Tuesday, November 30, 2010

तुमको क्या !

हम सरकार हैं
हमारी सरकार है
हमें मतलब है
पत्थरों पे शिलान्यास से
काम पूर्ण हो या हो
तुमको क्या !

पहली क्या ! दूसरी
पंचवर्षीय चल रही है
शिलन्यासी पत्थरों पे
सुनहरे अक्षरों से
हमारी गाथा छप रही है !
तुमको क्या !

लोकार्पण के लिए
औधोगिक संस्थान
लेखकों की किताबें
मेले-मंदिर-शोरूम जो हैं
हम लोकार्पण करते रहेंगे
तुमको क्या !!!

घोटाले ही घोटाले ........ घोटालेबाजों की पौ-बारह !


भ्रष्टाचार : कठोर दंडात्मक कार्यवाही अंतिम विकल्प !
भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जिसके समाधान के लिए शीघ्रता तत्परता से उपाय तलाशे जाना अत्यंत आवश्यक हो गया है यदि इस समस्या पर गंभीरता पूर्वक विचार-विमर्श नहीं किया गया और समाधान के कारगर उपाय नहीं तलाशे गए तो वह दिन दूर नहीं जब त्राही माम - त्राही माम के स्वर चारों ओर गूंजने लगेंभ्रष्टाचार में लिप्त नेता-अफसर सारी मर्यादाओं का त्याग कर एक सूत्रीय अभियान की भांति लगातार भ्रष्टाचार के नए नए कारनामों को अंजाम देने में मस्त हैं, सही मायने में कहा जाए तो अब अपने देश में भ्रष्टाचारी लोगों का कोई मान-ईमान नहीं रह गया है जो देशप्रेम आत्म सम्मान की भावना से ओत-प्रोत होदेश की आतंरिक बाह्य सुरक्षा से जुडा विषय हो या फिर कोई संवेदनशील राजनैतिक मुद्दा हो, सभी क्षेत्र में भ्रष्टाचार की बू साफतौर पर रही है विकास योजनाएं खेल से जुड़े मुद्दे तो भ्रष्टाचार के अखाड़े ही बन गए हैं

टेलीकाम संचार से जुड़े जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने तो देश को शर्मसार ही कर दिया है, इस घोटाले को देखकर तो ऐसा जान पड़ता है कि जी स्पेक्ट्रम से जुडी सारी प्रक्रियाएं भ्रष्टाचार को नए आयाम देने के द्रष्ट्रीकोण से ही संपादित की गईं हैं, देश के अब तक के सबसे बड़े चर्चित इस घोटाले में .७६ लाख करोड़ रुपयों के घोटाले अर्थात राजस्व क्षति के तथाकथित तौर पर आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैंगौरतलब हो कि कामनवेल्थ गेम्स घोटाला तथा आदर्श सोसायटी घोटाले की आंच अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि जी स्पेक्ट्रम घोटाला ज्वालामुखी की तरह धधकने लगा है, वर्त्तमान में यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण ही रहेगा कि जी स्पेक्ट्रम रूपी धधकता घोटाला जाने कितनों को अपनी चपेट में लेकर हस्ती को नेस्त-नाबुत करेगा क्योंकि प्रधानमंत्री तक भी इसकी आंच पहुँच रही है

जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने सांसद राज्यसभा में जबरदस्त हंगामा खडा कर रखा है सदन की कार्यवाही शुरू होने के पहले ही जेपीसी (संयुक्त संसदीय समीति) जांच की मांग को लेकर हंगामा खडा हो जाता है, सवाल यह है कि जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जेपीसी जांच की मांग को लेकर विपक्ष इतना ज्यादा हंगामा करने पर क्यों उतारू हो गया है ! क्या इस तरह के घोटालों पर जेपीसी जांच से सकारात्मक नतीजे मिल सकते हैं या फिर वही ढाक के तीन पात ! ऐसा नहीं है कि पूर्व में कभी जेपीसी जांच नहीं हुई, जांच हुई है पर नतीजे ! बोफोर्स घोटाला, हर्षद मेहता घोटाला, केतन पारिख शेयर घोटाला शीतल पेय पदार्थ में विषैले कीटाणुओं संबंधी चर्चित मामलों में भी जेपीसी जांच कराई गई है ! वर्त्तमान में जेपीसी जांच की मांग को लेकर जो हंगामा खडा हुआ है तथा लगातार भ्रष्टाचार से जुड़े नए नए मुद्दे अर्थात घोटाले उभर कर सामने रहे हैं उसे देखते हुए मेरा मानना तो यह है कि जेपीसी जांच गठित हो या अन्य कोई एजेंसी जांच करे, जांच निष्पक्ष इमानदारी पूर्वक होनी चाहिए तथा दोषियों को दोष के अनुरूप सजा अवश्य मिलना चाहिए ताकि भविष्य में घोटालेवाजों को सबक मिल सकेकामनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श हाऊसिंग सोसायटी घोटाला तथा जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े प्रत्येक दोषी पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही होनी ही चाहिए !

