Friday, December 31, 2010

नया साल है चलो कुछ नया ठोक दें ...

कल तक हमें पता नहीं था, कि हम कहाँ हैं
चलो आज का दिन खुशनुमा है, हम यहाँ हैं !
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सर्द हवाएं और है कडकडाती ठंड
गुनगुनी धूप संग बिखरा सवेरा !
...........
न जाने, कौन है, जो मेरी राहों को तकता है
गुजरता हूँ, गुजर जाता हूँ, पर मेरी आहट से छिपता है !
...........
'उदय' क्या सोचते हो, नया साल है चलो कुछ नया ठोक दें
कोई तो होगा मायूस, चलो उसे ही नव वर्ष शुभा-शुभ बोल दें !!

नया साल शुभा-शुभ हो, खुशियों से लबा-लब हो
न हो तेरा, न हो मेरा, जो हो वो हम सबका हो !!

नव वर्ष ...


नया साल शुभा-शुभ हो, खुशियों से लबा-लब हो
हो तेरा, हो मेरा, जो हो वो हम सबका हो !!

नव वर्ष के अभिनंदन में,
हम-तुम मिल कर वचन करें,
कदम से कदम मिला कर ही,
हम-तुम मिल कर कदम चलें,

न हों बातें तेरी-मेरी,
न हो बंधन जात-धर्म का,
न हो रस्में ऊंच-नीच की,
न हो बंधन सरहदों का,
न हो भेद नर और नारी में,

हो तो बस एक खुला बसेरा,
बिखरी हो फूलों की खुशबू,
रंग-रौशनी छाई हो,

बाहों में बाहें सजती हों,
कंधों संग कंधे चलते हों,
नर और नारी संग बढते हों,
जन्मों में खुशियां खिलती हों,

धर्म बना हो राष्ट्रमान,
कर्म बना हो समभाव,
नव वर्ष का अभिनंदन हो,
धर्म-कर्म का न बंधन हो,

खुशियां-खुशबू, रंग-रौशनी बिखरी हो,
गांव-गांव, शहर-शहर,
हर दिल - हर आंगन में,
नव वर्ष के अभिनंदन में,

मान बढा दें, शान बढा दें
चेहरे-चेहरे पे मुस्कान खिला दें,
हम-तुम मिलकर
वचन करें - कदम चलें,
नव वर्ष के अभिनंदन में !!

... सभी साथियों को नव वर्ष की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं !!

Thursday, December 30, 2010

टूजी घोटाला !!

हद हो गई, बदनामी हो गई, और टूजी घोटाले में, मजा भी नहीं आया
चलो इस बार, कुछ ऐसा सोचो, सुनकर जनता क्या, सारा देश थर्रा जाए !!

Wednesday, December 29, 2010

सफ़र ...

जाने, कौन जाने
कब तलक
चलना है मुझको !
सफ़र है, रास्ते हैं, और मेरे पग
इरादों संग, निरंतर बढ़ रहे हैं !

मिलेंगी मंजिलें
रस्ते बड़े हैं
थकेंगे कभी, ये पग मेरे हैं !
मेरे जज्बे, हौसले
पगों
संग, होड़ में आगे खड़े हैं !

सोचो तुम
थक कर, कहीं, मैं ठहर जाऊं !
ये पग
जज्बे
इरादे
हौसले
मैंने गढ़े हैं !

चलो चलते रहो, बढ़ते रहो
तुम, संग संग मेरे
पीछे रास्ते मैंने गढ़े हैं !
सफ़र
थोड़ा बचा है, चलो चलते रहें
सुकूं की सांस लेंगे
हम, पहुँच कर, मंजिलों पर !!

Tuesday, December 28, 2010

... बेचारा स्वीस बैंक का कोड दिल में रखे था !

क्या गजब ढाते हो यारो, भ्रष्टाचार का खुल्लम-खुल्ला मौक़ा देते हो
और जब कर देते हैं हम भ्रष्टाचार, फिर चिल्ल-पौं पर उतर आते हो !
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हमारा खजाना है, लूट रहे हैं, देश के खजांची जो हैं
तुम्हारा क्या लूट लिया, जो ख़ामो-खां चिल्ला रहे हो !
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लो भाई ये भी खूब रही, पहले नेता बना दिया
एक-दो घोटाले क्या हुए, अब लुटेरा कह रहे हो !
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कल एक नेता हार्ट अटैक में चल बसा
बेचारा स्वीस बैंक का कोड दिल में रखे था !
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चुनाव जिताकर भेज दिया, दिल्ली हमको
अब हमारे लौटने की, क्यों राह तकते हो !

Monday, December 27, 2010

जिज्ञासा ...

सच ! हाँ जानती हूँ, तुम मुझे
निर्वस्त्र देखना चाहते हो, घंटों निहारना चाहते हो
सिर से पैरों तक, फिर पैरों से सिर तक !

आगे से, पीछे से, अकेले में, रौशनी में
तुम चाहते हो, देखना मुझे, निर्वस्त्र ...
अपनी मद भरी आँखों से !

सच ! तुम कितने लालायित हो
मैंने एक-दो बार भांपा है
तुम्हारी नजरें स्थिर बन, ठहर सी जाती हैं
कभी कभी, मुझ पर, कपडे बदलते समय !

और तो और, एक-दो बार, तुमने मुझे
नहाते समय, देखने का असफल प्रयास भी किया
किन्तु, तुम सहम गए !

तुम्हारी सालों की लालसा, चाहती हूँ
कर दूं पूरी, पर क्या करूं
शर्म के कारण
सच ! चाहकर भी, सहम जाती हूँ !

कल तो मैंने, मन ही बना लिया था, पर
चाहते चाहते
शर्म उतर आई, रुक गई, ठहर गई
नहीं तो कल रात, तुम्हारी जिज्ञासा, हो गई होती पूरी !

सच ! अब मुझसे भी, तुम्हारी लालसा -
व्याकुलता, देखी नहीं जाती
देखें, कब तक, शर्म रोक सकती है मुझको !

