Wednesday, June 30, 2010

शेर

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गुमां है खुद पे, या यकीं है
कि तू 'शेर' है, बेखौफ़ फ़िरता है।

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Tuesday, June 29, 2010

भोपाल गैस त्रासदी .... एन्डर्सन वनाम मंहगाई !!!

भोपाल गैस त्रासदी .... सन १९८४ भोपाल स्थित यूनियन कार्बाईड आफ़ इंडिया के कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव, एक दिल दहला देने वाली घटना कारखाने से रिसने वाली जहरीली गैस जिसने लगभग १५००० महिला, पुरुष, बूढे-बच्चे-जवान, भाई-बहन, माता-पिता, पति-पत्नि न जाने कितने लोगों को मौत के आगोश में ले लिया।

दाण्डिक प्रकरण न्यायालय में चला, फ़ैसला आ गया, फ़ैसले से असंतोष की लहर ... चारों ओर असंतोष राजनैतिक गलियारों, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, इंटरनेट मीडिया लगभग सभी तरफ़ असंतोष की लहर दिखाई पडी ... त्रासदी, जहरीली गैस, मृतक, वारेन एन्डरसन, एस.पी, कलेक्टर, अर्जुन सिंह, राजीव गांधी, दोष, सजा ... लगभग सभी मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पडा।

चारों ओर गहमा-गहमी चल रही थी ... तभी अचानक पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में वृद्धि ... चारों ओर इस मंहगाई पर हो-हल्ला शोरगुल शुरु हो गया ... मंहगाई के विरोध में आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, चक्काजाम, तोड-फ़ोड की घटनाएं ... अचानक ही इस मंहगाई अर्थात कीमतों में वृद्धि के विरोध में सभी के स्वर हो गए।

क्या नजारा है, क्या माजरा है ... कहीं ऎसा तो नहीं एन्डरसन रूपी ज्वलंत मुद्दे को ठंडा करने के लिये दूसरा मंहगाई रूपी मुद्दा ढकेल (उठा) दिया गया है ???

Monday, June 28, 2010

क्या "इंडली" में भी फ़र्जीवाडे की झलक दिख रही है ???

"इंडली" ... एक नया अग्रीगेटर .. पता नहीं कब से चालू है ... अपनी नजर तो कुछेक दिनों से ही पड रही है ... बहुत खुबसूरती से सजाया गया है ... "लोकप्रिय" एक नई और जबरदस्त सिस्टम ... वाह वाह ... वाह वाह ... क्या कहने हैं "इंडली" के ... यहां पर "पसंदीलाल" सक्रिय हैं ... और "ब्लागवाणी" पर "पसंदी और नपसंदीलाल" दोनों सक्रिय रहते थे ... वहां कुछ लोग पोस्ट को उठाने व गिराने के काम में सक्रिय रहते थे ... और यहां पसंदीलाल पोस्ट को ऊपर ही ऊपर उठाने के काम में मशगूल हैं ... मुझे तो यहां भी कुछ फ़र्जीवाडा टाईप का लग रहा है ... भाई जी मैं इन प्रश्नों के उत्तर तलाश रहा हूं मदद करने का कष्ट करें ...

... आखिर फ़र्क क्या रहा दोनों सिस्टम में ???

... पसंदीलाल और नपसंदीलाल कौन होते हैं पोस्ट को ऊपर-नीचे करने वाले ???

... क्या एक आदमी १५ अलग अलग नाम से आई.डी. बनाकर किसी भी पोस्ट को शीर्ष पर नहीं ले जा सकता ???

... इंडली क्या यह सिद्ध करना चाहती है कि उसके एग्रीगेटर पर जो पोस्ट पसंदीलाल लोगों ने पसंद की हैं वह ही श्रेष्ठ पोस्टें हैं ???

... जो पोस्ट पसंद के चटके से ऊपर चढी हुई हैं क्या वे उतनी ऊपर चढने की हकदार हैं ???

.............. जय जय ब्लागिंग !!!!!

Sunday, June 27, 2010

शेर

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इस भीड में, कहां अपनी 'हस्ती' है
जहां देखो, वहां 'मौका परस्ती' है।

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Saturday, June 26, 2010

ब्लागिंग .... मतलब चमचागिरी !!!

एक ब्लागर मित्र पूछ रहा था भाई साहब ये "ब्लागिंग" क्या है तीन-चार महिने से ब्लागिंग कर रहा हूं पर मुझे आज तक समझ नहीं आया ... चल अच्छा हुआ तुझे ब्लागिंग समझ नहीं आई, तू तो बस लिखता चल ... नहीं भईया बताओ न कुछ खास ... तो सुन ... ब्लागिंग .... मतलब चमचागिरी !!!

... क्यों मजाक कर रहे हो इसमे "चमचागिरी" कहां पर है सब अपना अपना लिखने में मस्त रहते हैं ... बेटा इधर आ और अपना "कान" खुजा के बैठ, बाद में कान "खुजाने" का टाईम नहीं रहेगा, तू सीधा कान पकड के नौंचने लगेगा ... क्यूं डरा रहे हो भईया ... डरा नहीं रहा तुझे सच्चाई बता रहा हूं ...

... सुन चमचागिरी के किस्से ... ब्लाग बनाते और पोस्ट लगाते ही साथ चमचागिरी का पहला कदम ... नामी-गिरामी, फ़िल्मकार, टी.व्ही.कलाकार, न्यूज चैनल के एंकर, पत्रकार, महिला ब्लागर, राजनैतिक ब्लागर ... साथ ही साथ कुछ और धुरंधर टाईप के ब्लागर जिन्होंने "ब्लागिंग गुट" बनाकर रखे हुए हैं ...

... इन लोगों की चमचागिरी शुरु करो ... वो कैसे ... इन सब के "फ़ालोवर" बन जाओ और उनके ब्लाग पर "चमचागिरीनुमा टिप्पणी" ठोकते चलो ... अब ये बता "चेले" किसको पसंद नहीं हैं ... जैसे ही तू इनका चेला बनेगा ... इनमें से कोई न कोई तुझे "पंदौली" देना शुरु कर देगा ... पंदौली मतलब कंधे पर बिठाकर घूमना ... मतलब तेरा "स्टार ब्लागर" बनना तय ... तू २०-२५ पोस्ट लगाकर भी "हीरो" बन जायेगा ...

... और अगर ऎसा नहीं किया तो अपने टाईप का "सामान्य ब्लागर" बन के रह जायेगा ... अगर तू बोलेगा तो बता दूंगा ब्लागजगत में ऎसे कितने "चेले" हैं जो "हिट ब्लागर" हैं ... हां बता दो भईया ... पर मेरे कान में ... मैं सबसे पहले इन "चेले टाईप के गुरुओं" का ही "चेला" बन जाता हूं ...

... पर एक बात और ध्यान में रखना ... यह ब्लागजगत है यहां अदभुत, चमत्कारी, जिंदादिल, शेरदिल, "ब्लागर" भी हैं इनके ब्लाग पर बिलकुल ऎसे ही लोग टिप्पणी करते हैं ... तू भी कभी कभी चला जाया कर नमस्कार करने ... चल जा दूसरा किस्सा बाद में बताऊंगा अभी तो इसी पे अमल कर एक महिने के अंदर तू मेरे ब्लाग से भी आगे निकल जायेगा ... जय जय ब्लागिंग !!!
(निर्मल हास्य)

शेर

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नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।

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Friday, June 25, 2010

डान की पोस्ट ..... "तीसरी सुपाडी" !!!

... चलिये आज अपुन सुनाता है आप लोग को "तीसरी सुपाडी" की दास्तां ... जिसने अपुन को एक नया नाम दिया "भगवान दादा" .... हुआ यूं कि लाश को ठिकाने लगाने गये तो चारों चिरकुट थे पर वापस आया सिर्फ़ एक ... जिसका नाम था "गोली" ... गोली ने वापस आकर सारा किस्सा सुनाया था अपुन को ... जिसको अपुन ने टपकाया था उसका नाम था "फ़िरकी पठान" जो "वसूली पठान" का सगा छोटा भाई था ... वसूली पठान मुम्बई का एक दादा था जो दुकानदारों, व्यपारियों तथा फ़ूट्पाथ पर सोने वालों से हफ़्ता वसूला करता था जिसके नाम से सभी लोग थरथर कांपा करते थे ... मतलब ये था कि अपुन ने सीधे तौर पर एक "दादा" से पंगा ले लिया था ... इसी डर से "गोली" के तीन साथी "फ़िरकी पठान" ली लाश ले कर चले गये थे और "गोली" दिल की आवाज सुनकर अपुन के पास गया था ...

... फ़िरकी पठान को अपुन टपकाया है ये खबर मुम्बई में आग की तरह फ़ैल गई थी पर सब ये जानते थे कि तीन दिन बाद "वसूली पठान" आयेगा तो अपुन को टपका डालेगा ... "गोली" ने अपुन के बारे में व्यापारियों दुकानदारों को ये बता रक्खा था कि अपुन दयालु इंसान है और अपुन का नाम "भगवान दादा" है ... सच तो ये है कि अपुन अपना असली नाम भी भूल गया था ... एक सच्चाई तो ये भी थी कि सभी "वसूली पठान" के आतंक से भयभीत थे और उससे छुटकारा भी चाह रहे थे इसलिये उन सभी लोगों ने "गोली" के सामने प्रस्ताव रखा था कि यदि "भगवान दादा" उससे मुक्ति दिला दें तो वे दो गुना हफ़्ता देने को तैयार हैं .... पर सब ये जानते थे कि पिछले बीस साल में किसी की हिम्मत नही हुई जो पांच मिनट भी टिक सका हो "वसूली पठान" के सामने ...