Monday, November 29, 2010

मैं नेता हूँ !

मैं नेता हूँ, जीता हुआ नेता
अब तुम मेरा क्या कर लोगे !

क्या कर लोगे, बोलो, बताओ
भूल गए क्या ! दारू - मुर्गा !

मैंने तुमको खरीदा था
वोट के खातिर, नोट देकर !

तुमको गले से लगाया था
वरना क्या औकात थी तुम्हारी !

दर दर यूँ ही भटकते फिरते थे
भूल गए क्या ! औकात तुम !

मैंने तुम्हें, मान क्या दे दिया
क्या अब गोद में ही बैठोगे !

याद करो, कुछ तो शर्म करो
दारु-नोट-मुर्गा में बिकते थे !

झंडी लेकर चौक-चौराहे में
जय जयकार के नारे लगाते थे !

आओ, चले आओ, मत शर्माओ
बढ़ो, बढ़ो, पैर पकड़ आशीर्वाद ले लो !

वोट खरीदने, चुनाव जीतने के
सारे हुनर सीख गया हूँ !

अरे हां भई, चुनाव जीत गया हूं
नेता बन गया हूं, मैं अब तुम्हारा !!!

Sunday, November 28, 2010

राह ...

मैं क्या हूँ ! क्या नहीं !!
अब कोई मुझे समझाए ?

किस पथ पर, किन राहों पर
चलना है राह दिखाए !

उंच-नीच की डगर पकड़ ली
जीवन डग-मग जाए !

क्या जीवन, क्या लीला है
अब कोई मुझे समझाए ?

हार-जीत का खेल हुआ, क्या हारूं -
क्या जीतूं, ये समझ न आये !

कालचक्र और समयचक्र
दोनों मिलकर खूब सताएं !

अब क्या बोलूँ, अब क्या सोचूँ
जब कदम मेरे बढ़ आए !

कठिन डगर है, जीवन है
अब राह कोई दिखलाए !


मैं क्या हूँ ! क्या नहीं !!
अब कोई मुझे समझाए ?

Friday, November 26, 2010

साली की शादी ... दुख ... हौसला ... ... एक शेर !!!

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तुम्हारा जाना रश्म--रिवाज है, तो हंस के विदा करता हूँ
पर हर शाम बिना दस्तक के, मेरी यादों को सजाते रहना !

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Thursday, November 25, 2010

गूंगे-बहरे-अंधे ...

तीन खड़े हैं, तीन बढे हैं
तीन कर रहे मौज हैं यारा !

कौन कह रहा, कौन सुन रहा
एक गूंगा, एक बहरा है !

गूंगा भी खामोश खडा है
और बहरा भी ताक रहा है !

और एक खडा मौन हुआ है
वो तो बिलकुल अंधा है !

गूंगे-बहरों-अंधों ने मिलकर
देश का बेडागर्क किया है !

कुछ तो जय जय कार हो रहे
और कुछ जय जय कार कर रहे !

देश के तीनों बन्दर देखो
मौज-मजे में चूर हो रहे !

बहरा हाथ में लाठी लेकर
जनता को फटकार रहा है !

और गूंगे की मौज हुई है
वो सत्ता में चूर हुआ है !

अब अंधों की क्या बोलें हम
गूंगे-बहरों को खूब मजे से हांक रहे हैं !

गूंगे-बहरे-अंधे मिलकर
देश का बेडागर्क कर रहे !

है कोई जो अब इन तीनों को
जंजीरों में बाँध सके, वरना !