या फिर, किसी दिन, शर्माते, लजाते ही
अपनी आँखों को, मूँद कर
मैं तुमसे, चुपके से, कह दूंगी, लो, कर लो पूर्ण
चुपके से, धीरे से, अपनी जिज्ञासा पूरी !!

Saturday, December 25, 2010

उम्रकैद ...

उम्रकैद
एक सजा है ! सच
मुझे उम्मीद थी, कि मुझे सजा होगी
मैं जानता था, बहुत पहले से, कि ऐसा हो सकता है
क्यों, क्योंकि -
मैं, अपने देश के हालात को
आज-कल से नहीं, वरन सालों से जानता हूँ !

आये दिन -
लूट, ह्त्या, छेड़छाड़, बलात्कार, भ्रष्टाचार, घोटाले
जैसी गंभीर वारदातें
खुलेआम होती हैं
और अपराधी, खुल्लम-खुल्ला घूमते हैं !

अब उनका क्या दोष !
वे पकड़ में नहीं आते, और यदि पकड़ आते भी हैं
तो उन्हें कोई सजा
पता नहीं, क्यों नहीं होती !

पर मुझे पता था
कि मुझे सजा जरुर होगी, होनी ही चाहिए
क्यों, क्योंकि -
मैं, लड़ता रहा हूँ, लड़ रहा हूँ अन्याय से !
चलो ठीक ही हुआ
कौन चाहता, कौन चाहेगा, मेरा स्वछंद रहना !

मेरी बातें, आवाजें, डरावनी सी हैं, जो बेचैन करती हैं
कुछेक कानों को
कम से कम अब उन्हें, सुकून रहेगा
मेरे कालकोठरी में रहने से !

पर कुछ, दुखी जरुर होंगे, उनका दुख
अब क्या कहूं !
पर मुझे कोई दुख, अफसोस नहीं है, उम्रकैद से !!

Friday, December 24, 2010

चलो बन जाएं आज, हम सब 'सांता क्लाज' !!



चलो बन जाएं आज, हम सब 'सांता क्लाज'
मिलकर बांटे खुशी, सोचें कौन अपना, कौन पराया है !
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तेरी खामोशियों से, कोई शिकायत नहीं है हमको
कम से कम वादा करने, मुकर जाने का डर जो नहीं है !
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हर पहर इबादत को, हाथ उठते नहीं हमारे
'खुदा' जानता है, सुबह-शाम के मजदूर हैं हम !
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है आलम अमीरी का, फिर भी फटे कपडे
चलो कोई बात नहीं, हम गरीब ही अच्छे हैं !
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हर रोज, बदला बदला सा, नजर आता है चेहरा तुम्हारा
चलो आज, खुशनसीबी है, जो मुस्कराहट भी नजर आई !
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गरीबी, लूट, मंहगाई, दिन--दिन बढ़ रही है
क्या फर्क, बढ़ने दो, हमें तो सरकार की चिंता है !
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Thursday, December 23, 2010

ठण्ड ...

आज रात कुछ अजब सी ठण्ड
और मैं ठण्ड से ठिठुर रहा हूँ
सारी राह मैं तुम्हें हर पल याद
सचमुच याद करते चल रहा हूँ
सच ! उस रात के एक एक पल
मेरी आँखों में, याद से समा रहे हैं
उस ठिठुरती रात में कैसे तुमने
मुझे अपने आगोश में लिया था
और कैसे तुमने मेरे बदन के
अंग अंग को छू कर, चूम कर
अंगारे की तरह तपतपाया था
हाँ सचमुच याद है मुझे वो रात
आज की इस ठिठुरती रात से भी
वो रात कहीं अधिक ठंडी थी !
पर आज मैं डरते, ठिठुरते
सहमते बढ़ रहा हूँ, शायद तुम
तुमने मुझे माफ़ नहीं किया होगा
तुम अब तक नाराज बैठी होगी
गुस्ताखी ! सुबह जल्दबाजी में तुम्हें
चुम्बन दिए बगैर जो चला आया हूँ !

यह सफ़र, यह रास्ता और यह ठंड
कैसे भी, किसी भी तरह गुजर जाए
और तुम मेरी सुबह की गुस्ताखी
भूलते, माफ़ करते, हंसते हुए
दर पर राह निहारते मिल जाओ
यह उम्मीद भी सिर्फ इसलिए
कि तुम जानती हो, मैं सिर्फ
सिर्फ तुमसे अटूट प्यार करता हूँ
आज इस कडकडाती ठंड में
तुम ही मुझे नया जीवन दे सकती हो !
यह चंद मिनटों का बचा सफ़र
तो मैं जैसे-तैसे तय कर लूंगा
पर घर पहुँचने पर, जाने
तुम्हारे नाराजगी भरे पलों में
मुझ पर कैसी गुजरेगी, तुम्हारे
मर्म स्पर्श के बगैर एक एक पल
जाने कैसे मुझे जीवित रखेंगे
तुम्हारे मर्म स्पर्श, तन, मन, होंठ
मुझे जो सुकूं, तपन, राहत देंगें
सच ! उससे ही मुझे जीवन मिलेगा !!

Wednesday, December 22, 2010

झूठी महात्वाकांक्षा : नौकरानियों के डगमगाते मन !

यार शिल्पी कुछ दिनों से मन में कुछ अजीब सा हो रहा है ... क्या हुआ बोलना आशा ... अब क्या बोलूँ, बताने में शर्म भी लग रही है ... यार तू भी मेरे से शर्माएगी तो फिर जीवन में करेगी क्या ... मेरा मतलब वैसे शर्माने से नहीं है ... तो फिर ... मैं जिस घर में काम करती हूँ मालिक की नजर मुझ पर लट्टू हो रही है जबकि मालकिन बिलकुल ऐश्वर्या राय जैसी सुन्दर है ... सारे मर्द एक जैसे होते हैं सुन्दरता-वुन्दरता का कोई लेना-देना नहीं ... मतलब ... मतलब बोले तो सीधा-सीधा है जहां नई औरत दिखी बस लार टपकना शुरू, बोले तो एकिच्च काम ... आजकल तो हम काम वाली बाईयों पर भी खूब मेहरवान होने लगे हैं ...