... बिलकुल यही खौफ़ "गोली" की आंखों में भी नजर आता था वह तीन दिन से कहते रहा था "भाई" निकल चलते हैं मुम्बई से बाहर ... आज फ़िर सुबह से ही वह खौफ़ अपुन उसकी आंखों में देख रहेला था क्योंकि आज शाम को "वसूली पठान" आने वाला था ... आज फ़िर "गोली" अपुन के पैर पकड कर मुम्बई से बाहर चलने का बोल रहा था ... उसकी आंखों में खौफ़ देखकर अपुन के अंदर "बिजली" कौंध उठी थी और खून खौलने लगा था ... अपुन ने बोला "गोली" ये बता कहां कहां जायेंगे ... जहां गये वहां भी ऎसा ही फ़िर ... ये बता "मर कर भी चैन न मिला तो किधर जायेंगे" ...

... "गोली" जा सभी व्यापारियों को बोल डाल शाम को हफ़्ता तैयार रखें ... अपुन अब कहींच्च जाने वाला नही है और हां जब "वसूली पठान" आयेगा तो तू व्यापारियों के पास रहना ... जैसे ही अपुन का पलडा भारी लगे तो तू "हफ़्ता" लेना शुरु कर देना ... अगर अपुन खल्लास हुआ तो देख ये अपुन के गले में जो "लाल कपडा" बंधा हुया है ऎइच्च अपुन का "कफ़न" है इसको उडा देना, जिंदा रहा तो तेरे को सुनाऊंगा इस "कफ़न" की कहानी ... चल जा जैसा बोला वैसाइच्च कर ... अपुन का खून खौलना चालूइच्च था कि कब वो साला चिरकुट आये ....

... अपुन चौगड्डे पे ही उसका इंतजार कर रहेला था ... वसूली आया भी तो हिजडों की फ़ौज लेकर शेर की तरह दहाडता आया ... उसे देख कर अपुन का खून उबलने लगा ... अपुन बोला अबे चिरकुट तू इन हिजडों के दम पे उचक रहेला है क्या, हिम्मत है तो अकेला ... वो साला शेर की तरह छलांग लगाते गया ... अपुन ने जब उसको पटकनी देना शुरु किया साला तीन-चार पटकनी में ही टें बोल गया ... जब साले को घुमा के फ़ैंका तो सीधा व्यापारियों की भीड में जाकर गिरा ... गिरते ही साले का दम उखड गया ... चारों तरफ़ से "भगवान दादा" जिंदावाद जिंदावाद के नारे गूंजने लगे ...

... इस सुपाडी के बदले "गोली" को लगभग पचास हज्जार रुपये का "हफ़्ता" इकट्ठा हुआ ... चारों तरफ़ अपुन की जय जय कार होने लगी ... लोग अपुन को "भगवान दादा" के नाम से जानने लगे ... तीन - चार घंटे के बाद ही अपुन फ़िर सोचने पे मजवूर हो गया कि अपुन आज तीसरे को टपका डाला याने की "तीसरी सुपाडी" ... पर इस बार अपुन खुद को समझाया कि ये "आखिरी सुपाडी" है इसके बाद मार-पीट टोटली बंद, अब अपुन चैन से रहेगा "गोली" सब काम संभालते रहेगा .... पर अपुन साला क्या से क्या हो गया लोगों के लिये "भगवान दादा" बन गया ... "भगवान दादा" ... हा हा हा ... हा हा हा हा ... हा हा हा हा हा हा ... (यह हंसी अपुन को भगवान दादा बनने के कारण नहीं आया था वरन हालात पर आया था) ...!!!

Thursday, June 24, 2010

डान की पोस्ट ..... "दूसरी सुपाडी" !!!

... चलो आज आपको अपुन "दूसरी सुपाडी" की दास्तां सुना रहेला है ... मुम्बई स्टेशन के प्लेटफ़ार्म आसपास तीन दिन तीन रात गुजर गएला था ... चाय ढेले, पान गुमठी, पाव भाजी सेंटर, होटल, अस्पताल, प्लेटफ़ार्म के दुकान वालों ... सभीच्च के सामने अपुन हाथ-पैर जोडा, गिडगिडाया पर अपुन को कोईच्च नौकरी नहीं दिया ... जेब में फ़ूटी कौडी नहीं और तीन दिनों से भूखा मुसाफ़िर खाने के बाहर एक बेंच पर गुमसुम बैठा सोच रहेला था ... क्या होगा, क्या करूंगा ... रही बात खाने की ... कोई नई बात नहीं थी मां के साथ पांच-पांच दिन भूखा और मां को सात-सात दिन बिना खाना के जीवन गुजारते देखा था ...

... मन में उथल-पुथल चल रही थी और रात गुजर रही थी ... तभी अचानक एक औरत के चीखने एक बुढ्डे की बचाओ बचाओ की आवाज ने अपुन का ध्यान भंग कर दिया ... एक "गुंडा' और उसके चार चेले उस महिला को जबरदस्ती पकड कर खींच कर ले जा रहे थे ... वह बचाओ बचाओ चिल्ला रही थी कोई आस-पास उसकी मदद करने वाला नहीं था ... बुढडा दौडकर मेरे पैरों में आकर गिर पडा और हाथ जोडकर दया की भीख मांगने लगा ... मेरी बेटी को उन गुंडो से बचाओ बेटा ... वे बदमाश उसकी इज्जत लूट लेंगे ... मेरे पास पूरे बीस हजार रुपये हैं सब तुमको दे दूंगा मेरी बेटी की इज्जत बचा दे बेटा ...

... उसकी बातें सुनकर मेरे अंदर करेंट सा दौड गया ... उठकर उन गुंडों को आवाज देकर रोका ... पास जाकर लडकी को छोडने का बोला तो ... उस हराम के पिल्ले गुंडे ने सीधा चाकू निकाल कर मुझ पर तान दिया ... चाकू को देखकर मेरा खून खौल उठा ... फ़िर आव देखा ताव साले का हाथ पकड कर घुमाकर गर्दन पकड कर मुरकेट दिया ... एक पल में साले ने छटपटा के दम तोड दिया ... लडकी को लाकर उसके बाप के हवाले किया तो उन दोनों ने अपुन के पैर पकड लिये और बोले आप "भगवान" हो हमारे लिये ... अपुन बोला चल चल ठीक है जाओ तुम लोग ... बुढ्डे ने अपनी धोती के कमर में बंधी एक पोटली से पूरे के पूरे बीस हजार रुपये निकाल कर मेरे हाथ में रख दिये ...

... अपुन ने मात्र उससे एक हज्जार रुपया लिया और उन्हें भेज दिया ... जाते जाते वे अपुन को "भगवान" कहते कह्ते चले गये ... उनके जाने के बाद ही उस गुंडे के चारों चेले आकर अपुन के पैरों में गिर गये ... "भगवान दादा" माफ़ कर दो अपुन लोगों से गल्ती हो गई आज से हम आप के चेले बनकर रहेंगे ... अबे घोंचू सालो तुम लोग लडकी की इज्जत पर हाथ डालते हो भाग जाओ नहींच्च तो तुम चारों को भी टपका डालूंगा ... गल्ती हो गई बॉस इसमें हमारा दोष नहीं है जिसका था उसको तो आप ने टपका हीच्च डाला है ... चल चल ठीक है अपुन को पुलिस का लफ़डा नहीं मांगता .... जाओ उसकी लाश को कहीं पटरी-सटरी पे फ़ेंक के ठिकाने लगा देना ....

... हां एक बात और ... ये०० , १०० रुपये पकडो तुम लोग ... और ये १०० रुपये और ... वापस आते समय अपुन के लिये कुछ अच्छा खाना-वाना लेते आना ... ओके बॉस ... उनके जाने के बाद अपुन फ़िर चिंता में बैठ गया ... ये क्या हो गया अपुन ने दूसरे को टपका डाला मतलब "दूसरी सुपाडी" ... ये क्या हो रहेला है अगर ऎसाईच्च चलता रहा तो ... अपुन ने अपने आप को संभाला और मजबूत किया कि अब टपकाने-पपकाने का नहीं ... गुस्से को कंट्रोल करने का ... अपुन ने अपने आप से "गाड प्रामिस" किया कि ये "आखिरी सुपाडी" है ... बेंच पर बैठकर कल के बारे में सोचने लगा ... पर उस बुढ्डे लडकी के मुंह से निकले शब्द "आप भगवान हो" जाने क्यों मेरे कानों में गूंज रहे थे ..... !!!

Wednesday, June 23, 2010

डान की पोस्ट ..... पहली सुपाडी !!!

अपुन का ब्लाग बन गएला है "आखिरी सुपाडी" ... तो अपुन शुरु करता है पोस्ट "पहली सुपाडी" से ... ये उन दिनों की बात है जब अपुन की उमर सत्रह साल आठ माह की रही होगी ... अपुन ने बडे मियां की फ़िल्म "दीवार" फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट शो देखेला था उसीच दिन अपुन बडे मियां का बहुत बडा फ़ैन हो गएला था ...

