रहे थे
दोनों तरस रहे थे
दरवाजे पर !
०३
युवा जिस्म
कड़कडाती ठण्ड
बेचैनी ... !
०४
गर्म साँसें
धड़कते दिल
जिज्ञासा ... !
०५
आँखें भूखी
होंठों पे कम्पन
तन व्याकुल !

Saturday, December 17, 2011

... जिंदा नही हैं !!

एक और मुसाफिर चला गया है छोड़ कर
सफ़र जारी है, स्टेशन अभी दूर है अपनी !
...
चलते चलते बहुत दूर निकल आया हूँ
याद आया तो शब्दों में मिल जाऊंगा !
...
हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं !!
...
अकेला था, मैं अंतिम घड़ी में
अब तुम्हारा हमसफ़र मैं बन गया हूँ !
...
अब हमें दोस्ती पर से एतबार उठ चुका है 'उदय'
काश ! झूठे दिखावे के हम फनकार होते !!

... दीदार को बेचैन हो जाएं !

रोज मर रहे हैं लोग, तड़फ - तड़फ के भूख से
फिर भी अपने मुल्क में, जन्मदिन की धूम है !
...
सिर्फ दो मुलाकातों में, न सौंप दो खुद को
मुसाफिर हूँ, इतना न एतबार करो !
...
झूठ की बुनियाद है, और तू अकड़ के है खडा
'रब' ही जाने कब तलक, तू खडा रह पायेगा !
...
हम तो दिलबर को आँखों में बसा के घूमते हैं
न जाने किस घड़ी, दीदार को बेचैन हो जाएं !
...
चलो अच्छा हुआ, जो भीड़ का हिस्सा नहीं थे हम
अकेले में सफ़र का, मजा कुछ और होता है !

... तूफां भी ठहर जाएगा !

वक्त की ओट में बैठा रहेगा कब तक तू
बढ़ आगे, ये तूफां भी ठहर जाएगा !
...
यहाँ पर कौन है जिसको ख्याल अपना है
जिसको देखो, वही खोया खोया है !
...
यूँ न समझो कि तेरे झूठे इल्जाम से डर जाएंगे
मान जा, वर्ना ! तुझ पे भी एक इल्जाम लगा जाएंगे !!
...
कहाँ फुर्सत किसी को है, जो बातें तेरी सुन लें
बहरे हो रहे हैं लोग, अब हंगामा जरुरी है !
...
न रंज-ओ-गम होगें, न शिकवे-गिले होंगे
यकीं से आ गले लग जा, नहीं अब फासले होंगे !

शाबासी ...

देखकर अफसोस है कि -
तुम्हारे -
चेले-चपाटे
भाई-भतीजे
गुरु-शिष्य
तुम्हें, आगे बढाने में रूचि नहीं रखते !

क्यों, किसलिए ?
वे सभी के सभी तुम्हारे
कच्चे, अधपक्के लेखन पर खामों-खां
हाँ में हाँ,
मिलाते दिखाई देते हैं !

वे चाहते ही नहीं
कि -
तुम जीते जी, या मरने के बाद
कभी भी -
राष्ट्रीय पहचान पा सको !

दुःख ही होता है
देखकर -
तुम्हारे घटिया लेखन पर
उनकी
झूठी-मूठी शाबासी !

उनकी शाबासी से
तुम कितने खुश होते हो !
देखा है मैंने
कुछ पल को -
तुम झूमने से लगते हो !!

खैर, अब तो तुम्हारी -
आदत पड़ गई है, शाबासी की !!

Friday, December 16, 2011

... कौन सच्चा, कौन झूठा ?

सुबह की ठण्ड है, या बर्फ की दुनिया हुई है
जिधर देखो उधर, गर्म साँसें भाप बन के उड़ रही हैं !
...
अभी तो ये महज एक सरसराहट है
अभी से क्यूँ भला तुम सहमे हुए हो !
...
बामुश्किल 'गुड नाईट' कह के सोये थे
सच ! नींद में ही वे हमें 'गुड मार्निंग' कहते दिख रहे थे !!
...
आरोप ... सजा ... मुक्ति ... इधर ... उधर
कौन सच्चा, कौन झूठा ?
...
दिल धड़कता सा है तेरी आहट पे
कैसे कह दें कि मुहब्बत नहीं है तुमसे !

जिंदगी ...