... हाँ देखा नहीं वो फिल्मस्टार कैसे काम वाली बाई के रेप में अन्दर हो गया था ... हाँ यार सच बोलती तू, यार ये बता अपुन लोगों में उन्हें क्या दिखता है जो खूबसूरत बीबीयों को छोड़ हम पर लार टपकाने लगते हैं ... ये बता पिछले महीने तेरा खसम पड़ोस की औरत संग मुंह काला किया था वो क्या तेरे से ज्यादा खूबसूरत है, बता बता ... याद मत दिला वो दिन, जी तो चाह रहा था कि साले को हंसिये से काट डालूँ, पर बच्चों का मुंह देख कर रह गई ... वोइच्च हाल मेरे खसम का भी है, अब क्या करें मजबूरी है ...

... यार शिल्पी मेरा मन डोल रहा है ... बोले तो ... लगता है अपना सारा जीवन ऐसे ही काम करते गुजर जाएगा, क्यों ना कुछ नया सोचा करा जाए ... बोले तो ... वो एक पिक्चर देखेला था अपुन दोनों, जिसमें सेठ का दिल नौकरानी पे गया था और चोरी चोरी सेठ सेठानी से ज्यादा नौकरानी को प्यार करता था, क्या ठाठ-वाठ हो गए थे उसके ... हाँ याद है, कुछ उसी तरह का मन डोल रहा है क्या ... यार ठीक ठीक वैसा तो नहीं, पर मन हिल-डुल रहा है ...

... बोल तो सही रही है अपुन लोग तो जगह जगह काम करते रहे हैं और देख भी रहे हैं कि हर घर में कुछ--कुछ काला-पीला तो हो ही रहा है ... बात तो सच बोलती तू , साले खसम लोग भी तो अब भरोसे के नहीं रहे फिर क्यों अपुन लोग "सती सावित्री" बने बैठे हैं ... पर एक बात और मन में उमड़-घुमड़ रही है ... बता क्या ... जब ये साले खूबसूरत बीबी के नहीं हो रहे वे अपुन लोग के कैसे हो सकते हैं और कितने दिन के लिए ... बात में दम है, शायद एक-दो दिन ... जब तक चढ़ने का मौक़ा नहीं मिल जाता, जहां चढ़ने को मिला फिर अपनी "कुत्ते" वाली औकात पर जायेंगे, इसकी-उसकी सूंघते ... फिर क्या करें, कोई तो उपाय होगा ... उपाय - वुपाय कुछ नहीं, बस दो-चार बार चढ़ने-उतरने का जोखिम उठाना पडेगा, हो सकता है इस जोखिम से कोई सच्चा दिलदार आशिक मिल जाए और अपनी भी ऐश हो जाए ... जोखिम, वो भी चढ़ने-उतरने का ... क्या फर्क पड़ता है शायद अपनी भी टीना और शिल्पा की तरह निकल पड़े !!!

Tuesday, December 21, 2010

क्या फर्क पड़ता है !

भईय्या आपने बैंक लूट लिया
एफ.आई.आर.हो जायेगी !
छोड़ ना जाने दे, सब अपने हैं
क्या फर्क पड़ता है !!

भईय्या चौक पे मर्डर कर दिया
पुलिस पकड़ कर ले जायेगी !
छोड़ ना जाने दे, सब अपने हैं
क्या फर्क पड़ता है !!

भईय्या आपने इज्जत लूट ली
चलो यहाँ से भाग चलते हैं !
छोड़ ना जाने दे, सब अपने हैं
क्या फर्क पड़ता है !!

भईय्या नेताजी को टपका दिया
चलो अब तो भाग चलते हैं !
छोड़ ना जाने दे, सब अपने हैं
क्या फर्क पड़ता है !!

भईय्या कप्तान को चांटा जड़ दिया
खैर नहीं, चलो निकल लें !
छोड़ ना जाने दे, सब अपने हैं
क्या फर्क पड़ता है !!

भईय्या कभी तो कुछ फर्क ?
नहीं, कभी नहीं पडेगा !
क्यों, कैसे भईय्या ?
हमारा तंत्र है, सरकार हमारी है !!

Monday, December 20, 2010

रक्तरंजित ...

सच ! अफसोस नहीं है मुझे
खुद पर
कि मैंने तुम्हें क्यों देखा प्यार से !

जवकि मुझको थी खबर
कि तुम हर पल कुछ कुछ
गुनाह की रणनीति बना रहे हो !

सिर्फ बना रहे हो
वरन उन्हें अंजाम भी दे रहे हो !
क्यों कर फिर भी मैं तुम्हें
यूं ही देखती रही प्यार से !

क्यों रोका नहीं खुद को
जवकि थी खबर मुझको, कि तुम -
एक गुनाहगार हो, कातिल हो !

तुम्हारे सिर्फ हांथों पर
वरन जेहन में भी खून के छींटे हैं !

फिर भी यूं ही मैं तुम्हें पल पल
देखती रही, घूरती रही !

शायद इसलिए कि मैंने ही तुम्हें
रोका नहीं था प्रथम बार !

जब तुम बेख़ौफ़ जा रहे थे
एक अनोखा खून ... गुनाह करने
मेरी इन्हीं नज़रों के सामने-सामने !

रोक लेती तो शायद
आज, तुम्हारे रक्तरंजित हाथ
मुझे छू नहीं रहे होते !

पर ये भी एक अनोखा सच है
कि तुमने जो प्रथम गुनाह किया
वो मेरे ही लिए किया था !

मेरी रूह को,
तुम्हारे उस गुनाह से
सिर्फ सुकूं, वरन नया जीवन भी मिला !

नहीं तो, मैं उसी दिन मर गई होती
जब उस दरिन्दे ने मेरी आबरू
सिर्फ लूटी, वरन तार तार की थी !