... शाम को राशन की दुकान वाला बनिया उधारी पैसों को लेकर ... मां को अनाप-शनाप बक रेला था ये अपुन से बरदास्त नहीं हुआ अपुन वहींच्च भिड गया था उससे ... वो तो मां अपुन को पकड कर घर ले आई थी नहीं तो ... बनिया हर किसी के साथ अंड-संड बोला करता था ... अपुन को पता था पडोस के दूसरे बनिये के साथ उसका झगडा चल रहेला था ... अपुन का खून खौल रहेला था कि उसने मां को बहुत बुरा सुनाया है ...

... अपुन सीधा दूसरे बनिये के पास गया और बोला ... क्यों सेठ तेरा सामने वाले बनिया से खुन्नस चल रहेला है ... बोल तो आज उसको टपका देता हूं ... बोल क्या देगा ... जो मांगेगा दे दूंगा १०० रुपये ... टपका डाल साले को बहुत अकडता है साला ... चल ठीक है तेरा काम हो जायेगा ... निकाल १०० रुपए का नोट तेरा काम कर देता हूं ... सेठ ने खट से १०० का नोट निकाल कर दे दिया ... हां सेठ एक काम और करना अपुन तेरा काम कर के गांव छोडकर भाग जायेगा ... मेरी मां को कभी भी कोई जरुरत पडे तो उसकी मदद करते रहना ... नहीं तो आकर ... नहीं नहीं तू जा उसकी चिंता छोड मैं देख लूंगा ...

.... अपुन सीधा बनिये की दुकान के बाहर दुकान बंद होने का इंतजार करने लगा ... जैसे ही बनिया दुकान बंद कर घर जाने लगा अपुन उसके पीछे हो लिया जैसे ही वह सुनसान गली में पहुंचा ... अपुन ने लपक के साले का टेटुआ दबा दिया ... जब वो निपट गया तो अपुन सीधा स्टेशन पहुंच कर मुम्बई-हावडा मेल में सवार हो गया ... ट्रेन चलते जा रही थी और अपुन को मां की याद सताते जा रही थी ... अपुन कहां जा रहा था नईच्च पता था ... धीरे धीरे पछतावा होने लगा ... अपुन को उसे टपकाना नहीं था यहिच्च सोच सोच कर सारी रात आंख नहीं लगी ...

... सुबह होते होते अपुन को रोना जैसा आने लगा ... गांव वापस लौटना भी मुश्किल था, मां की याद भी सताते रही ... अपुन ने कसम खाया कि ... किसी को मारने का सुपाडी नहीं लेगा ... चाहे दीवार फ़िल्म की तरह जूता पालिश ही क्यों न करना पडे ... अपुन ने कान पकड के कसम खाया ये अपुन की पहली और "आखिरी सुपाडी" है ... मुम्बई पहुंच के कुछ काम कर लेगा पर किसी को मारने की सुपाडी कतई नहीं लेगा ... याद है अपुन को आज भी वो १०० का नोट ... जिसे चलती ट्रेन के दरवाजे पे खडा होकर अपुन ने आंख मूंद कर हाथ में लेकर उडा दिया था .... !!!


"आखिरी सुपाडी"

पार्ट -

"बी" कंपनी का बॉस ... टी.व्ही. देखते देखते भडक उठा ... ये "गोली" इधर आ ... हां बॉस ... ये ब्लागिंग क्या है ... कोई नया गेंग बनेला है क्या बॉस ... अबे घोंचू ... बुला सबको जितने हाजिर हैं ... हां बॉस ... गेंग के सारे सदस्य इकट्ठे ... सारे टेंशन में ... क्या हो गया बॉस को ... हां बॉस किसी को टपकाना है क्या ... ट्पकाना-पपकाना छोड ... ये बता "ब्लागिंग" क्या होती है ... अभी टी.व्ही. पे समाचार आ रईला था कि ... वो अपुन का बुडु अमिताभ बच्चन "ब्लागिंग" स्टार्ट कर लेईला है ... क्या है रे ये ... कोई बतायेगा ... बास अपुन को नईच मालुम ... अबे साले तुम लोग घोंचू के घोंचूस रहोगे ... चल चल फ़ोन लगा बुडु को ...

... अमिताभ बच्चन को फ़ोन ... स्पेशल नंबर से ... फ़ोन की घंटी बजी ... अमिताभ टेंशन में ... मन में सोचते हुये ... ये भाई काय को फ़ोन कर रेला है ... हां भाई आदाब ... आदाब बडे मियां ... कहां हो, कैसे हो ... बस मुम्बई में, कुछ खास नहीं ... बडे मियां ये बताओ ... ये ब्लागिंग का कौन सा कारोबार शुरु किया है ... वहां अपुन को इंट्री करने को मांगता ... छोडो न भाई ... फ़ालतु, बकवास है ... टोटल टाईम पास है ... नहीं बडे मियां ... जब तुम स्टार्ट किऎला हो तो अपुन को भी करनाईच पडेगा ...

... भाई "ब्लागिंग" में बहुत लोचा है ... गुटबाजी है ... पसंद/नापसंद ... हवाले/घोटाले ... टीका/टिप्पणी ... अनामी/बेनामी ... बहुत लफ़डा है वहां ... आपके लायक जगह नहीं है ... वहां का साला हिसाब - किताब ही समझ नहीं आता है ... अपुन के जैसा नामी-गिरामी आदमी ... बोले तो अमिताभ बच्चन बिग बी" ... अपुन का कोई नंबर नहीं है वहां पर ... पर ये लोचा करता कौन है वहां ... जहां आपका भी दाल नहीं गल पा रहा है ... छोडो न भाई ...

... अब छोडने का नई बडे मियां ... अब तो "ब्लागिंग" करनाईच पडेगा ... अपुन देखता है साले को ... वहां कौन कौन चिरकुट दुम हिला रहेला है ... आप तो एक "ब्लाग" बना दो मेरे नाम का ... फ़िर देखते हैं ... तो ठीक है भाई शाम को चार बजे आकर बना देता हूं ... ठीक है बडे मियां ... खुदा हाफ़िज ... अबे ये "गोली' इधर आ ... भेज दो-चार "शूटर" पता लगा के आयेंगे कौन कौन ब्लागिंग में ऊपर चल रहेला है और उनका फ़ोन-वोन नंबर ... पूरा अता-पता ले के आयेंगे ... फ़िर देखते हैं ब्लागिंग क्या बला है ... कौन कौन चिरकुट लोग है साला जो बडे मियां को पीछे ढकेल कर रखेला है .... ब्लागिंग कोई टेडी-मेडी चीज है क्या रे ... चल देखते हैं शाम को ... !!!

(काल्पनिक कहानी ... डान स्पेशल सीरीज पर एक पुस्तक "आखिरी सुपाडी" लिखने की योजना है ... साथ ही साथ इस स्टोरी पर "डान" फ़िल्म बनाने पर भी चर्चा चल रही है)
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पार्ट -

"बी" कंपनी का हेडक्वार्टर ... ऎ 'गोली' इधर आ ... हां बॉस ... शाम के चार बजने वाले हैं 'बडे मियां' के आने का टाईम हो गईला है ... चाय-पानी का इंतजाम कर ... और हां सब चेले-चपाटों को बोल ... बडे मियां को अदब के साथ अंदर ले के आने का ... हां बास ये सब पहलेच से समझा देयला है ... अपुन को पता है आप बडे मियां को कितना मान-सम्मान देते हो ... सब इंतजाम हो गएला है ... आप चिंता नको करो ...

... बडे मियां मतलब अमिताभ बच्चन का आगमन ... बॉस स्वंय खडे होकर ... आईये बडे मियां ... आईये ... आदाब ... आदाब ... हां भाई ... बस बडे मियां खुदा का शुक्र है ... मौजे ही मौजे हैं ... सुनो भाई कभी कभी मेरी बात भी मान लिया करो ... क्या हो गया बडे मियां ... अरे मेरा मतलब "ब्लागिंग" से है वो आपके काम की चीज नहीं है ... फ़ालतु बकवास है ... वहां खाली-पीली का टेंशन है ... किसी दिन आपको गुस्सा आ जायेगा तो बे-वजह ही दो-चार ब्लागर को टपका डालोगे ... नहीं बडे मियां ऎसा नहीं होगा ....

... अभी तीन-चार दिन पहले की बात है कुछ ब्लागर टेंशन में थे ... कोई नया ब्लागर आया है "कडुवा सच" लिख लिख कर सीनियर ब्लागरों की वाट लगा रेयला है उसको धमकी-चमकी देने की सुपाडी देने-लेने की बात हो रईली थी ... ये बात उडते-उडते मेरे कान तक आई थी फ़िर पता नहीं क्या हुआ ... फ़ोकट का टेंशन है न भाई इसीच लिये तो आपको मना कर रेइला हूं ... हां बडे मियां आप सच बोल रेइला है ... तीन-चार दिन पहले वो सुपाडी अपुन ही लियेला था ...