वरना अब क्या बोलें हम
लोकतंत्र है, लोकतंत्र है !!!

Wednesday, November 24, 2010

गुनाह ...

बड़े नेताओं के लिए नारे लगाए
बैनर पोस्टर दीवारों पे चिपकाए
चौक-चौराहों पे नारेबाजी की
धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन में
कभी आगे, तो कभी पिछलग्गू बने रहे
माल लाने से, परोसने तक पीछे नहीं हटे !

और तो और, क्या क्या नहीं किया
जूते उठाने से भी कभी पीछे नहीं हटे
अब क्या बताएं कितनी तीन-पांच-तेरह
और पांच-तीन-अठारह की है
तब जाके, ले-दे के, बड़ी मुश्किल से
हम यहाँ तक पहुंचे हैं, ..... अब भला !

थोड़ी
तिकड़मबाजी क्या कर ली
दो-चार गाड़ियां क्या बना ली
बंगला बैंक बैलेंस क्या बना लिया
तो क्या गुनाह कर लिया है
बताओ, बताओ, हाँ तुम ही बताओ
क्या नेता होना गुनाह हो गया है !!!

Tuesday, November 23, 2010

लालकिला और ताज बेच दें !

चलो बेच दें, बढ़ो बेच दें
चलो आज कुछ नया बेच दें !

तब तब, जब जब जी ने चाहा
कुछ न कुछ हमने बेचा है !

मान, ईमान, स्वाभिमान, तो
हम कब का ही बेच चुके हैं !

जिस्म-आबरू, बेच बेच के
खूब है हमने माल बटोरा !

गोला, बारूद, बंदूकों, के सौदे से
स्वीस बैंक में, है खाता खोला !

खेत, खलियान, और किसान का
सौदा पक्का कर के बैठे हैं !

बार्डर की भी, है डील चल रही
तब तक, कुछ न कुछ बेच दें !

चलो बेच दें, बढ़ो बेच दें
चलो आज कुछ नया बेच दें !

क्या अपना, क्या तुपना देखें
लाल किला और ताज बेच दें !!

Monday, November 22, 2010

हमारी जान ही ले लोगे !

हम भ्रष्ट हैं, भ्रष्ट रहेंगे
हमें भ्रष्ट ही रहने दो
क्यों इमानदार बनाने पे तुले हो
क्या हमारा जीना तुम्हें
अच्छा नहीं लग रहा
आखिर हमने तुम्हारा बिगाड़ा क्या है !

ऐसा क्या कर दिया
जो तुम हमारे पीछे ही पड़ गए
तुम्हारे दो-चार पैसे क्या खा लिए
रोटी का टुकड़ा क्या खा लिया
अब हमें जाने भी दो
तुम्हारी जान तो नहीं ले ली !

और ना ही तुम्हारा
चैन हराम किया है
अब थोड़ा-बहुत तुम्हारे हिस्से का
गुप-चुप ढंग से क्या खा-पी लिया
तो क्या तुम अब
हमारी जान ही ले लोगे !

तुम तो दयालु-कृपालु हो
माफ़ कर देने से
तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा
ज्यादा-से-ज्यादा यह ही होगा
तुम पिछड़े हो, पिछड़े ही रह जाओगे
तुम्हारा कुछ जाने वाला तो है नहीं !

पर तुम्हारे माफ़ कर देने से
हमें एक नया जीवन मिल जाएगा
हम कसम खाते हैं, पैर छूते हैं
अब दोबारा भ्रष्टाचार नहीं करेंगे
जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!

Sunday, November 21, 2010

शार्टकट

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दो-चार दिन का सफ़र बचा है, यह सोच वह मुझे अस्पताल में पटक गया
पंद्रह दिन बाद मुझे हस्ट-पुष्ट आता देख, वह दिल-पे हाथ रख शार्टकट से सटक गया !

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Saturday, November 20, 2010

ये कैसा हिन्दुस्तान है !

देश में विकास के नाम पे
कौन-कौन से खेल हो रहे हैं
देश कंगाल, और नेता-अफसर
मालामाल हो रहे हैं
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !

गरीब, गरीब हो रहे हैं
और अमीर, अमीर
विकास योजनाओं के नाम पे
भ्रष्टाचार सरेआम हो रहे हैं
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !

लूट लूट के लुटेरे
मालामाल हो रहे हैं
लुट लुट के अस्मित
तार तार हो रही है
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !

नोटों से खरीद के वोट
नेता चुनाव जीत गए हैं
फिर गरीबों के सीने पे
सरेआम मूंग-पे-मूंग दल रहे हैं
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !

कल जिन्हें साईकिल
खरीदने के लाले थे
वे आज साईकिल वालों को
स्कार्पिओ से रौन्धते चल रहे हैं
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !

कल जिन्हें बस का सफ़र
मुश्किल लगता था
वे आज हवाई जहाज से नीचे
पैर नहीं धर रहे हैं
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !

शराबी, कबाबी, कबाड़ी,
चोर-उचक्के, गुंडे-मवाली,
भ्रष्टाचारी, नाकारे-निकम्मे
सारे-के-सारे बंदर-बांट कर रहे हैं
अरे कोई तो बताये
ये कैसा हिन्दुस्तान है !!!

Friday, November 19, 2010

कुछ शादी में मायूस, तो कई मईयत में खुश बैठे हैं !

क्या गजब रिवाज हैं, दुनियादारी के 'उदय'
कुछ शादी में मायूस, तो कई मईयत में खुश बैठे हैं !

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क्या अजब करतब दिखा रहा है, ऊपर बैठा मदारी 'उदय'
हम सन्नाटे में प्रसन्न, तो बहुत बाजे-गाजे में सन्न बैठे हैं !

Thursday, November 18, 2010

भभक रहा हूँ ...

मौज हुई मौजों की यारा
किसान-मजदूर हुआ बेचारा
बस्ती भी बे-जान हो गई
शैतानों की शान हो गई
देख देख कर सोच रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ !

भरी सभा खामोश हो गई
दुस्शासन की मौज हो गई
अस्मत भी लाचार हो गई
लुट रही है, लूट रहे हैं
कब तक देखूं सोच रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ !

एक
भयानक तूफ़ान चल रहा
कैसे जीवन गुजर रहा है
कब सुबह - कब शाम हो रही
पता नहीं, क्या बेचैनी है
और क्यों पसरा सन्नाटा है
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !

बाहर देखो सब चोर हुए हैं
मौज - मजे में चूर हुए हैं
नष्ट हो गई आन देश की
सत्ता भी अब भ्रष्ट हो गई
ये पीड़ा भी सता रही है
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !

कतरा - कतरा व्याकुल है
कब निकलूं ये सोच रहा है
कब तक मैं जज्बातों को
शब्दों के अल्फाजों से
बाहर शोले पटक रहा हूँ
भभक रहा हूँ , दहक रहा हूँ
अन्दर - अन्दर धधक रहा हूँ !!!

Wednesday, November 17, 2010

दीदार ...

उसने सजदे-पे-सजदा,
और
मैंने गुनाह-पे-गुनाह किये थे
क़यामत सा तूफां था,
मेरे
गुनाहों से कश्ती डगमगा
और
उसके सजदे से संभल रही थी
आज इम्तिहां की घड़ी थी
उसके सजदे और मेरे गुनाह
'खुदा' के सामने थे
तूफां था, कश्ती थी
किसे उठाना, किसे छोड़ना
जद्दो जहद की घड़ी थी
घंटों तूफां चलता रहा
मौत की घड़ी में भी
वो सलामती के लिए सजदा
और मैं जां के लिए
खुद को कोसता रहा
उसके सजदे को सुन ले 'खुदा'
यही सोच मेरे हाथ भी
खुद व् खुद सजदा करने लगे
'खुदा' ने रहमत बरती
तूफां ठहर गया
मौत की घड़ी में आज
मैं भी सजदा सीख गया
लम्बी उम्र में सीख पाया था
आज क्षण भर में तूफां मुझे
सिर्फ सजदा और सजदे का असर
वरन 'खुदा' का दीदार भी करा गया !

Tuesday, November 16, 2010

उखाड़ लो ...

मैं भ्रष्ट हूँ, भ्रष्टाचारी हूँ
जाओ, चले जाओ
तुम मेरा, क्या उखाड़ लोगे !
चले आये, डराने, डरता हूँ क्या !
गए, डराने, उनका क्या कर लिया
जो पहले सबकी मार मार कर
धनिया बो-और-काट कर चले गए !