उस दिन, उस दरिन्दे के खून से सने
तुम्हारे हांथों से मुझे
खुशबू और जीने की एक नई राह मिली !

हाँ ये सच है, कि तुम एक खूनी-हत्यारे हो
पर तुम्हारे गुनाह
मुझे गुनाह नहीं, इन्साफ लगते हैं !

प्रथम क़त्ल के बाद भी तुम
क़त्ल पे क़त्ल करते रहे
और मैं तुम्हें प्यार पे प्यार !

क्यों, क्योंकि तुम कातिल होकर भी
मेरी नज़रों में बेगुनाह थे !

क्योंकि, तुमने क़त्ल तो किए
पर इंसानों के नहीं, दरिंदों के किए
वे दरिंदें जो खुश हुआ करते थे
लूट कर, नारी की आबरू !

हाँ ये भी एक अनोखा सच है
कि लुटती नहीं थी आबरू नारी की
वरन हो जाता था क़त्ल उसका
उसी क्षण, जब उसकी आबरू -
हो रही होती थी, तार तार दरिन्दे के हांथों !!

Sunday, December 19, 2010

बद हुए, बदनाम हुए, क्या हुआ, दौलत तो आने दो !

सच का आइना अब देखा नहीं जाता
खुदगर्ज चेहरा साफ़ नजर आने लगा है !
.....................
चलो एक और मंदिर-मस्जिद बना लें हम
सिवाय इसके, कुछ नेकी हम कर भी नहीं सकते !
.....................
है खबर मुझको, 'खुदा' नाराज बैठा है
क्या करें, बिना गुनाह के रहा नहीं जाता !
.....................
चलो एक और टुकड़ा बेच दें, हम शान से ईमान का
बद हुए, बदनाम हुए, क्या हुआ, दौलत तो आने दो !
.....................
ज़िंदा भूख से तड़फते-बिलखते हैं
कोई बात नहीं, चलो फूलों से मुर्दे सजा लें !

Saturday, December 18, 2010

चमत्कारी सिक्के : लालच का फल

दो मित्र गणेश और भूषण एक साझा व्यवसाय करने लगे दोनों ही बेहद जुझारू प्रवृति के मेहनती व्यक्ति थे व्यवसाय का स्वरूप ऐसा था कि एक अपना दिमाग लगा रहा था और दूसरा फील्ड में मेहनत करने लगा, दोनों ही लगन-मगन से जीतोड़ मेहनत करने लगे, मेहनत रंग लाई और दोनों को व्यवसाय में एक वर्ष में ही एक करोड़ रुपयों का मुनाफ़ा हो गया अब समय था रुपयों के बंटवारे का, तब भूषण यह कहते हुए अड़ने लगा कि फील्ड में सारी मेहनत मैंने की है सारे ग्राहकों को मैंने ही इकट्ठा किया है तब जाकर हमें सफलता मिली है इसलिए लाभ में मेरी हिस्सेदारी ज्यादा बनती है

तब गणेश ने कहा - यह कारोवार हम दोनों ने संयुक्त रूप से किया है तथा दोनों ने एक साथ मिलकर ही मेहनत की है अब यहाँ सवाल यह नहीं है कि किसने किस फील्ड में कितनी मेहनत की ... यह बात सही है कि ग्राहकों से बातचीत में तुम्हारी भूमिका ज्यादा रही है तो दूसरी तरफ कार्य योजनाएं बनाने क्रियान्वयन में मैंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है साथ ही साथ हर क्षण हम दोनों ही एक साथ रह कर कार्य करते रहे हैं ऐसी स्थिति में हम दोनों ही मुनाफे में बराबर के हिस्सेदार हैं

लेकिन भूषण मानने को तैयार नहीं था उसके मन में लालच समा गया था इसलिए समस्या ने विवाद का रूप ले लिया, दोनों ही मरने मारने को उतारू हो गए, दोनों ने ही अपने अपने हांथों में कमर में लटकी तलवारों को निकाल लिया तथा बहस जारी थी ठीक उसी क्षण वहां एक सज्जन पुरुष पहुँच गए उन्होंने दोनों मित्रों की समस्या सुन कर मदद करने को कहा तो वे दोनों मान गए तथा इमानदारी पूर्वक निर्णय करने पर दोनों ने दस-दस हजार रुपये देने का आश्वासन भी दे दिया

भूषण मुनाफे में से ६० प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखना चाहता था और गणेश को ४० प्रतिशत देना चाहता था गंभीरतापूर्वक विचार करने के पश्चात सज्जन व्यक्ति ने कहा - आप दोनों के संयुक्त प्रयास, लगन, दिमाग मेहनत से सफलता मिली है यदि गणेश कार्य योजना क्रियान्वयन की नीति तैयार नहीं करता तो भूषण फील्ड में मेहनत कैसे करता और यदि भूषण फील्ड में मेहनत नहीं करता को योजनाएं धरी की धरी रह जातीं ... और फिर यह कारोवार आप दोनों का संयुक्त था और संयुक्त रूप से ही दोनों ने मेहनत की है इसलिए दोनों ही मुनाफे में बराबर के हिस्सेदार हो

वैसे भी आज इस सवाल पर बहस करना कि किसने मेहनत कम की और किसने ज्यादा की, यह बेईमानी है, यदि आप दोनों सहमत नहीं हो तो एक और विकल्प है ... मेरे पास चमत्कारी सिक्का है जब कभी ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है तो मैं उस सिक्के की मदद से ही सुलझाने का प्रयास करता हूँ आप चाहो तो सिक्का उछाल कर फैसला कर देता हूँ ... यदि हेड आया तो दोनों बराबर हिस्सा बाँट लेना और यदि टेल आया तो भूषण को ६० प्रतिशत तथा गणेश को ४० प्रतिशत हिस्सा मिलेगा ... इस बंटवारे से गणेश को हानि का सामना करना पड़ सकता था फिर भी वह तैयार हो गया

इस प्रकार दोनों की आम सहमती पर सज्जन व्यक्ति ने अपने हाथ में रखे तीन सिक्कों में से एक सिक्का उछाला ... हेड गया, हेड देखकर भूषण तनिक मायूस सा हो गया ... अब समय था दस-दस हजार रुपये देने का, गणेश ने तो खुशी खुशी दस हजार अपने हस्से से निकाल कर उस सज्जन व्यक्ति को दे दिए किन्तु भूषण ने साफ़ तौर पर रुपये देने से इनकार कर दिया और कहने लगा कि तुमने कोई मेहनत का काम नहीं किया है इसलिए नहीं दूंगा ... तथा गणेश के साथ भी बहस जैसा करने लगा, वह इस फैसले से संतुष्ट नहीं था ...