... ऎ 'गोली' ... वो कडुवा सच ... फ़र्जीवाडा ... क्या हुआ रे उस सुपाडी का ... हां बॉस वो तो तुरंत कर डाला था ... अपुन खुदिच्च किये ला था उसको फ़ोन ... साला अकडु टाईप का आदमी लग रेइला था ... सीधा सीधा समझा दिया उसको कि ये तूने जो फ़र्जीवाडा का राग लगाया हुआ है तुरंतिच बंद कर डाल ... नई तो तेरे को टपका डालेगा ... भाई का आदेश है ... देख पता कर उसने फ़र्जीवाडा बंद करा या नहीं ... अभिच पता करता हूं बॉस ...

... हां बडे मियां ... मै आपको समझाया न भाई इस ब्लागिंग के चक्कर में मत पडो ... बेकार में ही चमका डाला उस बेचारे को ... अब "ब्लाग" है जिसकी जो मर्जी आयेगी लिखेगा ... "ब्लाग" बना ही उस लिये है ... गलत किये हो भाई उसको धमकी देकर ... अब छोडो न बडे मियां अपुन का ऎइच्च काम है ... गोली आ गया ... बास उसने फ़र्जीवाडा तो बंद कर दिया है पर ... पर क्या रे सीधा सीधा बोल क्या होइला ... बॉस वह अपुन लोग के बारे में लिखना स्टार्ट कर देइला है ... बोले तो ... बोले तो क्या ... अब बडे मियां ही समझायेंगे ...

... छोडो न भाई ... लेखक लोग हैं लिखते रहते हैं कुछ भी ... लो लैपटाप भी चालू हो गया ... लो देखो "कडुवा सच" ... आपकी तारीफ़ ही कर रेयला ... कुछ बुरा नहीं लिखा है ... चलो ठीक है जाने दो ... अब मेरा "ब्लाग" बना दो ... एक शर्त पे बनाऊंगा ... आप किसी को धमकी चमकी मत देना और जब कभी गुस्सा आये तो सीधा मुझे बताना ... मैं सब ठीक कर दूंगा ... पर खून-खराबा ब्लागजगत में नहीं होना चाहिये ... ठीक है बडे मियां ... मैं वचन देता हूं ...

... अब ठीक है ... पर ब्लाग पर लिखोगे क्या ... आप के पास तो टाईम ही नहीं रहता ... सब हो जायेगा बडे मियां ... आप तो जानते हो अपुन के डान बनने के पीछे की असल कहानी ... अधूरी प्रेम कहानी ... पूरी हो जाती तो अपुन डान थोडेइच्च बनता ... आज भी अपुन का दिल हिन्दुस्तानी है ... ये घोडा, सुपाडी, खून-खराबा ... बस सब दिखावा है अंदर से तो अपुन ... अब छोडो न बडे मियां आप तो सब जानते हो ... अब अपुन "ब्लाग वर्ल्ड" के माध्यम से दुनिया को बताएगा कि "डान" भी आखिर इंसान ही होते हैं ... ठीक है भाई ठीक ...

... चलो बताओ क्या नाम रखना है ब्लाग का ... कुछ भी रख दो बडे मियां ... कुछ भी नहीं ... कुछ खास होना चाहिये ... जो लिखोगे उसके अनुरुप होना चाहिये ... अपुन सुपाडीच्च के बारे में लिखेगा बडे मियां ... अपुन ने हर सुपाडी को आखरी सुपाडी समझा ... पर सुपाडी खाते चले आया ... सुपाडीच्च की दास्तान लिखूंगा ... इसलिये ब्लाग का नाम "आखिरी सुपाडी" ठीक रहेगा ... तो लो भाई ये रहा आपका ब्लाग "आखिरी सुपाडी" ... अपुन को जो वचन दिये हो उसे हमेशा याद रखना ... बिलकुल याद रहेगा बडे मियां ... खुदा हाफ़िज ... खुदा हाफ़िज ...!!!
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पार्ट -

अपुन का ब्लाग बन गएला है "आखिरी सुपाडी" ... तो अपुन शुरु करता है पोस्ट "पहली सुपाडी" से ... ये उन दिनों की बात है जब अपुन की उमर सत्रह साल आठ माह की रही होगी ... अपुन ने बडे मियां की फ़िल्म "दीवार" फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट शो देखेला था उसीच दिन अपुन बडे मियां का बहुत बडा फ़ैन हो गएला था ...

... शाम को राशन की दुकान वाला बनिया उधारी पैसों को लेकर ... मां को अनाप-शनाप बक रेला था ये अपुन से बरदास्त नहीं हुआ अपुन वहींच्च भिड गया था उससे ... वो तो मां अपुन को पकड कर घर ले आई थी नहीं तो ... बनिया हर किसी के साथ अंड-संड बोला करता था ... अपुन को पता था पडोस के दूसरे बनिये के साथ उसका झगडा चल रहेला था ... अपुन का खून खौल रहेला था कि उसने मां को बहुत बुरा सुनाया है ...

... अपुन सीधा दूसरे बनिये के पास गया और बोला ... क्यों सेठ तेरा सामने वाले बनिया से खुन्नस चल रहेला है ... बोल तो आज उसको टपका देता हूं ... बोल क्या देगा ... जो मांगेगा दे दूंगा १०० रुपये ... टपका डाल साले को बहुत अकडता है साला ... चल ठीक है तेरा काम हो जायेगा ... निकाल १०० रुपए का नोट तेरा काम कर देता हूं ... सेठ ने खट से १०० का नोट निकाल कर दे दिया ... हां सेठ एक काम और करना अपुन तेरा काम कर के गांव छोडकर भाग जायेगा ... मेरी मां को कभी भी कोई जरुरत पडे तो उसकी मदद करते रहना ... नहीं तो आकर ... नहीं नहीं तू जा उसकी चिंता छोड मैं देख लूंगा ...

.... अपुन सीधा बनिये की दुकान के बाहर दुकान बंद होने का इंतजार करने लगा ... जैसे ही बनिया दुकान बंद कर घर जाने लगा अपुन उसके पीछे हो लिया जैसे ही वह सुनसान गली में पहुंचा ... अपुन ने लपक के साले का टेटुआ दबा दिया ... जब वो निपट गया तो अपुन सीधा स्टेशन पहुंच कर मुम्बई-हावडा मेल में सवार हो गया ... ट्रेन चलते जा रही थी और अपुन को मां की याद सताते जा रही थी ... अपुन कहां जा रहा था नईच्च पता था ... धीरे धीरे पछतावा होने लगा ... अपुन को उसे टपकाना नहीं था यहिच्च सोच सोच कर सारी रात आंख नहीं लगी ...

... सुबह होते होते अपुन को रोना जैसा आने लगा ... गांव वापस लौटना भी मुश्किल था, मां की याद भी सताते रही ... अपुन ने कसम खाया कि ... किसी को मारने का सुपाडी नहीं लेगा ... चाहे दीवार फ़िल्म की तरह जूता पालिश ही क्यों न करना पडे ... अपुन ने कान पकड के कसम खाया ये अपुन की पहली और "आखिरी सुपाडी" है ... मुम्बई पहुंच के कुछ काम कर लेगा पर किसी को मारने की सुपाडी कतई नहीं लेगा ... याद है अपुन को आज भी वो १०० का नोट ... जिसे चलती ट्रेन के दरवाजे पे खडा होकर अपुन ने आंख मूंद कर हाथ में लेकर उडा दिया था .... !!!

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पार्ट -

... चलो आज आपको अपुन "दूसरी सुपाडी" की दास्तां सुना रहेला है ... मुम्बई स्टेशन के प्लेटफ़ार्म आसपास तीन दिन तीन रात गुजर गएला था ... चाय ढेले, पान गुमठी, पाव भाजी सेंटर, होटल, अस्पताल, प्लेटफ़ार्म के दुकान वालों ... सभीच्च के सामने अपुन हाथ-पैर जोडा, गिडगिडाया पर अपुन को कोईच्च नौकरी नहीं दिया ... जेब में फ़ूटी कौडी नहीं और तीन दिनों से भूखा मुसाफ़िर खाने के बाहर एक बेंच पर गुमसुम बैठा सोच रहेला था ... क्या होगा, क्या करूंगा ... रही बात खाने की ... कोई नई बात नहीं थी मां के साथ पांच-पांच दिन भूखा और मां को सात-सात दिन बिना खाना के जीवन गुजारते देखा था ...

... मन में उथल-पुथल चल रही थी और रात गुजर रही थी ... तभी अचानक एक औरत के चीखने एक बुढ्डे की बचाओ बचाओ की आवाज ने अपुन का ध्यान भंग कर दिया ... एक "गुंडा' और उसके चार चेले उस महिला को जबरदस्ती पकड कर खींच कर ले जा रहे थे ... वह बचाओ बचाओ चिल्ला रही थी कोई आस-पास उसकी मदद करने वाला नहीं था ... बुढडा दौडकर मेरे पैरों में आकर गिर पडा और हाथ जोडकर दया की भीख मांगने लगा ... मेरी बेटी को उन गुंडो से बचाओ बेटा ... वे बदमाश उसकी इज्जत लूट लेंगे ... मेरे पास पूरे बीस हजार रुपये हैं सब तुमको दे दूंगा मेरी बेटी की इज्जत बचा दे बेटा ...