चले आये मुंह उठाकर
नई-नवेली दुल्हन समझकर
आओ देखो, देखकर ही निकल लो
अगर ज्यादा तीन-पांच-तेरह की
तो मैं पांच-तीन-अठारह कर दूंगा !
फिर घर पे खटिया पर बैठ
करते रहना हिसाब-किताब !

समझे या नहीं समझे
चलो फूटो, फूटो, निकल लो
जो पटा सकते हो, पटा लेना
जो बन सके उखाड़ लेना !
मेरे साब, उनसे बड़े साब
और उनके भी साब
सब के सब खूब धनिया बो रहे हैं
क्या कभी उनका कुछ उखाड़ पाए !

चले आये मुंह उठाकर
मुझे सीधा-सादा समझकर
फिर भी करलो कोशिश
कुछ पटाने की, उखाड़ने की !
शायद कुछ मिल जाए
नहीं तो, चुप-चाप चले आओ
दंडवत हो, नतमस्तक हो जाओ
कुछ कुछ देता रहूंगा
तुम्हारा भी खर्च उठाता रहूंगा !

क्यों, क्या सोचते हो
है विचार दंडवत होने का
गुरु-चेला बनने का
कभी तुम गुरु, कभी हम गुरु
कभी हम चेला, कभी तुम चेला
या फिर, हेकड़ी में ही रहोगे ?
ठीक है, तो जाओ, चले जाओ
उखाड़ लो, जो उखाड़ सकते हो !!

Monday, November 15, 2010

माँ ने कहा था !


हमारे जाने-मानें चर्चित ब्लॉगर साथी अरविंद झा (contact no- 09752475481) की कलम की प्रस्तुति - माँ ने कहा था ... समीक्षा अगली पोस्ट पर ... बधाई शुभकामनाएं !

Sunday, November 14, 2010

जूनून-ए-मोहब्बत

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वो कभी छत, तो कभी बालकनी में बैठ बैठ के इम्तिहां ले रहे थे
और हम बे-वजह ही जूनून--मोहब्बत में उनकी गलियों में पास-फ़ैल हो रहे थे !

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Saturday, November 13, 2010

लघु कथा : निष्ठा ......... बाल दिवस स्पेशल !

एक साहब रात के साढ़े-नौ बजे शराब पीकर अपने मित्र के साथ बार से बाहर निकले और जैसे ही कार के पास पहुंचे एक छोटा बच्चा लगभग - साल का हाथ बढाते हुए बोला - साहब मेरी माँ बहुत बीमार है बिस्तर पर पडी है कल से हम दोनों ने कुछ खाया नहीं है कुछ रुपया-पैसा दे देंगे तो मेहरवानी हो जायेगी, मैंने आपकी गाडी भी साफ़ कर दी है ! ... साहब ने सिर से पाँव तक देखा और चिल्लाते हुए बोला - चल हट, जाते हो भीख माँगने ! ... साहब मैंने आपकी गाडी को अपनी शर्ट से साफ़ भी कर दिया है कुछ दे देंगे तो गरीब की दुआ मिलेगी ! ... चल हट, भाग यहाँ से ... तभी साथी मित्र बोल पडा - अरे दे देना यार, क्या फर्क पड़ता है अभी दरबान और वेटर को भी तो बे-वजह ५०-५० रुपये टिप्स देकर रहा है ! ... अरे यार तू जानता नहीं, इन्होंने भीख माँगने का धंधा बना कर रखा हुआ है ... तब भी -१० रुपये से क्या फर्क पड़ता है यार ... एक काम कर तू ही इसे गोद ले ले ... अरे यार तू भी बात बढाने बैठ गया, रुक एक मिनट, और पास की होटल पर बच्चे को लेकर गया और ५० का नोट देते हुए होटल मालिक को बोला - एक पार्सल में इस बच्चे को रोटी-सब्जी, दाल-चावल दे दो ... पार्सल हाथ में लेते हुए बच्चा बोला - साहब मैं और मेरी माँ आपके लिए दुआ करेंगे, आप घर का पता बता दें तो मैं आकर कुछ साफ़-सफाई का काम भी कर जाया करूंगा ... अरे सब ठीक है कोई बात नहीं, वैसे मेरा घर नेहरू नगर में काली मंदिर के बाजू वाला गुलाबी बंगला है कभी कुछ और जरुरत पड़े तो जाना ! ... वह दूसरे दिन से लगातार चार-पांच दिनों तक नोटिस कर रहा था कि घर के बाहर खडी कार साफ़-सुथरी रहती थी वह यह सोच कर आश्चर्यचकित था कि कार साफ़ कैसे हो रही है ! ... अगले ही दिन वह सुबह जल्दी उठकर खिड़की के पास बैठकर कार पर नजर रख रहा था और देख कर आश्चर्यचकित हुआ कि वह बार के बाहर मिला लड़का जिसे उसने खाने का पार्सल दिलवाया था वह आकर अपनी शर्ट से कार को साफ़ कर चुप-चाप जाने लगा ... तभी दौड़कर उसने बच्चे को रोका तथा बच्चे की निष्ठा देखकर बोला तुम माँ को लेकर जाओ और आज से ही तुम दोनों मेरे घर पर काम करना शुरू कर दो !