... भूषण के मन की लालच की भावना देख सज्जन पुरुष को गुस्सा गया, किन्तु शांत मन से पुन: आग्रह किया कि आप अपने वचन पर कायम रहिये तथा मेरा हिस्सा मुझे दे दीजिये ... किन्तु भूषण नहीं माना ... उसके लालच को देखकर रहा नहीं गया और सज्जन पुरुष ने अपने हाथ में रखे तीन सिक्कों में से एक दूसरा सिक्का निकाल कर भूषण के सामने फेंक दिया, भूषण ने सिक्का उठाकर देखा उसके दोनों तरफ "हेड" था वह गुस्से से तिलमिला गया और तलवार से गणेश पर वार करने लगा ...

... पांच मिनट बाद सज्जन पुरुष ने देखा कि गणेश लहू-लुहान घायल अवस्था में अपने सिर को पकड़ कर बैठा हुआ था तथा सामने भूषण मृत पडा था ... सज्जन पुरुष ने आगे बढ़कर गणेश से कहा - लालची को उसके लालच का फल मिल गया और वह काल के गाल में समा गया, सिक्का उठाकर, अपने हाथ में रखे तीनों सिक्कों का रहस्य बताया कि यह वह सिक्का है जिसे उछाल कर मैंने भूषण के सामने फेंका था जिसके दोनों ओर "हेड" है ... और दूसरा यह सिक्का है जिसके दोनों ओर "टेल" बना हुआ है ... तथा यह रहा वो तीसरा सिक्का जिससे मैंने सर्वप्रथम फैसला किया था जिसमे "हेड-टेल" दोनों हैं ... खैर छोडो भूषण को ईश्वर का फैसला मंजूर नहीं था तथा उसे लालच का फल मिला गया !

Friday, December 17, 2010

... क्या माल है !!

मेरे अंदर ही बैठा था ‘खुदा’, मदारी बनकर
दिखा रहा था करतब, मुझे बंदर बनाकर !

...
कोई कहता रहा कुछ, रूठकर मुझसे
मिले जब, फ़िर वही खामोशियां थीं !
...
अब क्या लिखें, कितना अच्छा लिखें
लोग बिना मरे, कांधे पे थोड़ी उठाएंगें !
...
सच ! 'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !
...
अरे वाह, क्या खूब, क्या खूब लिख रहा है
अरे रुको, बिना मरे वाह-वाही कैसे दे दें !
...
क्या करोगे जानकर, तुम वजह रुसवाई की
बस समझ लो, तुम हमें अच्छे नहीं लगते !
...
हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं !!

...
जीते-जी फजीहत, मरने के बाद गुणगान, उफ्फ क्या कहें
साहित्यकारों की ऐसी किस्मत, परम्परा सदियों पुरानी है !
...
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है !

...
चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए
तुम झुकते नहीं, और मै चौखटें ऊंची कर नही पाता !
...
कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं !
...
लिखते-लिखते क्या लिखा, क्या से क्या मैं हो गया
पहले जमीं , फिर आसमाँ, अब सारे जहां का हो गया
!
...
'रब' जाने, क्यूं वो आज भी अजनबी ही रहा
मुद्दत से हमें चाह थी, मुलाक़ात हो उससे !
...
तमगे बटोरने की चाहत नहीं रही
यादें बिखेर के चला जा रहा हूँ मैं !
...
फूट डालो और राज करो की नीति पुरानी हुई है 'उदय'
अब नया दौर है, "राज करो तो मिल बाँट कर करो" !!
...
मेरे शहर के लोग, मुझे जानते नहीं
सारे जहां में चर्चा, सरेआम है मेरी !
...
हमने यूं ही कह दिया, क्या माल है
वो पलट कर आ गये, कहने लगे खरीद लो !!

Thursday, December 16, 2010

... जय जय भ्रष्टाचार ... जय जय भ्रष्टाचार ... !!!

क्यों भई नेता जी कहाँ जा रहे हो ... बस आदरणीय दिल्ली जा रहा हूँ अचानक सन्देश आया है "विशेष मीटिंग" आयोजित की गई है पहुँचना अत्यंत आवश्यक है ... ऐसी क्या बात हो गई ... बहुत गंभीर समस्या है अब आपसे क्या छिपाना, आप तो अपने ही हो ... क्या विशेष है ! ... धीरे धीरे जनता भ्रष्टाचारियों के खिलाफ होते जा रही है, स्थिति काफी ज्यादा चिंतनीय हो गई है यदि अभी कोई उपाय नहीं किया गया तो हम भ्रष्टाचारियों का जीना दुभर हो जाएगा !

... हाँ सच तो कह रहे हो, जल्दी करो उपाय, कहीं देर होने से लेने-के-देने पड़ जाएँ ... इसलिए ही विशेष तौर पर इस मीटिंग में सभी राजनैतिक पार्टियों के मुख्य मुख्य नेताओं को बुलाया गया है ... सभी पार्टियों के भी, क्यों ! ... अरे भाई अब ये बताओ ऐसी कौनसी पार्टी है जो भ्रष्टाचार नहीं करती है, आज की डेट में भला कौन दूध का धुला है ! ... हाँ कह तो सही रहे हो, क्या उपाय सोच कर जा रहे हो ?