... उसकी बातें सुनकर मेरे अंदर करेंट सा दौड गया ... उठकर उन गुंडों को आवाज देकर रोका ... पास जाकर लडकी को छोडने का बोला तो ... उस हराम के पिल्ले गुंडे ने सीधा चाकू निकाल कर मुझ पर तान दिया ... चाकू को देखकर मेरा खून खौल उठा ... फ़िर आव देखा ताव साले का हाथ पकड कर घुमाकर गर्दन पकड कर मुरकेट दिया ... एक पल में साले ने छटपटा के दम तोड दिया ... लडकी को लाकर उसके बाप के हवाले किया तो उन दोनों ने अपुन के पैर पकड लिये और बोले आप "भगवान" हो हमारे लिये ... अपुन बोला चल चल ठीक है जाओ तुम लोग ... बुढ्डे ने अपनी धोती के कमर में बंधी एक पोटली से पूरे के पूरे बीस हजार रुपये निकाल कर मेरे हाथ में रख दिये ...

... अपुन ने मात्र उससे एक हज्जार रुपया लिया और उन्हें भेज दिया ... जाते जाते वे अपुन को "भगवान" कहते कह्ते चले गये ... उनके जाने के बाद ही उस गुंडे के चारों चेले आकर अपुन के पैरों में गिर गये ... "भगवान दादा" माफ़ कर दो अपुन लोगों से गल्ती हो गई आज से हम आप के चेले बनकर रहेंगे ... अबे घोंचू सालो तुम लोग लडकी की इज्जत पर हाथ डालते हो भाग जाओ नहींच्च तो तुम चारों को भी टपका डालूंगा ... गल्ती हो गई बॉस इसमें हमारा दोष नहीं है जिसका था उसको तो आप ने टपका हीच्च डाला है ... चल चल ठीक है अपुन को पुलिस का लफ़डा नहीं मांगता .... जाओ उसकी लाश को कहीं पटरी-सटरी पे फ़ेंक के ठिकाने लगा देना ....

... हां एक बात और ... ये०० , १०० रुपये पकडो तुम लोग ... और ये १०० रुपये और ... वापस आते समय अपुन के लिये कुछ अच्छा खाना-वाना लेते आना ... ओके बॉस ... उनके जाने के बाद अपुन फ़िर चिंता में बैठ गया ... ये क्या हो गया अपुन ने दूसरे को टपका डाला मतलब "दूसरी सुपाडी" ... ये क्या हो रहेला है अगर ऎसाईच्च चलता रहा तो ... अपुन ने अपने आप को संभाला और मजबूत किया कि अब टपकाने-पपकाने का नहीं ... गुस्से को कंट्रोल करने का ... अपुन ने अपने आप से "गाड प्रामिस" किया कि ये "आखिरी सुपाडी" है ... बेंच पर बैठकर कल के बारे में सोचने लगा ... पर उस बुढ्डे लडकी के मुंह से निकले शब्द "आप भगवान हो" जाने क्यों मेरे कानों में गूंज रहे थे ..... !!!
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पार्ट -

... चलिये आज अपुन सुनाता है आप लोग को "तीसरी सुपाडी" की दास्तां ... जिसने अपुन को एक नया नाम दिया "भगवान दादा" .... हुआ यूं कि लाश को ठिकाने लगाने गये तो चारों चिरकुट थे पर वापस आया सिर्फ़ एक ... जिसका नाम था "गोली" ... गोली ने वापस आकर सारा किस्सा सुनाया था अपुन को ... जिसको अपुन ने टपकाया था उसका नाम था "फ़िरकी पठान" जो "वसूली पठान" का सगा छोटा भाई था ... वसूली पठान मुम्बई का एक दादा था जो दुकानदारों, व्यपारियों तथा फ़ूट्पाथ पर सोने वालों से हफ़्ता वसूला करता था जिसके नाम से सभी लोग थरथर कांपा करते थे ... मतलब ये था कि अपुन ने सीधे तौर पर एक "दादा" से पंगा ले लिया था ... इसी डर से "गोली" के तीन साथी "फ़िरकी पठान" ली लाश ले कर चले गये थे और "गोली" दिल की आवाज सुनकर अपुन के पास गया था ...

... फ़िरकी पठान को अपुन टपकाया है ये खबर मुम्बई में आग की तरह फ़ैल गई थी पर सब ये जानते थे कि तीन दिन बाद "वसूली पठान" आयेगा तो अपुन को टपका डालेगा ... "गोली" ने अपुन के बारे में व्यापारियों दुकानदारों को ये बता रक्खा था कि अपुन दयालु इंसान है और अपुन का नाम "भगवान दादा" है ... सच तो ये है कि अपुन अपना असली नाम भी भूल गया था ... एक सच्चाई तो ये भी थी कि सभी "वसूली पठान" के आतंक से भयभीत थे और उससे छुटकारा भी चाह रहे थे इसलिये उन सभी लोगों ने "गोली" के सामने प्रस्ताव रखा था कि यदि "भगवान दादा" उससे मुक्ति दिला दें तो वे दो गुना हफ़्ता देने को तैयार हैं .... पर सब ये जानते थे कि पिछले बीस साल में किसी की हिम्मत नही हुई जो पांच मिनट भी टिक सका हो "वसूली पठान" के सामने ...

... बिलकुल यही खौफ़ "गोली" की आंखों में भी नजर आता था वह तीन दिन से कहते रहा था "भाई" निकल चलते हैं मुम्बई से बाहर ... आज फ़िर सुबह से ही वह खौफ़ अपुन उसकी आंखों में देख रहेला था क्योंकि आज शाम को "वसूली पठान" आने वाला था ... आज फ़िर "गोली" अपुन के पैर पकड कर मुम्बई से बाहर चलने का बोल रहा था ... उसकी आंखों में खौफ़ देखकर अपुन के अंदर "बिजली" कौंध उठी थी और खून खौलने लगा था ... अपुन ने बोला "गोली" ये बता कहां कहां जायेंगे ... जहां गये वहां भी ऎसा ही फ़िर ... ये बता "मर कर भी चैन न मिला तो किधर जायेंगे" ...

... "गोली" जा सभी व्यापारियों को बोल डाल शाम को हफ़्ता तैयार रखें ... अपुन अब कहींच्च जाने वाला नही है और हां जब "वसूली पठान" आयेगा तो तू व्यापारियों के पास रहना ... जैसे ही अपुन का पलडा भारी लगे तो तू "हफ़्ता" लेना शुरु कर देना ... अगर अपुन खल्लास हुआ तो देख ये अपुन के गले में जो "लाल कपडा" बंधा हुया है ऎइच्च अपुन का "कफ़न" है इसको उडा देना, जिंदा रहा तो तेरे को सुनाऊंगा इस "कफ़न" की कहानी ... चल जा जैसा बोला वैसाइच्च कर ... अपुन का खून खौलना चालूइच्च था कि कब वो साला चिरकुट आये ....

... अपुन चौगड्डे पे ही उसका इंतजार कर रहेला था ... वसूली आया भी तो हिजडों की फ़ौज लेकर शेर की तरह दहाडता आया ... उसे देख कर अपुन का खून उबलने लगा ... अपुन बोला अबे चिरकुट तू इन हिजडों के दम पे उचक रहेला है क्या, हिम्मत है तो अकेला ... वो साला शेर की तरह छलांग लगाते गया ... अपुन ने जब उसको पटकनी देना शुरु किया साला तीन-चार पटकनी में ही टें बोल गया ... जब साले को घुमा के फ़ैंका तो सीधा व्यापारियों की भीड में जाकर गिरा ... गिरते ही साले का दम उखड गया ... चारों तरफ़ से "भगवान दादा" जिंदावाद जिंदावाद के नारे गूंजने लगे ...

... इस सुपाडी के बदले "गोली" को लगभग पचास हज्जार रुपये का "हफ़्ता" इकट्ठा हुआ ... चारों तरफ़ अपुन की जय जय कार होने लगी ... लोग अपुन को "भगवान दादा" के नाम से जानने लगे ... तीन - चार घंटे के बाद ही अपुन फ़िर सोचने पे मजवूर हो गया कि अपुन आज तीसरे को टपका डाला याने की "तीसरी सुपाडी" ... पर इस बार अपुन खुद को समझाया कि ये "आखिरी सुपाडी" है इसके बाद मार-पीट टोटली बंद, अब अपुन चैन से रहेगा "गोली" सब काम संभालते रहेगा .... पर अपुन साला क्या से क्या हो गया लोगों के लिये "भगवान दादा" बन गया ... "भगवान दादा" ... हा हा हा ... हा हा हा हा ... हा हा हा हा हा हा ... (यह हंसी अपुन को भगवान दादा बनने के कारण नहीं आया था वरन हालात पर आया था) ...!!!
...... जारी है .....

Tuesday, June 22, 2010

ब्लागिंग का शौक

"बी" कंपनी का बॉस ... टी.व्ही. देखते देखते भडक उठा ... ये "गोली" इधर आ ... हां बॉस ... ये ब्लागिंग क्या है ... कोई नया गेंग बनेला है क्या बॉस ... अबे घोंचू ... बुला सबको जितने हाजिर हैं ... हां बॉस ... गेंग के सारे सदस्य इकट्ठे ... सारे टेंशन में ... क्या हो गया बॉस को ... हां बॉस किसी को टपकाना है क्या ... ट्पकाना-पपकाना छोड ... ये बता "ब्लागिंग" क्या होती है ... अभी टी.व्ही. पे समाचार आ रईला था कि ... वो अपुन का बुडु अमिताभ बच्चन "ब्लागिंग" स्टार्ट कर लेईला है ... क्या है रे ये ... कोई बतायेगा ... बास अपुन को नईच मालुम ... अबे साले तुम लोग घोंचू के घोंचूस रहोगे ... चल चल फ़ोन लगा बुडु को ...