फिर से -
एक नई शुरुवात करनी होगी
हमें ...
नए शब्दों, नए विचारों -
नए कदमों के सांथ !
नई राहों पर
नई मंजिल की ओर !!
जिंदगी -
हर पल, हर क्षण
सफ़र ही तो है !
हमें, तय करना है, फासला -
अंतिम साँसों तक ... !!

डबल कम्बल ...

डबल कम्बल की ठंड -
शुरू हो गई है ...
डबल बोले तो, डबल !
बोले तो, एक के ऊपर एक
जी हाँ, डबल !!
ठण्ड में -
सिकुड़ने से
अकड़ने से
बच बच के चलना है !
इसलिए ही तो
डबल कम्बल जरुरी है !!
वर्ना कहीं ऐंसा न हो
कि -
कम्बलें रखी रह जाएं ...
और शरीर -
ठण्ड में अकड़ जाए !!

जाड़ा ...

इतने जाड़े में भी
तुम्हारे भीतर शर्म है -
हिचकिचाहट है !
आओ -
आकर लिपट जाओ !
तुम्हें भी -
जाड़ा लग रहा है
तुम में भी कंप-कंपाहट है -
मेरी तरह !
आओ लिपट जाओ
सिमट जाओ
आज गजब का जाड़ा है !!

प्यार ...

सिर्फ इत्ते से सवाल पर
कि -
मैं तुम्हें -
प्यार करता हूँ या नहीं ?
तुम पूंछ के -
मैं सुन के चुप हूँ ... !
मैं जानता हूँ
कि -
तुम क्या सुनना चाहती हो !
और मैं क्या बोलना चाहता हूँ !!
फिर भी
तुम भी चुप हो
मैं भी चुप हूँ !
सच ! क्या यही प्यार है !!

सरकार ...

झूठ बोलो
जितना जी चाहे झूठ बोलो
हमारा अधिकार है !
झूठ बोलने का !!
क्यों, क्योंकि -
हम सरकार हैं, हम बोल सकते हैं
झूठ पे झूठ !
कोई हमारा क्या उखाड़ लेगा
अगर कोशिश करेगा तो
हम उसे, उखाड़ने के आरोप में
या किसी और आरोप में
फंसा देंगे, उलझा देंगे, ठूंस देंगे
थाने में, कोर्ट में, जेल में
क्यों, क्योंकि -
हम सरकार हैं, हमारी सरकार है !!

सच ! हमें दफ्न कर दो !!!

हमें, दफ्न कर दो !
कौन कह रहा है
कि -
हम ज़िंदा हैं !
हम मर चुके हैं, न जाने कब के !
अब यह याद भी नहीं है
कि -
किसने मारा है ?

भूख ने
गरीबी ने
बीमारी ने
मंहगाई ने
सरकारी नुमाइंदों ने
या
दिखावटी सरकार ने !

या फिर -
भूकंप के झटकों ने
सुनामी की लहरों ने
आग उगलती गर्मी ने
या
कड़कडाती ठण्ड ने !

या फिर -
फर्राटे से भागती किसी गाडी ने
किसी बन्दूक की गोली ने
या
किसी बम के धमाके ने !

पर,
यह सच है, यह तय है !
कि -
हम मर चुके हैं !!
तुम्हारा जब जी चाहे -
हमें, दफ्न कर दो !!
सच ! हमें दफ्न कर दो !!!

मंहगाई ...

मंहगाई बढाने में क्रिकेट व टेलीविजन चैनल्स के प्रायोजक प्रोडक्ट्स की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है यदि इन दोनों के प्रायोजक प्रोडक्ट्स की लिस्ट बना कर इन प्रोडक्ट्स का घोर / घनघोर विरोध किया जाए अर्थात इन्हें खरीदना बिलकुल ही बंद कर दिया जाए तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मंहगाई गिर कर ज़मीन पर आ जायेगी ...

तात्पर्य यह है कि इन्हीं प्रोडक्ट्स के कारण क्रिकेट व टेलीविजन चैनल्स से जुड़े सभी प्रकार के कच्चे-पक्के लोगों का गुजर हो रहा है, सब सिलेब्रेटी बने हुए हैं ...

इन प्रोडक्ट्स के कारण दैनिक उपभोग की सभी बस्तुओं के दाम भी आसमान छू रहे हैं, यदि यह कहा जाए कि नमक-मिर्च की बढ़ती कीमतों में भी इनका प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष तौर पर योगदान है तो यह अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा ...

इस दिशा में भी एक विशाल जनजागृति / जनआन्दोलन की जरुरत है !!
.

Thursday, December 15, 2011

बेखबर ...