... उपाय ही तो कुछ सूझ नहीं रहा है, आप तो जानते ही हो कि मेरी राय अंतिम राय होती है ! ... हाँ आप विशेष सलाहकार जो हो ... आप ही सुझा दो कोई उपाय, समय समय पर आपके सुझाव के भरोसे ही तो हमारी नेतागिरी चल रही है, पिछली बार आपके सुझाव पर ही तो उस "गूंगे" को देश का मुखिया बनाया था जो कितने अच्छे से काम कर रहा है कुछ भी करते रहो बेचारा कुछ बोलता ही नहीं है !

... हाँ हाँ सच कह रहे हो ... अब बताओ कोई उपाय ताकि हम भ्रष्टाचारी मौज-मजे करते रहें और ये संकट टल जाए ... बहुत गंभीर समस्या है और सवाल भी बहुत ही गंभीर लग रहा है, अब आप कहते हो तो उपाय तो बताना ही पडेगा ... हाँ हाँ बताओ जल्दी, मुझे अविलम्ब दिल्ली निकलना है ... तो ठीक है फिर कान "खुजा" के सुनो, कुछ भूल-भाल मत जाना ...

... हाँ बताओ ... एक काम करो, एक ऐसा "अमेंडमेंड" लाओ जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों की नाक में नकेल डाल दे ... हाँ हाँ बताओ कैसे ! ... ये तो सभी जानते हैं कि वर्त्तमान सिस्टम में भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होना असंभव हैं क्योंकि सभी जांच एजेंसियां आपके ही अंडर में काम करती हैं आपके डायरेक्शन के बगैर बाहर नहीं जा सकतीं ... हाँ वो तो सही है ... तो फिर क्या, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को टाईट करने के लिए एक नया क़ानून बना दो ...

... वो क्या ? ... हाँ हाँ बता रहा हूँ हडबडी मत करो ... बताओ बताओ ... क़ानून ये रहेगा कि भ्रष्टाचार प्रमाणित होने पर भ्रष्टाचारी को २० साल की सजा होगी तथा प्रमाणित नहीं होने पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को १० साल की सजा होगी, वो इसलिए कि झूठी शिकायत करना भी तो अपराध है ... ( नेता जी पांच मिनट सन्न रहने के बाद बोले ) हाँ ये उपाय बिलकुल सही रहेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले भी भली-भाँती जानते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोपों का प्रमाणित होना, एक तरह से असंभव ही है, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले १० साल की सजा सुनकर, फटी में आवाज ही नहीं उठाएंगे, ये हुई कोई बात, आपके चरण कहाँ हैं ... क्यों, क्या हो गया ! ... अरे भाई, अब आपका आशीर्वाद लेकर ही दिल्ली निकलता हूँ , जय जय भ्रष्टाचार ... जय जय भ्रष्टाचार ... !!!

Wednesday, December 15, 2010

भ्रष्टाचाररूपी महामारी : असहाय लोकतंत्र !

भ्रष्टाचार वर्त्तमान समय में कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं रही वरन यह एक महामारी का रूप ले चुकी है महामारी से तात्पर्य एक ऐसी विकराल समस्या जिसके समाधान के उपाय हमारे हाथ में शायद नहीं या दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि इसकी रोकथाम के उपाय तो हैं पर हम रोकथाम की दिशा में असहाय हैं, असहाय से मेरा तात्पर्य भ्रष्टाचार होते रहें और हम सब देखते रहें से है

भ्रष्टाचार में निरंतर बढ़ोतरी होने का सीधा सीधा तात्पर्य यह माना जा सकता है कि देश में संचालित व्यवस्था का कमजोर हो जाना है, यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका व्यवस्थापिका इन तीनों महत्वपूर्ण अंगों के संचालन में कहीं कहीं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार का समावेश हो जाना है अन्यथा यह कतई संभव नहीं कि भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ता रहे और भ्रष्टाचारी मौज करते रहें

यह कहना भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि भ्रष्टाचार रूपी महामारी ने लोकतंत्र की नींव को हिला कर रख दिया है ! ऐसा प्रतीत होता है कि लोकतंत्र के तीनों महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका, कार्यपालिका व्यवस्थापिका एक दूसरे को मूकबधिर की भांति निहारते खड़े हैं और भ्रष्टाचार का खेल खुल्लम-खुल्ला चल रहा है भ्रष्टाचार के कारनामे बेख़ौफ़ चलते रहें और ये तीनों महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं आँख मूँद कर देखती रहें, इससे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि कहीं कहीं इनकी मौन स्वीकृति अवश्य है !

एक क्षण के लिए हम यह मान लेते हैं कि ये तीनों व्यवस्थाएं सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं यदि यह सच है तो फिर भ्रष्टाचार, कालाबाजारी मिलावटखोरी के लिए कौन जिम्मेदार है ! वर्त्तमान समय में दूध, घी, मिठाई लगभग सभी प्रकार की खाने-पीने की वस्तुओं में खुल्लम-खुल्ला मिलावट हो रही है, ऐसा कोई कार्य भर्ती, नियुक्ति स्थानान्तरण प्रक्रिया का नजर नहीं आता जिसमें लेन-देन चल रहा हो, और तो और चुनाव लड़ने, जीतने सरकार बनाने की प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर खरीद-फरोक्त जग जाहिर है

भ्रष्टाचार, कालाबाजारी मिलावटखोरी के कारण देश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं हालात निरंतर विस्फोटक रूप लेते जा रहे हैं यदि समय रहते सकारात्मक उपाय नहीं किये गए तो वह दिन दूर नहीं जब आमजन का गुस्सा ज्वालामुखी की भांति फट पड़े और लोकतंत्र रूपी व्यवस्था चरमरा कर ढेर हो जाए, ईश्वर करे ऐसे हालात निर्मित होने के पहले ही कुछ सकारात्मक चमत्कार हो जाए और ये महामारियां काल के गाल में समा जाएं, वर्त्तमान हालात में यह कहना अतिश्योक्तोपूर्ण नहीं होगा की भ्रष्टाचार ने महामारी का रूप धारण कर लिया है और लोकतंत्र असहाय होकर उसकी चपेट में है !