... अमिताभ बच्चन को फ़ोन ... स्पेशल नंबर से ... फ़ोन की घंटी बजी ... अमिताभ टेंशन में ... मन में सोचते हुये ... ये भाई काय को फ़ोन कर रेला है ... हां भाई आदाब ... आदाब बडे मियां ... कहां हो, कैसे हो ... बस मुम्बई में, कुछ खास नहीं ... बडे मियां ये बताओ ... ये ब्लागिंग का कौन सा कारोबार शुरु किया है ... वहां अपुन को इंट्री करने को मांगता ... छोडो न भाई ... फ़ालतु, बकवास है ... टोटल टाईम पास है ... नहीं बडे मियां ... जब तुम स्टार्ट किऎला हो तो अपुन को भी करनाईच पडेगा ...

... भाई "ब्लागिंग" में बहुत लोचा है ... गुटबाजी है ... पसंद/नापसंद ... हवाले/घोटाले ... टीका/टिप्पणी ... अनामी/बेनामी ... बहुत लफ़डा है वहां ... आपके लायक जगह नहीं है ... वहां का साला हिसाब - किताब ही समझ नहीं आता है ... अपुन के जैसा नामी-गिरामी आदमी ... बोले तो अमिताभ बच्चन बिग बी" ... अपुन का कोई नंबर नहीं है वहां पर ... पर ये लोचा करता कौन है वहां ... जहां आपका भी दाल नहीं गल पा रहा है ... छोडो न भाई ...

... अब छोडने का नई बडे मियां ... अब तो "ब्लागिंग" करनाईच पडेगा ... अपुन देखता है साले को ... वहां कौन कौन चिरकुट दुम हिला रहेला है ... आप तो एक "ब्लाग" बना दो मेरे नाम का ... फ़िर देखते हैं ... तो ठीक है भाई शाम को चार बजे आकर बना देता हूं ... ठीक है बडे मियां ... खुदा हाफ़िज ... अबे ये "गोली' इधर आ ... भेज दो-चार "शूटर" पता लगा के आयेंगे कौन कौन ब्लागिंग में ऊपर चल रहेला है और उनका फ़ोन-वोन नंबर ... पूरा अता-पता ले के आयेंगे ... फ़िर देखते हैं ब्लागिंग क्या बला है ... कौन कौन चिरकुट लोग है साला जो बडे मियां को पीछे ढकेल कर रखेला है .... ब्लागिंग कोई टेडी-मेडी चीज है क्या रे ... चल देखते हैं शाम को ... !!!

(काल्पनिक कहानी ... डान स्पेशल सीरीज पर एक पुस्तक "आखिरी सुपाडी" लिखने की योजना है ... साथ ही साथ इस स्टोरी पर "डान" फ़िल्म बनाने पर भी चर्चा चल रही है)

Monday, June 21, 2010

शेर

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'उदय' जानता है, लिखने से कितना परहेज था हमको
पर तेरी खामोशियों ने, न जाने क्या क्या लिखा दिया।

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ब्लागजगत का बेताज बादशाह ..... ललित शर्मा !!!


ब्लागजगत यानी लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ ... ब्लागिंग का दौर ... चारों तरफ़ ब्लागिंग ही ब्लागिंग .... डाक्टर, इंजीनीयर, लेखक, फ़िल्मकार, पत्रकार, कलाकार, नेता, अभिनेता, अधिकारी, कर्मचारी, मालिक, नौकर, ... ऎसा कौन नहीं है जो ब्लागिंग का लुत्फ़ नहीं उठा रहा है ... लगभग सभी वर्ग के लोग ब्लागिंग कर रहे हैं ....

... ब्लागिंग की चर्चा हो ... और ललित शर्मा का नाम न आए ... असंभव ... ललित शर्मा एक ऎसा व्यक्तित्व जो अपने आप में एक "ब्लाग इंडस्ट्री" है कहने का तात्पर्य सर्वगुण संपन्न ब्लागर ... जय जोहार ललित भाई ... हास्य-व्यंग्य, कविता, कहानी, समसामयिक, फ़ोटोग्राफ़ी, चित्रकारी, चर्चा-परिचर्चा ... लगभग सभी विधाओं का धनी .... हरफ़नमौला व्यक्तित्व ....

... यदि ब्लागजगत में ब्लागर सर्वाधिक किसी ब्लागर से व्यक्तिगत रूप से मुखातिब हैं ... तो निसंदेह ललित शर्मा ही होंगे ... दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और संभवत: भारत से बाहर के ब्लागर भी ललित शर्मा से मिल चुके हैं ... व्यक्तिगत रूप से जानते-पहचानते हैं ...

... मेरा भी उनसे मिलने का तीन-चार बार संयोग हुआ है ... मेरा तो व्यक्तिगत तौर पर मानना है ... एक अदभुत व्यक्तित्व ... जय हो ललित भाई ... उनके अदभुत व्यक्तित्व की झलक आप स्वंय यहां देख सकते हैं ... ललित डाट काम ... शिल्पकार ... अडहा के गोठ ... जय जोहार ... जय जय ब्लागिंग .... !!!!

Sunday, June 20, 2010

क्रिकोटत्व - 2010 ........ब्लाग फ़िक्सिंग !!!!!

.... दुबई से फ़ोन की घंटी बजी .......... हां भाई, क्या आदेश है .......... ये क्या बकबास चल रहा है ... तू ये क्या बकबास कर रहिला है ..... साले तुझे और कोई काम नही है क्या जो ये क्वीज चालू कर रखीला है ...

.... क्या हो गया भाई मैं तो आपका चेला हूं ... जो आप कहिते हो बहिस करता हूं ... क्या गुस्ताखी हो गईला बॉस .... माफ़ी मांगता हूं ...

... चल चल ठीक है ... कोई बात नहीं ... पर तूने ये जो ... बेस्ट ब्लागर .... बेस्ट टिप्पणीकार .... बेस्ट सपोर्टर .... बेस्ट चापलूस ... बेस्ट चमचे .... बेस्ट चिरकुट ....

... इस खेल को बंद कर .... नहीं तो तेरो को ईच उठाना पडेगा ... ये क्या नौटंकी है ... तुझे नहीं पता कि कौन मेरा पसंदिदा ब्लागर है ... फ़िर क्यों ये नौंटकी चालू कर लेईला है ... चल बंद कर ये क्रिकोटत्सव ... नहीं तो तेरी वाट लगा दूंगा ... समझा ... क्या समझा ... (फ़ोन कट ) .... .....

... लगता है बॉस नाराज है ... चल चल बंद कर ये ... बाद में देख लेंगे .... .... .... .... जान रहेगी तो जहान रहेगी ... ... .. ... ... ...
(निर्मल हास्य)

लो भाई एक और फ़र्जीवाडा ... ब्लाग 4 वार्ता !!!

चलो एक और फ़र्जीवाडा पर आपका ध्यान केंद्रित कराते हैं ... अब क्या करें फ़र्जीवाडा बर्दास्त नहीं किया जा सकता ... कम से कम आंखों के सामने ... तौबा तौबा ... ब्लागजगत में चल रहे फ़र्जीवाडे पर ही अब मेरा ध्यान केंद्रित सा हो गया है ... क्या करें, ब्लागदुनिया "अंधेर नगरी चौपट राजा" हो रही है ... अभी अभी इंटरनेट पर क्या पहुंचे ... फ़िर से दिख गया एक और फ़र्जीवाडा ...

... ब्लाग 4 वार्ता ... एक चिट्ठों व पोस्टों की चर्चा करने वाला ब्लाग / मंच ... जिसका खुद का कुछ भी नहीं है बस इधर-उधर के ब्लाग व पोस्टों को लिंक देने का काम है ... इस लिंक देने का मकसद क्या है वह बाद में बताऊंगा ... बात दरअसल ये है कि अभी दूसरे मुद्दे पर चर्चा की जा रही है ... हुआ ये कि इस ब्लाग पर १००वीं पोस्ट लगी है ... सभी बधाई दे रहे हैं ... मेरी ओर से भी शुभकामनाएं ...

...अब चलते हैं असली मुद्दे पर ... चिट्ठाजगत के ताजा आंकडों के अनुसार ... ब्लाग 4 वार्ता की पोस्ट संख्या - 100 और सक्रियता क्रं - 263 ......... वहीं दूसरी ओर ब्लाग - कडुवा सच की पोस्ट संख्या - 301 और सक्रियता क्रं - 267 ....... ये क्या माजरा है कोई बतायेगा कि ३०१ पोस्ट वाला ब्लाग पीछे और मात्र १०० पोस्ट वाला ब्लाग सक्रियता में आगे .... क्या फ़र्जीवाडा है ... क्या हिसाब-किताब है ... है किसी बुद्धिजीवी के पास कोई सकारात्मक उत्तर ... खैर छोडो ...