कोई नहीं जानता है, कि -
मैं कौन हूँ ?
किस ओर चल रहा हूँ ?
लोग -
कैसे जान सकते हैं ?
जब -
मैं खुद ही बेखबर हूँ, कि -
मैं कौन हूँ ?
किस ओर चल रहा हूँ ??

अब हंगामा जरुरी है !

इंसा हो रहे बहरे !
कौमें हो रहीं बहरी !
सियासतें -
भी हो गईं हैं, बहरी !

अब
कहाँ फुर्सत किसी को है
जो
बातें सुन लें -
गरीब
मजदूर
किसान
असहाय, निसक्त व
बिलखती अबला नारियों की !

जिसे देखो, वही -
मस्त है, मदमस्त है !
मस्ती में झूम रहा है !
बहरे हो गए हैं -
बहरे हो रहे हैं लोग
सच ! अब हंगामा जरुरी है !!

लाश ...

सच ! अभी मैं मरा नहीं हूँ
तुम चाहकर भी -
मुझे अभी बेच नहीं सकते !
अभी मेरी -
सांस चल रही है !
दिल धड़क रहा है !
खून भी गर्म है !
एक काम करो -
तब तक, तुम चाहो तो
किसी और को तलाश लो !
शायद,
कोई और मिल जाए -
सौदे के लिए !
उसका जो चाहे -
किडनी
लीवर
आँख
या पूरी लाश -
तुम बेझिझक बेच देना !
मेरा ईमान मैंने बेचा नहीं था
शायद, इसलिए -
मुझे मरने में टाईम लग रहा है !
वैसे मैं भी अभी -
किसी ज़िंदा लाश से कम नहीं हूँ !!

मुर्दे ...

अब
आजादी की दरकार नहीं है !
क्यों, क्योंकि -
यहाँ कोई ज़िंदा नहीं है !
जो भी हैं -
जितने भी हैं, सब मुर्दे हैं !
सब अपना -
ईमान बेच चुके हैं !
मुर्दे -
आजाद होकर क्या करेंगे ??

Wednesday, December 14, 2011

कट-पेस्ट अर्थात लेखन की चोरी ...

यह देखने में आ रहा है फेसबुक / ब्लॉग से कुछ लेखकगण, कुछेक फेस्बुकिया / ब्लॉग मित्रों की "कट-पेस्ट" की हरकतों के कारण लेखन से दूर हो रहे हैं, या यूँ कहा जाए कि वे महत्वपूर्ण लेखन के पोस्ट से बच रहे हैं ...

यह बेहद दुखद व शर्मनाक ही कहा जा सकता है कि जो लोग "कट-पेस्ट" का इस्तमाल कर रहे हैं वे मूल लेखक का नाम तक का उल्लेख नहीं कर रहे हैं जबकि उन्हें चाहिए की मूल लेखक के नाम का उल्लेख करें या संबंधित लिंक का उल्लेख करें ...

जहां तक मेरा आंकलन है कि कुछेक फेस्बुकिया / ब्लॉगर मित्र यह कार्य दुर्भावना वश नहीं कर रहे हैं मैंने खुद ही महसूस किया है कि कुछेक मित्रों को कुछ लेखन पसंद आता है तो वे उसे तत्काल "कट-पेस्ट" कर दे रहे हैं जबकि उन्हें ऐंसा नहीं करना चाहिए ...

लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि कुछेक लोग दुर्भावनापूर्ण ही यह कार्य कर रहे हैं, ऐंसे लोग जो दुर्भावनापूर्ण ढंग से यह कार्य कर रहे हैं वे यह न भूलें की उनके विरुद्ध कानूनी दंडात्मक कार्यवाही भी की जा सकती है ...

क्योंकि फेसबुक / ब्लॉग पर प्रथम पोस्टिंग के टाईम के आधार पर यह प्रमाणित किया जाना बहुत ही सरल है कि चोरी अर्थात कट-पेस्ट किसने किया है ... सांथ ही सांथ तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुती भी प्रमाणित किया जाना सरल है ... अत: सभी सांथियों से आग्रह है कि वे चोरी अर्थात कट-पेस्ट से बचें अन्यथा किसी दिन उन्हें कानूनी पचड़ों से गुजरना पड़ सकता है ...

जो सांथी "कट-पेस्ट" अर्थात लेखन के चोरी होने के भय से दूर हो रहे हैं वे कतई न घवराएं ... लेखन व पोस्टिंग जारी रखें, क्योंकि कट-पेस्ट करने वाले का टाइमिंग आपकी पोस्टिंग की टाइमिंग के बाद का रहेगा ...