बैंकाक-पटाया टूर !

क्या उपेन्द्र भाई बहुत खुश नजर रहे हो, क्या बात है ... कुछ ख़ास नहीं सुरेन्द्र भाई ... नहीं कुछ तो ख़ास जरुर है चेहरे के हाव-भाव से साफ़ नजर रहा है ... अरे यार तीन दिन बाद मेरा जन्म दिन है "बैंकाक-पटाया" जा रहा हूँ इस बार जन्मदिन वहीं मनाऊंगा ... बहुत बढ़िया, ये हुई बात, परिवार सहित जा रहे होगे ... नहीं यार मिसेस को लेकर जाऊंगा तो वो मजा नहीं आयेगा, तू तो जानता है "बैंकाक-पटाया" के मजे ... हाँ यार सुना जरुर हूँ पर कभी गया नहीं तो विशेष जानकारी नहीं है, हाँ इतना जरुर सुना है कि वहां जाकर लोग खूब मजे करते हैं पर अपनी किस्मत कहाँ अभी बैंकाक जाने की ... चल यार तू भी चल, साथ साथ मजे कर आयेंगे ... नहीं यार मैं तो नहीं जा पाऊंगा, पर एक बात कहूंगा यार भाभी जी को भी साथ ले जा, जन्मदिन है साथ साथ मौज मस्ती, घूमना-फिरना हो जाएगा, उन्हें भी अच्छा लगेगा ... तू भी यार, मजा किरकिरा करना है क्या, वहां रोज नया नया "केक" काटूंगा और खूब छक छक कर खाऊंगा ... यार तू तो फिर भी नया नया "केक" खाने का जुगाड़ कर ही लेगा, हो सकता है भाभी को भी एकाद बार "सैंडविच" का मजा मिल जाए ... अबे साले ... ( उपेन्द्र जब तक आगे कुछ बोलता तब तक सुरेन्द्र हंसते हुए वहां से भाग गया )... !!

Tuesday, December 14, 2010

मौन हो गया, कौन हो गया, देश हमारा मौन हो गया !

जिद्द ! वो हमको भूलने निकले, और खुद को भूल बैठे हैं
जुगनू बनना था किस्मत, घुप्प अंधेरों में अब जगमगाते हैं !
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जब सर्द हवाओं से बदन ठिठुरने लगे, तब मेरे मौन से नहीं
कदम दर कदम आगे बढ़ दहाड़ने से, फिजाओं में गर्मी होगी !
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रूह, लम्हें, सांसे और जुनून
संग-संग हों तो जन्नतें हैं !
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खामोशियों के बंद दरवाजों पे दस्तक देने का डर नहीं
पर तेरी खामोशियों में न जाने कौन सा तूफां ठहरा है !
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कभी गुमनाम थे, कभी गुमनाम होंगे
ये हमारे हौसले हैं, जो हर घड़ी दो-चार होंगे !
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उसको आने का, मुझको जाने का
कुछ तो था गम, भूल जाने का !
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नंगों की नंगाई, लुच्चों की लुच्चाई, टुच्चों की टुच्चाई पे
मौन हो गया, कौन हो गया, देश हमारा मौन हो गया !
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दिलों में खंजरों की खनखनाहट है
फिर कैसे खुदा, दिल में जगह लेंगे !

Monday, December 13, 2010

यौवन की दहलीज !

कब तक मैं बैठी रहूँ द्वारे
विवाह पर्व की बाठ जुहारे
उम्र हो गई सोलह मेरी
बिहाय चली गईं सखियाँ मेरी !

अब रातन में नींद आये
करवट बदल बदल कट जाए
अब हांथन भी सम्हल पाएं
कभी इधर, कभी उधर को जाएँ !

यौवन की दहलीज पे मैं हूँ
अंग अंग मेरे फड़कत जाएँ
देह तपन में जल जल जाए
अंग अंग रस हैं छलकाएं !

कल सखिया संग लिपट गई थी
सिमट बाहों में उसके गई थी
अंग अंग सब सिहर गए थे
खिल गए थे, छलक गए थे !

पिया मिलन की आस जगी है
मन में बसे कुछ ख़्वाब जगे हैं
मन-यौवन सब सिहर रहे हैं
विवाह पर्व की बाठ जुहारे !

Sunday, December 12, 2010

क्यों मैं बसता हूँ इर्द-गिर्द तेरे, चंद लब्जों में कैसे बयां कर दूं !

कायर साथियों के हिम्मत की दाद तो देनी होगी
डरते भी हैं, और खंजर-नश्तर साथ
भी रखते हैं !
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चले जाना मुझे तुम छोड़कर यूं
पर यादों में सफ़र लंबा लिखा है !
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कब तक बदलेंगी सोखियाँ देखें
हम चेहरे पे नजरें, टिकाये बैठे हैं !

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तुमको चहरे पे गुमां है शायद
पर हम नज़रों पे यकीं रखते हैं !
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तू हंसकर जब खफा होती है
कसम 'उदय' की सबसे जुदा होती है !
....................
क्यों मैं बसता हूँ इर्द-गिर्द तेरे, चंद लब्जों में कैसे बयां कर दूं
साथ जन्मों जन्मों का है, एक पल में कैसे खुदको जुदा कर लूं !

Saturday, December 11, 2010

हम तो सिहर जाते हैं, कमबख्त तुम्हारी याद में !

दिलों के तार जब बजने लगें, मन के घरौंदे में
समझ जाना, यही अब हमारा आशियाना है !
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गर 'खुदा' मिल भी जाए तो क्या फर्क
शैतान थे और हैं, शैतानियत छोड़ेंगे !
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चलो अच्छा हुआ ठंड ने तुम्हें, मेरी याद तो दिलाई
हम तो सिहर जाते हैं, कमबख्त तुम्हारी याद में !
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वाह वाह, क्या खूब यार बना रक्खे हैं
मरने की खबर सुनकर भी खामोश बैठे हैं !
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उनका वादा था 'खुदा खैर' बन के आने का
हम बेख़ौफ़ बैठे थे, और वो खौफ बन के आये !