... असली मुद्दे पर बात की जाये ... हुआ ये कि चिट्ठाजगत के हवाले/घोटाले की मेहरवानी से ये हुआ है ... आओ आप खुद देख लो क्या माजरा है ... ब्लाग 4 वार्ता के हवाले/घोटाले की संख्या - 11 और कडुवा सच के हवाले/घोटाले की संख्या - 10 ..... मतलब एक आंकडे के अंतर से सक्रियता में इतना अंतर ... पता नहीं पूरे ब्लागजगत में कितना फ़र्जीवाडा चल रहा है कौन कौन सा ब्लागर सक्रियता में न जाने कहां से कहां पहुंच गया है ...

... देखने वाली बात तो ये है कि जब ये ब्लाग खुद ही दूसरे ब्लागों व पोस्टों की चर्चा करने के लिये बना है ... फ़िर इसकी चर्चा कर कौन महानुभाव इसे सक्रियता में ऊपर ले जा रहा है ... पूरे ब्लागजगत का यही हाल है ... जितने भी चर्चा के मंच बने हैं मुझे तो लगता है सब का यही हाल है ... सब का नंबर धीरे धीरे लगने वाला है ... अब मैंने तो मोर्चा ही खोल कर रखा हुआ है ... ऊपर से नीचे तक जितने भी फ़र्जीवाडे मेरी नजर में आयेंगे सब का दूध का दूध और पानी का पानी करना जारी रहेगा ... फ़िलहाल तो फ़र्जीवाडा जारी है ... जय हो फ़र्जीवाडे की ... !!!

... ये सब चिट्ठाजगत के हवाले/घोटाले की मेहरवानी से हो रहा है ... जय हो !!!!

Saturday, June 19, 2010

"भाऊ का इंटरनेशनल सर्कस"

चलिये आज चर्चा करते हैं इंटरनेट जगत के विश्व प्रसिद्ध सर्कसकार "भाऊ" .... भाऊ एक ऎसा नाम जिसे इंटरनेट की दुनिया के बच्चे बच्चे , महिला-पुरुष सभी जानते हैं ... उनकी कहानियां मुंहजुबानी कुछ महानुभाव व महापुरुष टाईप के बुद्धिजीवियों के पास सुनने मिल जायेंगी ...

... भाऊ का सर्कस ... एक हंसीला-जोशीला सर्कस है जो जबरदस्त कामेडी है ... इस सर्कस के मुख्य किरदार ... सल्पना मैडम, सर्मीला मैडम, भालित बाबू, बगैरह ... और स्वंय जोशीले-हटीले भाऊ ... इस सर्कस पर अक्सर बर्फ़ के गोले, गुपचुप के ढेले, अंगूर के रस, अस्पताली कारनामें, भंग के गोले, जंतर-मंतर के अजब-गजब कारनामें पेश किये जाते हैं ये कारनामें भी गोल्डन होते हैं यहां से करोडों रुपये जीते जा सकते हैं क्योंकि यहां सब गोल्डन ही गोल्डन है ...

... इस सर्कस का मुख्य आकर्षक आईटम है ... चुटकुलों का जंतर-मंतर ... जी हां ... यहां आये-दिन चुटकुले पटक दिये जाते हैं यह एक जंतर-मंतर नुमा खेल है ... इसमें कुछ बुद्धीजन घुस जाते हैं जो सफ़लतापूर्वक निकल आते हैं उन्हें पुरुष्कार स्वरूप एक "छडी" प्रदाय की जाती है और उन्हें आजीवन सर्कस का सदस्य बना लिया जाता है फ़िर वे भी सर्कस के हिस्से बन जाते हैं और किसी न किसी आईटम कार्यक्रम में छडी हिलाते देखे जाते हैं ... सभी "छडी" धारकों के फ़ोटो सर्कस के गेट पर व संपूर्ण मेले में लगाये जाते हैं ... ताकी कुछ और झमूरे आकर्षित होकर पहुंचे ...

... फ़िलहाल तो भाऊ का इंटरनेशनल सर्कस सफ़लता पूर्वक जारी है ... नई ऊंचाईयों को छू रहा है ... हमारी भी शुभकामनाएं हैं कि भाऊ अपने सर्कस में कुछ नये झमूरे और शामिल करें तथा सर्मीला मैडम का एक आईटम सांग प्रत्येक शो मैं अवश्य रखें ... साथ ही साथ भालित बाबू को भी मुख्य किरदार में पेश करें ... सभी जंतर-मंतर शो के विजेताओं को सर्कस के ओपनिंग शो में छडी घुमाते हुये अवश्य दखाएं ... हमारी शुभकामनाएं ... जय हो भाऊ सर्कस की ... !!!!
(निर्मल हास्य)

हा हा हा ... मैं भी ब्लागर हूं ... पहचान कौन !!!


................... मेरे हाथ में क्या है ???

Friday, June 18, 2010

... तो ठीक है बंद हो जाये ब्लागवाणी !!!

ब्लागवाणी के बंद होने से ब्लागिंग बंद नहीं हो जायेगी ... ब्लागिंग बंद होनी भी नहीं चाहिये ... होने दो बंद ब्लागवाणी को ... आखिर बुराई ही क्या है जब वह अपने अव्यवहारिक पसंद/नापसंद के चटके को बंद नहीं कर सकती तो ... बंद होना ही ठीक है ... पर कुछ लोग तेल लगाने लग गये होंगे ... कुछ हाथ-पैर भी जोड रहे होंगे ... कुछ दूसरे ब्लागर जो ब्लागवाणी की बैंड बजाने पर तुले हुए थे उनकी तरफ़ से माफ़ी भी मांग रहे होंगे ... ज्यादातर बुद्धिजीवियों का मत रहा है कि इन एग्रीगेटर पर चढ-उतर रही पोस्टों पर ध्यान मत दो ... कौन ऊपर है और नीचे है टाप ब्लागिंग में उस पर भी ध्यान मत दो ... तो ठीक है बंद हो जाये ब्लागवाणी !!! ... ऎसे सिस्टम की जरुरत ही क्या है जो साहित्यिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को जन्म दे रहा हो ... पर इतना तो तय है कि कुछ लोगों की दम ही उखड रही होगी ... यदि ब्लागवाणी स्वंय के अनियमित व अव्यवहारिक सिस्टम को सुधार कर आये तो स्वागत है अन्यथा बंद ही हो जाये तो ठीक है ... बहुत से अग्रीगेटर हैं और नये आ भी रहे हैं ... पर भ्रष्टाचार बरदास्त नहीं होगा ... जय जय ब्लागिंग !!!

शहरोज़ ........... एक साहित्यकार !!!

विगत दिनों एक जाने माने कवि, पत्रकार, साहित्यकार आदरणीय शहरोज़ भाई के वर्तमान हालात के संबंध में जानकारी हुई .... समय इंसान को कितना झकझोरने का प्रयास करता है ... खुदा हौसला दे, एक नया जज्बा पैदा करे, समय बदले, हालात बदले, यही दुआ है ...

... इन हालात को मद्देनजर रखते हुए ही मैंने एक कविता लिखी थी वह याद आ रही है ... पुन: प्रस्तुत है :-

साहित्यकार

सरकार, कितनी अच्छी सरकार / जो दे रही है भत्ता बेरोजगारों को / कर रही है माफ़ ऋण किसानों के / दे रही है पेंशन सांसदों - विधायकों को / और तो और अब क्रिकेटर भी / पेंशन के हकदार हो गए हैं / इस देश में, लोकतंत्र में /
सरकार हर किसी की भलाई / के लिए जोड़ - तोड़ कर रही है / कोई छूट न जाए, ढूँढ - ढूँढ कर / हर किसी के लिए / अच्छे से अच्छा इंतज़ाम कर रही है / सरकारी अधिकारी - कर्मचारी / चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि / आयोगों के सदस्य - अध्यक्ष / सांसद, विधायक, क्रिकेटर, बेरोजगार / हर किसी को नए - नए उपहार मिल रहें हैं!
क्या ये ही देश के कर्णधार हैं / लोकतंत्र में प्रबल दावेदार हैं / इनके कन्धों पर ही देश खड़ा है / इनके क़दमों से ही देश आगे बढ़ रहा है / क्या ये ही सब कुछ हैं, देश के लिए / पथ प्रदर्शक हैं, मार्गदर्शक हैं / समीक्षक हैं,समालोचक हैं / स्तंभकार हैं, प्रेरणास्रोत हैं / शायद ये ही सब कुछ हैं / तो फिर साहित्यकार क्या हैं?
क्या कुछ भी नहीं हैं / क्या आज़ादी के आंदोलनों में / इनकी कोई भूमिका नहीं थी / क्या ये राष्ट्र - समाज के आइना नहीं हैं / क्या समाज में इनका कोई योगदान नहीं हैं / क्या देश के ये महत्वपूर्ण सिपाही नहीं हैं / क्या ये लोकतंत्र के स्थापित प्रतिनिधि नहीं हैं / क्या आन्दोलन - आजादी स्वस्फूर्त मिल गई,
अगर ये कुछ नहीं हैं / तो इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो / बेचने दो इन्हें पदकों और दुशालों को / खोलने दो इन्हें दुकानें परचूनों की / तड़फने दो इन्हें बंद अँधेरी कोठरियों में / शायद ये इसी के हकदार हैं /