नोट :- कट-पेस्ट अर्थात लेखन की चोरी करने वालों के विरुद्ध भारतीय दंड विधान व अन्य विधानों के तहत कठोर दंडात्मक कार्यवाही संभव है अत: ऐंसी गलतियों से बचने का प्रयास करें, धन्यवाद !!

... किसी दिन काम आएंगे !

सच ! दौलत सहेजने के लिए, न सही
पर जीने के लिए, बेहद जरुरी है !!
...
गुरुर का टूटना जरुरी था
वर्ना जिंदगी का सफ़र, आसां नहीं होता !
...
झूठी शान की छतें, न सही
बादलों की आड़ में भी सो लेते हैं !
...
कब्र में भी चैन नहीं है
'खुदा' जाने, लोग शहर में कैसे जीते हैं ?
...
पड़े रहने दो आँगन में, किसी का क्या बिगाड़ेंगे
पत्थर हैं सही, लेकिन किसी दिन काम आएंगे !

मेरे लिए ...

एक नादां ने दिल में जलाए हैं दीपक
न जाने क्यूँ लगता है मेरे लिए !

सुनसान राहों पर भटकती हैं
उसकी आँखें -
न जाने क्यूँ लगती हैं मेरे लिए !

दूर से देखा तो -
टक-टकी लगाए देखती रही
पास आने पर
शर्म से, उसने झुका ली आँखें अपनी
न जाने क्यूँ लगता है मेरे लिए !

रोका था उसने इशारे से, मुझे
कुछ कहने के लिए
रुकने पर
शर्म से, उसने ढँक लिया चेहरा अपना
न जाने क्यूँ लगता है मेरे लिए !

चेहरे से हाँथ हटा कर
मुझे देखा
और हंस कर -
दूर दौड़ी चली गई
न जाने क्यूँ लगता है मेरे लिए !

एक नादां ने दिल में जलाए हैं दीपक
न जाने क्यूँ लगता है मेरे लिए !!

Tuesday, December 13, 2011

निजी स्वार्थ ...

संकट के समय
सभी जानवर एक हो जाते हैं
किन्तु ऐंसा नजारा
इंसानों में नजर नहीं आता !

निजी स्वार्थ -
इसका एक कारण है
लेकिन
निजी स्वार्थ -
कब तक हितकर होता है
खुद के जीते तक !

क्या यह भी एक भेद है ?
इंसानों -
और जानवरों में !!
जो
बुद्धि, विवेक से भिन्न है ??

... वे चश्मा पहन लें !!

तुम अब न ठहरो, हमारे इंतज़ार में
शायद ! अब लौट पाना मुमकिन नहीं लगता !!
...
हल्ला है, आज ही के दिन मंदिर पे हमला हुआ था
शुक्र मनाओ कि मूर्तियाँ चोरी नहीं हुईं !!
...
अब हम उनको खटकते हैं तो खटकते रहें
हम न बदलेंगे, वे चश्मा पहन लें !!
...
आज फिर एक शख्स जूती बन गया है
अदब से, जा पैरों में बैठा है !!
...
उनकी नजर में शब्दों से बड़े शब्दकार हुए हैं 'उदय'
तब ही तो, बड़े शब्दों को छोड़ के छोटों पे फ़िदा हैं !

महा-भारत ...

आज,
कोई दुर्योधन नहीं है !
लेकिन
धृतराष्ट्रों की संख्या में -
गड़बड़ झाला है !
संख्या -
गिनने में पकड़ से बाहर है !!
पता नहीं क्यों ?
कोई समझाए !!
ये कैसा महा-भारत है ??

... क्यूँ हुए पत्थर ?

अंतरआत्मा की आवाज सुन लें ?
कोई फ़ायदा नहीं, वह हमारा सांथ नहीं देगी !
...
गर चाहो तो, मेरी यादें सहेज के रखना
शायद ! मुझे आने में देर हो जाए !!
...
फासले से तुम ज़रा बैठा करो
मन मेरा, अब हो रहा कमजोर है !
...
कहीं दूर, घने धुंध से, पुकार रहा है कोई
न जाने कौन है ? जिसे आज भी मेरा इंतज़ार है !!
...
वो कहते फिरे हैं, कि पत्थरदिल हुए हैं हम
उफ़ ! क्यूँ हुए पत्थर ? ये बयां नहीं करते !

क़ानून ...