Friday, December 10, 2010

ब्लॉग चटा चट ....... "मुन्नी बदनाम हुई" बीयर बार !

भईय्या ... भईय्या ... अरे अनुज क्या हो गया, सांस ले ले पहले ... नहीं भईय्या, बात ही कुछ ऐसी है कि आपसे पूछने को मन मचल रहा है !
... हाँ बता अब क्या समस्या लेकर घूम रहा है ... नहीं भईय्या समस्या नहीं, एक सुझाव ... हाँ हाँ बोल क्या बात है !

... भईय्या वो चिट्ठाज ... अरे रे रे रे ... नहीं भईय्या आपकी भाषा में ... वो बिनाका गीतमाला है ना ... हाँ क्या हो गया उसको, अच्छी खासी तो दौड़ रही है, गुरुओं चेलाओं की मंडली की जय जयकार है !
... वो तो सब ठीक है भईय्या, पर समस्या कुछ दूसरी है ... क्या है !

... भईय्या कल शाम को मैं "मुन्नी बदनाम हुई" बार में बैठकर बीयर पी रहा था, वहीं पर बिनाका गीतमाला का मालिक अपने किसी शिष्य के साथ पैक के मजे लेते लेते चिंता जाहिर कर रहा था कि - बहुत बदनामी हो रही है ये गुरु-चेले मिल मिल कर वही घिसे-पिटे ४० गाने बजाने में मस्त हैं जनता अब इन गानों ... भईय्या भईय्या जिन्दावाद ... भाई भतीजा जिन्दावाद ... अपनी डफली अपना राग ... बिना टिप्पणी जिन्दावाद ... कोई पढ़े जिन्दावाद ... चेले चपाटे जिन्दावाद ... तू मेरी खुजा मै तेरी खुजाऊँ ... जैसे घिसे-पिटे गानों से नाराजगी झेलनी पड़ रही है !

... अरे ये बात है तो उसे यह बदनामी वाला सिस्टम बंद कर देना चाहिए ... बातों से तो लगा कि वह आज ही बंद कर दे, पर कोई विकल्प की तलाश में लग रहा है ... ऐसा है क्या ! चल एक काम कर, अगर तुझे दोबारा दिखाई दे तो उसे ये नया फार्मूला बता देना !

... वो क्या है भईय्या ... बताना कि सर्वप्रथम तो वेबसाईट का कनेक्शन कट करे सिर्फ ब्लॉग ही रखे, ... ये ब्लॉग के बीच में वेबसाइटों का घुचड़-पुचड ठीक नहीं है और ये हवाले-घोटाले जैसे घटिया सिस्टम बंद कर दे ... सिर्फ एक फार्मूला रखे "सर्वाधिक पढ़े गए" को आधार बना कर रेंकिंग सिस्टम लागू कर दे वो भी "पिछले तीन-तीन महीने को आधार" मानकर ... समझा नहीं भईय्या, तीन तीन महीने से क्या मतलब है ! ... मेरा मतलब यह है कि पिछले तीन महीने में जो ब्लॉग सर्वाधिक पढ़े जा रहे हैं वे ब्लॉग ही रेंक में टाप पर रहें, इस तरह एक-दो दिनों की आड़ में रेंकिंग ऊपर-नीचे स्वमेव होते रहेगी या जो दमदार ब्लॉग होगा वो टाप पर बना रहेगा ... इस सिस्टम से गुरु-चेलों, भाई-भतीजों तथा खुजा-खुजाऊँ सब को अपनी अपनी औकात समझ में जायेगी ... और बिनाका गीतमाला की गिरती छबी खुद खुद सुधर कर टाप पर पहुँच जायेगी ... भईय्या प्रणाम मान गया आपके दिमाग को ... प्रणाम !!!

Thursday, December 9, 2010

आस्ट्रेलियन टमाटर !

... सन - २०१५ ... प्रदेश के एक आला अधिकारी रास्ते में सब्जी बाजार के पास से गुजरते हुए श्रीमती जी की फरमाइश पर टमाटर खरीदने के लिए एक दुकान पर ... बाई एक किलो टमाटर दे देना ... जी साहब ... ये लीजिये टमाटर ... कितने रुपये हुए ... साहब ४५०/ रुपये ... क्या कहा ! ... साढ़े चार सौ रुपये ... टमाटर इतने मंहगे, आज से चार-पांच साल पहले भी मैं खरीदने आया था तब तो टमाटर तीस-चालीस रुपये में खरीद कर ले गया था ... साहब आप किस दुनिया में हो, ये टमाटर आस्ट्रेलिया से इम्पोर्ट हो कर आये हैं ... अरे उस समय तो एप्पल इम्पोर्ट हो कर आते थे, ये टमाटर कब से आने लगे ! ... साहब लगता है आप चार-पांच साल बाद कहीं बाहर से आये हैं तब ही आपको कुछ नहीं पता ... क्यों, क्या हो गया ? ... साहब अपने देश की सारी किसानी जमीन बड़े बड़े नेता, अधिकारियों व्यापारियों ने खरीद ली है और वहीं जाकर वे पार्टी-सार्टी मनाते हैं तथा किसान शहर में मजदूरी करने लगे हैं ... अच्छा ये बात है ... हाँ साहब, गौर से देखिये कितना अच्छा आस्ट्रेलियन टमाटर है साइज,कलर, पैकिंग ... फ्लाईट से आया है साहब ... वो तो है ... इसी दौरान एक सज्जन दुकान पर पहुंचे और ४०/ रुपये देकर एक टमाटर खरीद कर ले गए ... अरे चालीस रुपये का एक टमाटर ... हाँ साहब ये आस्ट्रेलियन टमाटर है ... !!