और सांसद, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि, क्रिकेटर / बेरोजगार ही लोकतंत्र के प्रबल कर्णधार हैं / वेतन पेंशन और सुविधाओं के हकदार हैं / अगर इस लोकतंत्र में / कोई सोचता , जानता, मानता है / कि साहित्यकारों ने / देश की आजादी में कंधे से कन्धा मिलाया था / आज़ादी के सिपाहियों का खून लेखनी से खौलाया था / जनता को आंदोलनों के लिए गरमाया था / देश को मिलजुल कर आज़ाद कराया था / तो आज़ाद लोकतंत्र में / ये साहित्यकार सुविधाओं के हकदार हैं / दावेदारों में प्रबल दावेदार हैं / ये भूलने वाली बात नहीं / याद दिलाने वाली सौगात नहीं /
ये साहित्यकार ही हैं / जो समाज को आइना दिखाते हैं / शिक्षा के नए आयाम बनाते हैं / ये ही रास्ते बनाते हैं / और उन पर चलना सिखाते हैं / ये साहित्यकार ही हैं / जो धूमिल हो रही आजादी को / फिर से आज़ाद करायेंगे,
लोकतंत्र में, केन्द्रीय - प्रांतीय सरकारों से / राष्ट्रपति - प्रधानमंत्री से,राज्यपाल - मुख्यमंत्रियों से / एक छोटा -सा प्रश्न पूछता हूँ / क्या साहित्यकार इस देश में / बेरोजगारों से भी गए गुज़रे हैं / क्या ये अन्य हकदारों की तरह / वेतन-पेंशन, आवास-यात्रा पास के हकदार नहीं हैं / क्या ये मीनार के चमकते कंगूरे / और नींव के पत्थर नहीं हैं?
हाँ, अब समय आ गया है / शहीदों के सम्मान के साथ / स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान के साथ / सीनियर सिटीज़नों के सम्मान के साथ / साहित्यकारों को भी सम्मानित करने का / मान,प्रतिष्ठा एवं सुविधाएँ देने का / लोकतंत्र में, लोकतंत्र के लिए ..............!

... हम सब को मिलकर ... साहित्यकारों के हित में कुछ एतिहासिक निर्णय लेकर कदम बढाना आवश्यक हो गया है ... बेरोजगारों को भत्ता , क्रिकेटरों को पेंशन ... साहित्यकारों को क्यों नहीं !!!!!!!!

Thursday, June 17, 2010

... टाप ब्लागर टिप्पणी करने से क्यॊं कतरा रहे हैं !!!

मैं जानता हूं ... ब्लागवाणी, चिट्ठाजगत न किसी से पैसा ले रहे हैं और न ही मांग कर रहे हैं .... न ही किसी टाप ब्लागर को "पदम श्री" अवार्ड मिल रहा है और न ही किसी के ऊपर धन की वर्षा हो रही है ... फ़िर क्यों सभी ब्लागर ये नहीं चाहते कि ब्लागिंग के अनियमित व अव्यवहारिक सिस्टम में ... जिसके कारण कोई भी पोस्ट या ब्लाग ... अव्यवहारिक रूप से ऊपर-नीचे हो रहा है ...

... क्यों पोस्टें पसंद/नापसंद के चटके का शिकार हो रहीं हैं ... क्यों हवाले/घोटाले के कारण ब्लाग ऊपर-नीचे हो रहे हैं .... क्यों और कब तक ये फ़र्जीवाडा चलता रहेगा ... क्यों हम इस अव्यवहारिक/अनियमित सिस्टम को जड से नष्ट करने पर विचार नहीं कर रहे हैं .... कब तक ... कब तक ऎसा चलता रहेगा कि चंद लोग पसंद/नापसंद के चटके तथा हवाले/घोटाले के बलबूते पोस्टों व ब्लागों को ऊपर-नीचे करते रहेंगें ...

... क्या अच्छे ब्लागर / अच्छी पोस्ट .... यूं ही घटिया और बिन सिर-पैर के सिस्टम के शिकार होते रहेंगे ... क्यों आज हम सब इस सिस्टम में सुधार की दिशा में सार्थक कदम नहीं उठा रहे हैं ... कब तक ऎसा घिनौना खेल चलता रहेगा ... कब तक लोग ब्लागिंग से पलायन करते रहेंगे ...

... क्या ये ब्लागिंग के हित में है ... नहीं ... नहीं ... नहीं ... कब तक ये फ़र्जीवाडा चलता रहेगा ... मेरी पिछली पोस्ट पर टाप ब्लागर टिप्पणी करने से क्यों कतरा रहे हैं ... वे खुद आगे आकर इस सिस्टम में सुधार के लिये पहल क्यों नहीं करना चाहते .... जय हो फ़र्जीवाडे की ... !!!!

Wednesday, June 16, 2010

.... टाप ब्लागों का फ़र्जीवाडा !!!

चलिये आज शुरु करते हैं फ़िर से ... फ़िजूल की बहस ... पर जरुरी है ... जरुरी इसलिये कि आम चिट्ठाकारों को भी इसकी जानकारी भलीभांति होनी चाहिये कि ... क्या चिट्ठे चर्चाकारों के ब्लाग ही टाप पर हैं ? ... या चिट्ठे चर्चाकारों से जुडे लोगों के ब्लाग ही टाप पर हैं ? ... या जिनके चार-पांच ब्लाग हैं वे ही टाप पर हैं ?

... लगभग सभी प्रश्नों के उत्तर एक समान ही हैं ... वो इसलिये चिट्ठों के चर्चाकार ... उनके हिमायति अर्थात शुभचिंतक ... बडे भईया या छोटे भईया ... चाचा-भतीजा ... भाई भतीजा वाद ... या स्वंय मठाधीष (जिनमें चार-पांच चिट्ठों को मिलाकर बने मठ) ... गुटवाजी व शामिल गुट्वाज .... और भी गणितग्य शायद छूट रहे होंगे क्योंकि मुझे ज्यादा अनुभव नहीं है ...

... लगभग सभी टाप चिट्ठे इनमे से ही किसी न किसी श्रेणी में आते हैं .... इसलिये जैसे ही कहीं से भी विरोध का स्वर उठता है कुछ शुभचिंतक समर्थन में आ खडे होते हैं ... विरोध का स्वर ठंडे बस्ते में चला जाता है ...

... लगभग चिट्ठे ( कुछेक को छोडकर ) गणित के सूत्र = हवाले-घोटाले के कारण ही टाप पर हैं ... यदि हवाले-घोटाले का सिस्टम कुछ पल के लिये हटा दिया जाये अर्थात पुराने जितने भी हवाले-घोटाले से संबधित लिंक हैं उनको हटा दिया जाये तो ... न जाने कितने ब्लाग धराशायी हो जायें ... और जब वो जमीन पर दिखें तो आप खुद समझ सकते हैं .... क्या हालत होगी ? .... फ़िलहाल तो फ़र्जीवाडा जारी है ... जय हो फ़र्जीवाडा की ..... !!!!!

Tuesday, June 15, 2010

पुराना शेर - नया शेर ... "हिन्दी ब्लागिंग" का भविष्य !

आदरणीय साथियों एक तरह से मैंने सक्रिय ब्लागिंग को अलविदा सा कह दिया है ... आप समझते हैं सक्रिय ब्लागिंग का तात्पर्य ... पर मेरा लेखन जारी रहेगा ... कहीं कहीं मुझे यह अफ़सोस जरुर होगा कि मैं आप लोगों के ब्लाग व प्रसंशनीय पोस्ट को पढने पहुंच पा रहा हूं अथवा नहीं ...

... ब्लागवाणी व चिट्ठाजगत के अनियमित व अप्रासंगिक नियमों / नीतियों पर जिनके कारण पोस्टों / ब्लागों का अव्यवहारिक उतार-चढाव होता है जिसके विरुद्ध न सिर्फ़ मैंने वरन ढेरों ब्लागरों ने अपने अपने ढंग से विरोध दर्ज कराया है ... पर कुछ महानुभाव न जाने क्यों उनके समर्थन में खडे हो जाते हैं ... आज बहुत लोग हिन्दी के प्रचार व ब्लागिंग के हित की बातें करते हैं ... क्या ऎसे अव्यवहारिक सिस्टम में ब्लागिंग सही मुकाम पर पहुंच पायेगी ?!?

... जिस प्रकार गंदी राजनीति व भ्रष्टाचार तंत्र ने आम जन का जीना दुभर कर रखा है बिलकुल वैसा ही भविष्य मुझे हिन्दी ब्लागिंग का नजर आ रहा है ... यदि आज से इसे सुधारने का प्रयास नहीं किया गया तो निश्चिततौर पर "हिन्दी ब्लागिंग" .....!!!!!!!!!!!

ब्लागिंग के वर्तमान तौर-तरीकों पर मेरे दो शेर प्रस्तुत हैं :-

एक पुराना शेर
चमचागिरी का दौर बेमिसाल है
चमचों-के-चमचे भी मालामाल हैं।
.....................................................
एक नया शेर
तेरी चमचागिरी को देखकर 'सलाम' करता हूं
क्या 'हुनर' पाया है एतराम करता हूं।

शेर

आज फ़िर, उसके चेहरे पे हंसी होगी
मेरे घर की खप्पर, तूफ़ानों ने जो उडा रक्खी है।

........................................................

सिर पे बांध के कफ़न, वो घर से निकल आया था
तूफ़ान जब ठहरे, तो लोगों ने उसे 'खुदा' माना था।