हमें
क़ानून का उतना डर नहीं है
जितना डर इस बात का है
कि -
तुम्हारे हांथों में क़ानून है !
न जाने कब
यह कह दो कि -
तुमने क़ानून का उल्लंघन किया है
और हमें फांसी चढ़ा दो !!

Monday, December 12, 2011

... क्यूँ बुझने नहीं देतीं ?

कातिलों के हाँथ में क़ानून है
मुंह फाड़े, आँखें नटेर रहा आम इंसान है !
...
जी करे है, बेईमानी सीख लें
अब कहाँ ईमान की पूजा हुए है !
...
खुशनसीबी हमारी जो नींद खुल गई
वर्ना 'रब' ही जाने, कब सवेरा होता !
...
सच ! न कालेज की डिग्री है, न पीएचडी हूँ
जो सामने दिखे है, उसी को ठोक देता हूँ !!
...
आश्चर्य ! तुम मुझे अभी भी प्यार करती हो
उम्मीदों के चिराग, क्यूँ बुझने नहीं देतीं ??

हे ईश्वर ...

हे ईश्वर ! हे अन्तर्यामी ! हे पालनहार !
कब तक -
तू यूँ ही मेरी परीक्षा लेता रहेगा ?
कब तक -
तू यूँ ही मुझे झकझोरते रहेगा ?
कब तक -
तू यूँ ही मुझे हार-जीत में उलझाए रहेगा ?
मुझे मालुम है कि -
मैं तुझसे जीत नहीं सकता हूँ, इसलिए
तू आज से -
मेरी परीक्षा लेना बंद कर दे !
मैं जान गया हूँ कि -
तू मेरे अन्दर ही बैठा हुआ है !
बस इशारा करते चल -
जैसा तू चाहेगा, वैसा मैं करते चलूँगा !!

Sunday, December 11, 2011

साहित्यिक बाबा ...

अरे भाई
वे किसी 'बाबा' से कम नहीं हैं !
उनके इर्द-गिर्द
दो-चार चेले-चपाटे रहते ही हैं
जो हर समय -
उनकी जय जयकार करते हैं !

उनके माथे पर -
'मठनुमा' एक टीका भी लगा रहता है
गले में पुरुष्कार रूपी -
तीन-चार मालाएं भी लटकी रहती हैं !

और तो और
उनके काँधे पे लटके झोले में -
चार-पांच प्रकार की भभूतियाँ भी रखी होती हैं
जिन्हें वे अक्सर -
नए चेले बनाने में प्रयोग में लाते हैं !

वे कितने -
ढोंगी, पाखंडी हैं, ये तो मैं नहीं कह सकता !
पर हाँ, इतना जरुर है
कि -
वे इस युग के 'साहित्यिक बाबा' हैं !

वे किसी को भी -
न सिर्फ पुरुष्कार रूपी वरदान दे सकते हैं
वरन -
रातों-रात पुरुष्कृत भी कर सकते हैं !
वे असीम शक्तियों वाले 'साहित्यिक बाबा' हैं
उनकी ... चहूँ ओर जय जयकार है !!

प्रवचन ...

कर्म
भाग्य
स्त्री
कविता
धर्म
दर्शन
इन्हें लिखना
इन्हें पढ़ना
इन्हें समझना
इन पे राय बनाना
कठिन काम है !
पढ़ते रहो, और आगे बढ़ते रहो !!
भले आज न सही, पर -
कल, परसों, नरसों, किसी न किसी दिन
निष्कर्ष पर जरुर पहुँच जाओगे !
और उस समय -
एक अच्छा व सधा हुआ -
प्रवचन देना संभव होगा
पर आज नहीं !!

राजनीति ...

इधर भी हाँ, उधर भी हाँ !
कभी हाँ में हाँ !
कभी ना में हाँ !
कभी हाँ में ना !
यह राजनीति है !!
हम नेता हैं, ये हमारी व्यवस्था है
क्या करेंगे, क्या नहीं करेंगे !
ये हमारी मर्जी है !!
तुम क्या करोगे जानकर -
हमारी मर्जी ??

परहेज ...

मैं जानता हूँ
कि -
मैं आज
बहुत से लोगों की आँखों में
खटक रहा हूँ !
वजह -
वजह सिर्फ इतनी सी है
कि -
मैं सच बोल रहा हूँ
और उन्हें
सच सुनने से परहेज है !!

लड़ाई ...

यह तो -
अधर्म के विरुद्ध
धर्म की लड़ाई है !