Friday, November 12, 2010

टाईम पास

कल तक जो दोस्त बन जीत के सपने दिखा रहे थे
आज वही जंग--मैदान में सामने नजर रहे थे !
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कल जो नेता मंहगाई पर लंबा-चौड़ा भाषण दे रहा था
आज वह मंहगाई बढाने के लिए व्यापारियों से गुटर-गूं कर रहा था !

Thursday, November 11, 2010

बस तेरी रहमत हो जाए, हर धड़कन जन्नत हो जाए।

शायद उन्हें मेरा, मुझे उनका इंतज़ार था
और देखते देखते, इंतज़ार की इन्तेहा हो गई
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कब सुबह से शाम हुई, यह सोचता रहा
ऐसा क्या था उसमें, जो मैं उसे देखता रहा
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हर आँखों में तू बसता है, हर दिल में सजदा होता है
बस तेरी रहमत हो जाए, हर धड़कन जन्नत हो जाए

Saturday, November 6, 2010

दीपोत्सव !

दीप-दीवाली, दीपोत्सव
तुम-हम, हम-तुम दीपोत्सव

क्या तुम, क्या हम दीपोत्सव
सारा जग है दीपोत्सव !

Thursday, November 4, 2010

आँगन आँगन दीवाली है !

दीवाली है, दीवाली है
मान हमारी, आन हमारी
पहचान हमारी, शान हमारी
चेहरे चेहरे पे मुस्कान हमारी
आँगन आँगन दीवाली है !


दीवाली है, दीवाली है
खुशियों की ये दीवाली है
हंसते हंसते दीवाली है
गाते गाते दीवाली है
आँगन आँगन दीवाली है !


दीवाली है, दीवाली है
चले चलो सब दीवाली है
गले मिलो सब दीवाली है
गाँव गाँव, शहर-शहर
आँगन-आँगन दीवाली है !


दीवाली है, दीवाली है
मावा बाटी, काजू कतली
लड्डू-पेड़े, खीर-पुड़ी
मीठी-मीठी दीवाली है
आँगन-आँगन दीवाली है !


दीवाली है, दीवाली है
लड़ी-फुलझड़ी, चकरी-अनार
राकेट, बम, चकमक लाईट
चटपट चटपट, पटपट पटपट
आँगन-आँगन दीवाली है !


दीवाली है, दीवाली है
हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-इसाई
बूढ़े-बच्चे, नर और नारी
गले मिल रहे दीवाली है
आँगन आँगन दीवाली है !

Tuesday, November 2, 2010

हमारी दीवाली !

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रौशनी, रंग, तरंग, उमंग, खुशी, उत्साह, दिलों में बसते हैं
श्रीगणेश, कुबेर, लक्ष्मी, मिलन, समर्पण हमारी दीवाली है !
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Monday, November 1, 2010

जगमग जगमग है दीवाली !

दीवाली की शाम निराली
फटाकों की धूम निराली
पोशाकों की शान निराली
मीठी मीठी, मीठी वाणी
रंगोली से सजे हैं आँगन
चौखट चौखट फूल सजे हैं
आँगन आँगन दीप जले हैं
दीप जले हैं, दीप जले हैं
जगमग जगमग है दीवाली !