कितने धर्मी, अधर्मी, पाखंडी -
इधर हैं
उधर हैं
ये मायने नहीं रखता !

गर कुछ मायने रखता है
तो -
वो है धर्म !!

एक तरफ धर्म है
दूसरे तरफ अधर्म है
लड़ाई जारी है ... !!

Saturday, December 10, 2011

भ्रम ...

आज फिर
दिख रहे हैं, कुछ पहलवान
सीना ताने हुए
साहित्यिक अखाड़े में !

जी चाह रहा है
कर लिए जाएं, दो-दो हाँथ
हो जाए
थोड़ी-बहुत पटका-पटकी !

देख लिया जाए
आजमा लिया जाए
आज
उनको भी, खुद को भी !

हम नश्वर सही, पर
सुनते हैं
वो खुद को -
अमर समझते हैं !!

... हमें अपना दुश्मन समझता है !!

अड़ रहे हैं, भिड़ रहे हैं, लड़ रहे हैं, गढ़ रहे हैं
सत्य के ये पग हमारे, धीरे धीरे बढ़ रहे हैं !!
...
ठीक ही रहा, जो समय पे, तुमने नाक सिकोड़ ली
वर्ना हम तो तुम्हारी दोस्ती के, कायल हुए थे !!
...
'रब' जानता है, नीयत में खोट है किसकी
वर्ना, बेवजह यूँ तिलमिलाहट न होती !
...
'खुदा' ही जाने है, हालात मेरे दिल के
न दिन को सुकून है, न रातों को चैन है !
...
जब तक तेरा बसर था, मेरा हुआ था दिल
जब से चले गए हो, काफिर हुआ है दिल !
...
कैसे मान लें, ये मर जाएंगे चुल्लू भर पानी में
ये न भूलो, कि ये मच्छर हैं, जन्मे हैं वहीं पर !
...
खता नहीं थी उनकी, न कुसूर अपना था
जिस्म की आग थी, सुलगना जायज था !
...
सिर्फ सदियाँ नहीं, युग याद रखेंगे
ये अल्फाज नहीं, जज्बात हैं मेरे !
...
सच ! कल फिर, एक नए दोस्त से मुलाक़ात हो गई यारो
मगर अफ़सोस, वो अभी हमें अपना दुश्मन समझता है !!
...
उफ़ ! चिलचिलाती धूप, और ये रेतीली राहें
नंगे पैर सही, पर फासला तो तय करना है !

चमचागिरी ...

जी हाँ, मैं चमचा हूँ
'चमचागिरी' नहीं छोड़ सकता
क्यों, क्योंकि -
मैं 'चमचागिरी' के बल पर ही तो
ज़िंदा हूँ !
यारो, ख़ामो-खां -
क्यूँ हैरान होते हो !
'चमचागिरी' भी तो एक 'हुनर' है !
पर 'हुजूर'
ये 'हुनर' ... है कमाल का !
कोई काम रुकता नहीं है
देर सबेर हो ही जाता है, काम !
और तो और
आजकल तो चहूँ ओर -
जय जयकार है, 'चमचागिरी' की !!

सॉरी ...

लो भाई
मैं भी अंग्रेजी सीख गया हूँ !
आज से -
मैं भी, किसी की भी
अंग्रेजी में, न सिर्फ ऐंसी की तैंसी
वरन -
माँ
बहन
जात
पात ...
एक कर सकता हूँ !
और तो और, किसी की भी -
बेधड़क
बेहिचक
खटिया भी, खड़ी कर सकता हूँ !
बात जब
पिटने-पिटाने की आयेगी
तब
सिर झुका के "सॉरी" कह दूंगा !!

Friday, December 9, 2011

चिराग ... बंदूकें ...

चिराग ...
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जिस जगह
प्यार मेरा दफ़्न था
आज
उस जगह
हवन बेदी बन गई है !
अब रोज -
वहां
स्वाहा ... स्वाहा ...
आहुती पड़ रही हैं
जहां
बन के चिराग
मैं कभी से जल रहा हूँ !!

बंदूकें ...
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गाँव में जब वे आते हैं
कौन ?
दादा लोग ...
हाँ तो ?
तो क्या, अब वो मुझे अच्छे लगने लगे हैं !

उनके कंधे पे बंदूकें होती हैं !
वे वर्दी पहने हुए होते हैं !
क्या खूब रुतबा होता है उनका, सारे गाँव में
सुना है, पूरे इलाके में भी उनका रुतबा है !!

अब तो जी करता है
कि -
मैं भी उनके जैसा ही हो जाऊं !!